अवतार की यात्रा
समस्त विश्व में सेवाओं के निमित्त आत्माओं के लिए हम एक भट्ठी का प्रृस्ताव रख रहे हैं । यह 36 दिनों तक चलेगी और इसका आरम्भ 3 जनवरी, 2016 को होगा ।
यह भट्ठी इस समय क्यों?
बाबा के निमित्त होते हुए यह हमारा कर्तव्य और भाग्य है कि हम तीव्र पुरूषार्थ करें और दिव्य अनुभव करें और सम्पूर्ण प्राप्ति करें । व्यक्तिगत रूप से भी और सामूहिक रूप से, हम बाबा के सेवाकेन्द्रों को उत्कृष्टता के द्वार में परिवर्तन कर सकते हैं । हम इस यात्रा में सीमांकित आध्यात्मिक साधना का प्रयोग करके शक्तिशाली वायुमंडल और अलौकिक स्थान का निर्माण करेंगे ताकि सेवा में सफलता मिले । उपर्युक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अवतार की यात्रा एक र्स्वणिम अवसर है ।
अवतार का अर्थ
संस्कृत में ‘अव’ का अर्थ है नीचे या नीचे की ओर और ‘तार’ का अर्थ है पार करना । वैसे तो सामान्यतया अवतार को अवतरण के रूप में अनुवाद किया जाता है, वास्तव में इसका अर्थ है वह जो आध्यात्मिक स्तर से भौतिक स्तर पर नीचे आता है । अक्सर जब कोई अवतार आता है तो वह एक तीर्थ का निर्माण करता है, एक तीर्थ स्थान, जहां कोई भी आध्यात्मिक स्तर का अनुभव कर सकता है । अवतार, उच्च और निम्न संसार के बीच माध्यम का काम करता है ताकि हर कोई उसी मार्ग से पार जा सके जहां से अवतार ने पार किया है ।
ब्रहमतीर्थ
ब्रहमतीर्थ का अर्थ है आध्यात्मिक तीर्थ स्थान या पार करना, और ख़ास तौर से भारत में इस नाम से एक स्थान है । हमारे सेवाकेन्द्र या स्थान आध्यात्मिक मरूद्यान हैं जिससे लोग आध्यात्मिक स्तर तक ऊँचे उठ कर फायदा ले सकें । अवतार की यात्रा में जो सवाल हम स्वयं से कर रहे हैं वह है: हम अवतार कैसे बन सकते हैं? हम अपने सेवाकेन्द्रों या स्थानों को ब्रहमतीर्थ कैसे बना सकते हैं?
हम बाबा के निमित्त बच्चे सही तरीके से मूल वतन, सूक्ष्म वतन और स्थूल वतन के बीच चैनल का कार्य कर सकते हैं । उसके बाद सेवाकेन्द्र चुम्बक की तरह दूसरों को आकर्षित करने लगेंगे । बाबा के निमित्त बच्चे होने के कारण हमारी सबसे पहली प्राथमिकता अवतार बनने की और अपने सेवाकेन्द्रों या स्थानों को ब्रहमतीर्थ बनाने की होनी चाहिए ।
जैसे ब्रहमा बाबा ने पांडव भवन में तपस्या की और इसे ब्रहमतीर्थ में परिवर्तित कर दिया । उस क्षेत्र में वे तपस्वी थे । बाबा बातचीत करते एवं चलते फिरते प्रेम, प्रकाश और शक्ति स्वरूप थे । इस के परिणामस्वरूप पांडव भवन में उपचारात्मक और रूपांतरणीय प्रकम्पन्न हैं । इसी प्रकार, बाबा के हम निमित्त बच्चे कैसे अपने सेवाकेन्द्रों या स्थानों को छोटे पांडव भवन या ब्रहमतीर्थ में परिवर्तन कर सकते हैं? चाहे भोजन पकाना, क्लास करवाना या सोना, हम सब कुछ बाबा की याद में करते हैं तब हम अपने स्थान को ब्रहमतीर्थ में परिवर्तन कर सकते हैं । हमारी याद में सहायता करने के लिए हम कुछ सिद्धी स्वरूप सूत्रों का सुझाव दे रहे हैं ।
स्व अर्थात स्वयं का और रूप अर्थात सुंदर रूप । स्वरूप अर्थात स्वंय का सुंदर स्वरूप या हमारा वास्तविक स्वभाव । सिद्धी स्वरूप अर्थात अपनी परिपूर्णता को पाने के बाद जो आप वास्तव में हो । परिपूर्णता को पाने के पश्चात मेरा वास्तविक स्वरूप । सिद्धी स्वरूप का अर्थ सफलता, सम्पूर्ण प्राप्ति और आध्यात्मिक सुंदरता स्वरूप भी है ।
गलती से सिद्धी स्वरूप को रिद्धी स्वरूप न सम लें । सिद्धी स्वरूप उनके लिए है जो वास्तव में आध्यात्मिक परिपूर्णता की अभिलाषा रखते हैं, जबकि जो रिद्धी सिद्धी के पीछे जाते हैं वे तंत्र-मंत्र से केवल सांसारिक प्राप्तियां करना चाहते हैं । सिद्धी शब्द तीन संदर्भों में प्रयोग हो सकता है: 1) सम्पूर्ण प्राप्ति (सिद्धी); 2) तंत्र-मंत्र से सफलता प्राप्त करना (रिद्धी सिद्धी); 3) जो बाबा के साथ अत्यंत योग से जादुई और गुप्त आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करे (सिद्धी स्वरूप) ।
इस यात्रा का दोहरा लक्ष्य
अवतार की यात्रा में दो आधारभूत अवस्थाऐं हैं: 1) आरोहण या सिद्धी स्वरूप बनना; और 2) दूसरों को उँचा उठाने के लिए अवतार बनकर नीचे आना ।
एक अवतार बाबा का निमित्त बन कर नीचे उतरता है । एक अवतार यह कभी नहीं भूलता कि वह बाबा का निमित्त बच्चा है । सिद्धी स्वरूप बनकर और निमित्तपन का विवेक रखकर ही हम अवतार बनने के योग्य बनते हैं । जब मैं बाबा का सम्पूर्ण पारदर्शक निमित्त बच्चा बन जाता हूँ और लोग मेरा अनुसरण करने लगते हैं तो वास्तव में वे बाबा का अनुसरण कर रहे हैं ।
सिद्धी-स्वरूप सूत्र
जब मेरे विचारों की गुणवत्ता लगातार बाबा के विचारों जैसी है तो हम सिद्धी स्वरूप बन जाते हैं । इसलिए, सिद्धी स्वरूप बनने के अभ्यास में - आत्माओं को मूलवतन और सूक्ष्म वतन की ओर ऊँचा उठाने का मार्ग उत्पन्न करने के लिए हम सिद्धी स्वरूप कैसे बनें? आत्मा की क्षमता को कैसे भरा जाऐ?
इसके लिए हम 18 सिद्धी स्वरूप सूत्रों का प्रस्ताव रख रहे हैं । हरेक सूत्र अवतार के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत और आध्यात्मिक साधना और उसके परिणाम को प्रस्तुत करता है । ये सूत्र मुरलीयों से निकाले गए हैं और रहस्योदघाटन करते हैं, शक्ति प्रदान करते हैं और एकाग्र होने में हमें मदद करते हैं । वैसे तो हम अवतार बनने का पुरूषार्थ करने का प्रस्ताव रख रहे हैं, ध्यान प्राप्ति पर है । यह सूत्र हमारे भीतर और बाबा के सेवाकेन्द्रों/स्थानों में एक उत्कृष्ट वातावरण बनाऐगा ।
सिद्धी स्वरूप सूत्र कैसे काम करता है?
विज्ञान में अक्सर सूत्र ऐसे लिखा जाता है x + y = z । विज्ञान के इस सूत्र के दो पहलू हैं: 1) अगर आप x के साथ y को जोड़ेंगे तो इसका परिणाम सदा z ही होगा; 2) यह सूत्र हर जगह काम करता है, चाहे आप ज़मीन पर, समुन्द्र पर या पहाड़ पर हों । किसी भी समय कहीं भी इसकी अनुकृति तैयार हो सकती है ।
सिद्धी स्वरूप सूत्रों का सबसे बड़ा फायदा है कि ये निष्पक्ष हैं । ये किसी भी समस्या के या परिस्थिति के बाहर काम करते हैं और ये हरेक के लिए काम करते हैं । जब तक हम पूरा हृदय इसमें लगाऐंगे और सही पुरूषार्थ करेंगे तो चाहे हम कहीं भी रहते हों, सेवाकेन्द्र की समस्या हो या हमारी अपनी व्यक्तिगत कमज़ोरी, हमें सफलता अवश्य प्राप्त् होगी ।
पुरूषार्थ का सुझाव
प्रत्येक को स्वयं पर पुरूषार्थ करने के लिए हम 36 दिन तक 18 सूत्र उपलब्ध करवाऐंगे । हम सलाह देते हैं कि प्रत्येक सूत्र का आप 108 बार अभ्यास और अनुभव करें । ये 108 बार आप सुबह 30 मिनट, शाम को 30 मिनट, ट्रैफिक कन्ट्रोल के समय, भोजन के समय, चलते-फिरते या अपनी गति से कर सकते हैं । आपके पास एक सूत्र एक दिन में या कई दिनों तक 108 बार का अभ्यास पूर्ण करने की स्वतन्त्रता है ।
प्रत्येक सूत्र अवतार के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत और आध्यात्मिक साधना और उसकी सफलता को प्रस्तुत करता है । प्रत्येक सूत्र को प्रारम्भ करने से पूर्व स्वयं पर संदेह करने की मंशा का त्याग कर दें । आरम्भ करने के लिए बापदादा की मुरली से यह उपयुक्त है: “तो आज, आप बापदाद सिद्धी स्वरूप बच्चों का चयन कर रहे हैं । इनकी यादगार मूर्ति आज भी बहुत सी आत्माओं को कई प्रकार की सिद्धी पाने में मदद कर रहीं हैं ।”
निम्नलिखित प्रस्तावित सूत्र हैं । इन सूत्रों को आगे याद में मदद देने के लिए ड्रिल के रूप में विकसित किया जाऐगा । हम हर बार हर दूसरे दिन ईमेल सूची के द्वारा भी एक सूत्र भेजेंगे ।
1. (ओम शांति – स्वयं का धर्म शांति है) + (ओम शांति – मेरे पिता शांति के सागर हैं, + (ओम शांति – मेरे वतन में असीम शांति है) = गहरी शांति
2. साकर (मैं मेहमान हूँ) + सूक्ष्म (मैं फरिश्ता हूँ) + निराकारी (मैं अपने घर में हूँ) = अविनाशी
3. (सत्यम – सच्चाई) + (शिवम – कल्याणकारी) + (सुंदरम - सुंदर) = सुंदरता
4. (अशरीरी) + (देही अभिमानी) + (विदेही) = सुरक्षा
5. (सत) +(चित) +(आनंद) = सजीव आनंद
6. (ब्रहमर्य- ब्रहमा के द्वारा दी गई शिक्षाओं से अर्जित पवित्रता) + (योग – अव्यभिचारी याद के लिए आवश्यक पवित्रता ) + (धारणा – आत्मा के सहज गुणों की पवित्रता) = फरिश्ता स्वरूप
7. (निमित्त) + (निर्मल वाणी) + (निर्मान) = सम्बन्ध
8. (निराकारी – विचारों में) + (निरंहकारी – शब्दों में) + (र्निविकारी – कर्म में) = सत्यनिष्ठा
9. (एकव्रता) + (एक बल) + (एक भरोसा) = संरक्षण
10. (राज़युक्त – ज्ञान के राज़ बुद्धि और जागरूकता में बहुत स्पष्ट रहें) + (योगयुक्त – रचयिता बाप से निरंतर जुड़े रहना) + (युक्तियुक्त – निरंतर यथार्थ तरीकों का प्रयोग करके कर्मों को मज़बूत बनाना) = दिव्य समझ
11. (एकरस – निरंतर और स्थिर) + (एकता) + (एकान्त प्रिय) = वरदान
12. (निर्विकल्प – विकारी विचारों से मुक्त) + (निर्विघ्न – विघ्नों से मुक्त) + (निर्विकर्मी – पाप कर्मों से मुक्त) = श्रेष्ठ जीवन
13. (एकनामी – एक की याद में) + (ईकॉनॉमी – कम विचार) + (एकाग्रता – मन और बुद्धि एक पर एकाग्र) = टचिंग और कैचिंग पावर
14. (पालना – उँचे ते उँचे बाप का प्रेम) + (पढ़ाई – श्रेष्ठ शिक्षक से प्राप्त शिक्षाऐं) + (श्रीमत – सतगुरू से प्राप्त निर्देश) = भाग्य
15. (मनमनाभव – एक पर एकाग्र मन) + (मध्याजीभव – सम्पूर्ण सतयुगी स्वरूप) + (मनसा सेवा – मन से सेवा करना) = समर्पण/ विचारों की स्वतंत्रता
16. (याद – बाबा को निस्वार्थ रूप से याद करना) + (प्यार – जो भूले हुए रिश्ते को फिर से जोड़ दे वह प्रेम) + (नमस्ते – नम्रता और महानता का मेल) = आध्यात्मिकता
17. (रचना – पावन विचार) + (पालना – अविनाशी संस्कार) + (विनाश – पुराने संस्कारों, पुराने स्वभाव, कमज़ोर विचारों का) = कल्याणकारी
18. (ताज – पवित्रता के प्रकाश का ताज) + (तख्त – मस्तक का अविनाशी तख्त, बाबा का दिल तख्त) + (तिलक – आत्मिक स्थिति/ योगी) = स्वराज