23-Mar-2015
इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता अगर आप गा नहीं सकते
लंदन के मेरे
शुरूआती दिनों में कुछ भाईयों का "बियोन्ड साउन्ड"
नाम का संगीत ग्रूप था। इस ग्रूप में मेरे अलावा
सभी भाई निपुण संगीतकार थे। अक्सर दादी मुझे "मेरे
तो शिवबाबा एक दूसरा ना कोई" गीत गाने के लिए कहती
थी। दादी मुझे गाने के लिए उठा देती थी लेकिन
सुनने वालों को कोई आनंद नहीं आता था परन्तु ऐसा
प्रतीत होता था कि दादी को मेरा गाना बहुत पसंद आ
रहा है। दादी इस बात की कोई चिन्ता नहीं करती थी
कि गाना कैसा लग रहा है लेकिन चाहती थी कि इस
मंत्र को मैं दिल से गाउं और इसमें सफलता मिली।
दादी के जीवन से मुझे यह सीखने को मिला है कि एक
बाबा से सम्पूर्ण प्रेम होने से हम कुछ भी प्राप्त
कर सकते हैं। एक बार दादी ने मुझे प्यार भरी दृष्टि
दी और बोली, "बाबा के प्रेम के कारण ही आप आगे बढ़
रहे हो... बाबा के प्रेम ने ही आपको अथक बनाया है,
बाबा के प्रेम से ही आपको सभी विघ्नों पर विजय पाने
में मदद मिली है।" ज्ञान का अंतिम परिणाम है
सम्पूर्ण स्नेही बनना। स्नेह के सकाश ने ही मुझमें
शक्ति और साहस भरा है। कितनी ही ऐसी बाते हैं जो
इतने वर्षों में दादी ने कहीं है और की हैं जो मेरे
ह्दय में अंकित हैं लेकिन मैं सोचता हूँ कि इन सबसे
भी महत्वपूर्ण है दादी ने मुझे बाबा को प्रेम करना
सिखाया। दादी, "इस सबसे बहुमूल्य उपहार के लिए
शुक्रिया।"
ज्ञान के मोती
परिवार का अभिप्राय हैः जब भी मैं किसी आत्मा को
देखूं तो मैं अत्यंत खुशी का अनुभव करती हूं कि "यह
मेरे बाबा का बच्चा है।" इस अलौकिक दृष्टि से मेरी
अवस्था तुरन्त श्रेष्ठ बन जाती है। परिवार की सेवा
करने से मिलने वाले सुख को हम सबके साथ बांटते
हैं। बाबा को हमारे द्वारा जो कराना है वो करा रहें
हैं, और हम सब विश्व की सेवा करने के लिए एकजुट
हुए हैं। बाबा की श्रीमत का पालन करने में बहुत
खुशी का अनुभव होता है क्योंकि हमारा अहंकार शांत
रहता है। आत्मा, सादगी और सफाई के महत्व को समझ
जाती है। अतिरिक्त सुविधाओं की कोई आवश्यकता महसूस
नहीं होती क्योंकि अब हमारा ध्यान इस बात पर अधिक
केद्रित है कि अंत मति सो गति होती है। अगर मन बाबा
और बाबा की सेवा में समर्पित नहीं है तो हमारे तन
और धन का उपयुक्त प्रयोग नहीं होगा। समर्पण होना
एक गहरा संस्कार है, इसे आत्मा को गहराई से समझने
की आवश्यकता है। बाबा हमें केवल आत्मा की ही समझ
नही देते बल्कि प्रत्येक कर्मेंद्रिय को लाभकारी
ढंग से प्रयोग करना भी सिखाते हैं। तभी देह-अभिमान
भी समाप्त होता है।
जब हम स्वयं को बाबा के प्रेम से इतना भरपूर कर
लेते हैं कि कोई कमी-कमजो़री नहीं रहती और निरन्तर
प्रेम की शक्ति का अनुभव करते रहते हैं तब हमारा
चेहरा ऐसा बन जाता है जिसे देखकर लोगों को अदभुत
अनुभव होता है।
दृष्टि प्वॉईंट
मैं दुसरों और स्वयं को पवित्र और निर्दोष दृष्टि
से देखती हूँ, जब मैं किसी आत्मा को देखूं तो मैं
चेतन अवस्था में हमारे बीच के अनुभवों और इतिहास
को भूल जाती हूँ और उनको नई दृष्टि से देखती हूँ।
मैं उनमें अलौकिक, पवित्र और स्नेहपूर्ण प्रकाश को
देखती हूँ। इस पवित्र दृष्टि से मेरी प्रेम करने
की क्षमता बढ़ जाती है।
कर्म-योग का अभ्यास
जैसे ही मैं कर्म-क्षेत्र पर आती हूँ तो मैं देखती
और महसूस करती हूं कि प्रेम का सागर और प्रकाश मेरे
चारों ओर से और मेरे भीतर से बह रहा है। मैं याद
करती हूँ कि प्रेम का सागर बाबा मुझे शुद्ध प्रेम
की लहरों में लहरा रहे हैं।