28 मई, 2015
स्मृति
मीठे बच्चे: देह
अभिमान भी बहुत कड़ा अभिमान है। अपने को आत्मा समझें
तो बाप के साथ भी बहुत प्यार रहे। अपने से पूछना
है- कहां देह अहंकार में आकर कांटा तो नहीं बनता
हूँ। आत्मा को भूलने से बाप को भी भूल गए हैं।
हमारा बाबा यहां है। बच्चों को अपना बनाते हैं। यह
भी तुम्हारा महान सौभाग्य है। अब हमें बाप के साथ
वापिस घर लौटना है। इसलिए अब घर को याद करो।
मीठे बाबा, सारा
दिन मैं इस स्मृति की पुष्टि करता रहूंगा अब आपके
साथ वापिस घर जाना है। मैं इस संसार में अशरीरी आई
हूँ और अशरीरी ही वापिस जाना है। इसलिए किसी
देहधारी को याद क्यों करूँ? बाबा मेरा आपसे बहुत
प्रेम है। मैं एक अशरीरी आत्मा हूँ और आप मेरे मीठे
प्यारे बाबा हो। आप स्वयं आए हो मुझे अपना बनाने।
मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझती हूँ।
स्मृर्थी
ऊपर की स्मर्ती से
प्राप्त होने वाली शक्ति से मैं स्वयं को निरंतर
सशक्त अनुभव कर रहा हूँ। मुझमें इस बात की जागृती
आ रही है कि मेरी स्मृर्ती से मेरा स्वमान बढ़ता जा
रहा है। मैं इस बात पर ध्यान देता हूँ कि मेरी
स्मृर्ती से मुझमें शक्ति आ रही है और इस
परिवर्तनशील संसार में मैं समभाव और धीरज से कार्य
करता हूँ।
मनो-वृत्ति
बाबा आत्मा से: यह
बना बनाया ड्रामा है, इनसे कोई छूट नहीं सकता। जो
कुछ देखते हो, मच्छर उड़ा, कल्प बाद भी उड़ेगा। इसे
समझने में बड़ी अच्छी बुद्धी चाहिए। यह कर्मक्षेत्र
है। यहां परमधाम से आऐ हैं पार्ट बजाने।
अनास्कत वृत्ति
अपनाने का मेरा दृढ़ संकल्प है। मैं वैराग्य वृत्ति
से इस बेहद फिल्म की शूटिंग होते होए देखता हूँ।
मैं यह याद करता हूँ कि यह शरीर मेरा एक वस्त्र है
और बाबा ने मुझे उधार दिया है। बाबा समस्त संसार
की सेवा कराने के लिए इन पुराने वस्त्रों को शक्ति
से भर रहे हैं। बाबा की जिम्मेवारी है मेरी नहीं।
जो एक निर्देशक सबको चला रहा है वह मुझे भी चला रहा
है। इस प्रकार की समझ से इस कर्मक्षेत्र पर अपना
पार्ट बजाते हुए मुझे बेहद की अनास्कत वृत्ति
अपनाने मे मदद मिलती है।
दृष्टि
बाबा आत्मा से: बाप
को बाप द्वारा जानने से बाप का वर्सा मिलता है।
बेहद के बाप से वर्सा तो सभी को मिलता है। एक भी
नहीं रहता जिसको वर्सा नहीं मिले।
हर आत्मा मेरा भाई
है। हरेक बाबा से वर्सा प्राप्त कर रहा है। मैं आज
यह अपनी दृष्टि में रखता हूँ और साथ ही यह भी याद
रखता हूँ कि मैं केवल बाबा से वर्सा प्राप्त करूंगा
किसी और से नहीं।
लहर उत्पन्न करना
मुझे शाम 7-7:30 के
योग के दौरान पूरे ग्लोब पर पावन याद और वृत्ति की
सुंदर लहर उत्पन्न करने में भाग लेना है और मन्सा
सेवा करनी है। उपर की स्मृर्ति, मनो-वृत्ति और
दृष्टि का प्रयोग करके विनिम्रता से निमित् बनकर
मैं पूरे विश्व को सकाश दूँगा।