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AVYAKT MURLI
26 / 02 / 95
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26-02-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग उत्सव का युग है उत्सव मनाना अर्थात् अविनाशी उमंग¬उत्साह में रहना
आज त्रिदेव रचता त्रिमूर्ति शिव बाप अपने रूहानी डायमण्ड्स के साथ आ डायमण्ड जुबली वा डायमण्ड जयन्ती मनाने आये हैं। इसी विचित्र जयन्ती को डायमण्ड जयन्ती कहते हो। क्योंकि बाप अवतरित होते ही हैं कौड़ी समान आत्माओं को हीरे तुल्य बनाने। यही एक वण्डरफुल जयन्ती है जो सारे कल्प में, सारे विश्व में सबसे न्यारी और प्यारी है। कोई भी जयन्ती मनाते हैं तो आत्माओं की, देहधारियों की जयन्ती मनाते हैं। लेकिन यह शिव जयन्ती शरीरधारी आत्मा की नहीं है, निराकार बिन्दु रूप की जयन्ती है। शिव जयन्ती कहने से ज्योतिबिन्दु रूप ही सामने आता है। तो सारे कल्प में अशरीरी परम आत्मा की जयन्ती नहीं मनाई जाती। एक ही त्रिमूर्ति शिव बाप की विचित्र जयन्ती है, जो अशरीरी है। और यही एक शिव जयन्ती है जो बाप और बच्चों की साथ¬साथ जयन्ती है। आज सिर्फ बाप की जयन्ती मनाने आये हो वा ब्राह्मण आत्माओं की भी जयन्ती मनाने आये हो? सभी को बताते हो ना कि शिव जयन्ती सो त्रिमूर्ति जयन्ती, ब्राह्मण जयन्ती, तो इतनी आत्माओं की परमात्मा बाप के साथ¬साथ की जयन्ती-यह विचित्र है ना। लौकिक रीति से बाप का जन्म दिन और बच्चे का जन्म दिन एक नहीं होगा। दिन चाहे एक हो लेकिन वर्ष में अन्तर पड़ जायेगा। तो ऐसी विचित्र जयन्ती, न्यारी और प्यारी जयन्ती मनाने कहाँ¬कहाँ से पहुँच गये हो! विश्व के कोने¬कोने से किसलिए आये हो? अपनी जयन्ती मनाने या बाप की? या दोनों की? तो आप बाप को मुबारक देंगे या बाप आपको देंगे? आप बाप को कहते हो मुबारक हो और बाप आपको कहते हैं पदम¬पदम गुणा मुबारक हो। एक¬एक ब्राह्मण आत्मा हीरे से भी मूल्यवान हो। यह स्थूल हीरा तो आपके आगे कुछ भी नहीं है। इस दुनिया में हीरे का मूल्य है इसलिये हीरे¬जैसा कहा जाता है। लेकिन आपके मूल्य के आगे हीरा क्या है! कुछ भी नहीं। यही हीरे तो आपके महलों में, दीवारों में होंगे। हीरे से भी ज्यादा एक¬एक ब्राह्मण आत्मा हो। बापदादा चारों ओर के बच्चों को जो हीरे से भी अमूल्य हैं, सबको सामने देख रहे हैं। बापदादा के आगे सिर्फ मधुबन की सभा नहीं है लेकिन विश्व के चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की सभा है। सबके दिल की मुबारक के स्नेह भरे गीत कहो, बोल कहो बाप समीप से सुन रहे हैं। दिल का आवाज दिलाराम के पास पहले पहुँचता है। तो बापदादा देख रहे हैं कि बच्चों के सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण चारों ओर से मधुबन, बाप के स्वीट होम तक पहुँच रहा है। वैसे भी शिव जयन्ती को उत्सव कहते हैं। यथार्थ रीति से उत्सव आप ब्राह्मण ही मनाते हो। क्योंकि उत्सव का अर्थ ही है-सर्व उत्साह¬उमंग में रहें। तो आप जो भी बैठे हो, सभी के दिल में उत्साह और उमंग कितना है? अविनाशी है या आज के लिये है? अविनाशी है ना? इसलिये बापदादा इस श्रेष्ठ संगमयुग को उत्सव का युग कहते हैं। हर दिन आपके लिये उत्साह सम्पन्न है। हर दिन उत्सव है।
जो गायन है, आप लोग टॉपिक रखते हो ‘अनेकता में एकता’ तो प्रैक्टिकल में अनेक देश, अनेक भाषायें, अनेक रूप¬रंग लेकिन अनेकता में भी सबके दिल में एकता है ना! क्योंकि एक बाप है। चाहे अमेरिका से आये हो, चाहे अफ्रीका से आये हो लेकिन दिल में एक बाप है। एक श्रीमत पर चलने वाले हो। तो बापदादा को अच्छा लगता है कि अनेक भाषाओं में होते हुए भी मन का गीत, मन की भाषा एक है। चाहे किसी भी भाषा वाले हो, काला ताज तो मिला है (सभी हेडफोन से अपनी¬अपनी भाषा में सुन रहे हैं), अभी यही काला ताज बदलकर गोल्डन हो जायेगा। लेकिन सबके मन की भाषा एक है और एक ही शब्द है, ‘मेरा बाबा’। सभी भाषा वाले बोलो ‘मेरा बाबा’। हाँ, यह एक ही है। तो अनेकता में एकता है ना!
तो उत्साह में रहने वाले अर्थात् सदा उत्सव मनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। कभी भी उत्साह कम नहीं होना चाहिये। पहले भी सुनाया था-ब्राह्मण जीवन का सांस है उमंग¬उत्साह। अगर सांस चला जाये तो जीवन सेकेण्ड में खत्म हो जायेगी ना! तो ब्राह्मण जीवन में यदि उमंग¬उत्साह का सांस नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। जो सदा उमंग¬उत्साह में होगा, वो फलक से कहेगा कि ब्राह्मण हैं ही उत्साह¬उमंग के लिये। और जिसका उमंग¬उत्साह कम हो जाता है उसके बोल ही बदल जाते हैं। वो कहेगा-हैं तो सही...., होना तो चाहिये...., हो जायेगा.... तो ये भाषा और उस भाषा में कितना अन्तर है! उसके हर बोल में ‘तो’ जरूर होगा-होना तो चाहिये.... तो ये जो ‘तो¬तो’ होता है ना, ये उमंग¬ उत्साह का प्रेशर कम होने से ही ऐसे बोल, कमज़ोरी के बोल निकलते हैं। तो उमंग¬उत्साह कभी कम नहीं होना चाहिये। उमंग¬उत्साह कम क्यों होता है? बापदादा कहते हैं सदा वाह¬वाह कहो और कहते हैं व्हाई¬व्हाई (Why, Why)। अगर कोई भी परिस्थिति में व्हाई शब्द आ जाता है तो उमंग-उत्साह का प्रेशर कम हो जाता है। बापदादा ने अगले साल भी विशेष डबल फारेनर्स को कहा था कि व्हाई शब्द को ब्राह्मण डिक्शनरी में चेंज करो, जब व्हाई शब्द आये तो फ्लाय शब्द याद रखो तो व्हाई खत्म हो जायेगा। कोई भी परिस्थिति छोटी भी जब बड़ी लगती है तो व्हाई शब्द आता है-ये क्यों, ये क्या.... और फ्लाय कर लो तो परिस्थिति क्या होगी? छोटा¬सा खिलौना। तो जब भी व्हाई शब्द मन में आवे तो कहो ब्राह्मण डिक्शनरी में व्हाई शब्द नहीं है, फ्लाय है। क्योंकि व्हाई¬व्हाई, हाय¬हाय करा देता है। बापदादा को हंसी भी आती है, एक तरफ कहेंगे-नहीं, हमारे जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसका नहीं है। अभी¬अभी यह कहेंगे और अभी¬अभी उत्साह कम हुआ तो कहेंगे-पता नहीं मेरा भाग्य ही ऐसा है! मेरे भाग्य में इतना ही है! तो हाय¬हाय हो गया ना! तो जब भी हाय¬हाय का नजारा आवे तो वाह¬वाह कर लो तो नजारा भी बदल जायेगा और आप भी बदल जायेंगे।
डबल विदेशी आजकल ‘पॉजिटिव थिंकिंग’ का कोर्स कराते हो ना। सभी विदेश में विशेष कोर्स यह कराते हो? तो अपने को भी कराते हो या दूसरों को कराते हो? जिस समय कोई ऐसी परिस्थिति आ जाये तो अपने को ही स्टूडेण्ड बनाकर, खुद ही टीचर बन करके अपने को यह कोर्स कराओ। अपने को करा सकते हो या सिर्फ दूसरे को करा सकते हो? दूसरे को कराना सहज है। जब यह नेचुरल स्थिति हो जाये कि हर व्यक्ति को, बात को पॉजिटिव वृत्ति से देखो, सुनो या सोचो तो कैसी स्थिति रहेगी? आजकल के साइन्स द्वारा भी ऐसे साधन निकले हैं जो रफ माल को भी बहुत सुन्दर रूप में बदल देते हैं। देखा है ना-क्या से क्या बना देते हैं! तो आपकी वृत्ति क्या ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकती? आवे निगेटिव रूप में लेकिन आप निगेटिव को पॉजिटिव वृत्ति से बदल दो। अगर हलचल में आते हैं तो उसका कारण है-निगेटिव सुनना, सोचना वा बोलना या करना। ये मॉडल बनाते हो ना-न सोचो, न देखो, न बोलो, न करो। साइलेन्स की पॉवर क्या निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकती! आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकण्ड में परिवर्तन हो जाये। ऐसे तीव्र गति की अनुभूति कर सकते हो? मन और बुद्धि ऐसा तीव्र गति का यन्त्र बन जाये। बन सकता है कि टाइम लगेगा? कि निगेटिव बात आयेगी तो कहेंगे कि थोड़ा सोचने तो दो, देखें तो सही क्या है! क्विक स्पीड से परिवर्तन हो जाये-इसको कहा जाता है ब्राह्मण जीवन का मजा, मौज। अगर जीना है तो मौज से जीयें। सोच¬सोचकर जीना वो जीना नहीं है। आप लोग औरों को कहते हो कि राजयोग जीने की कला है। तो आप लोग राजयोगी जीवन वाले हो ना! कि कहने वाले हो? जब राजयोग जीने की कला है तो राजयोगियों की कला क्या है? यही है ना? तो उत्सव मनाना अर्थात् मौज में रहना। मन भी मौज में, तन भी मौज में, सम्बन्ध¬सम्पर्क भी मौज में।
कई बच्चे कहते हैं अपने रीति से तो ठीक रहते हैं, अपने मौज में रहते हैं लेकिन सम्बन्ध¬सम्पर्क में मौज में रहें, यह कभी¬कभी होता है। लेकिन सम्बन्ध¬सम्पर्क ही आपके स्थिति का पेपर है। यदि स्टूडेण्ट कहे वैसे तो मैं पास विद् ऑनर हूँ लेकिन पेपर के टाइम मार्क्स कम हो जाती है तो ऐसे को क्या कहेंगे? तो ऐसे तो नहीं हो ना! फुल पास होने वाले हो ना? बापदादा ने सुनाया है कि जो सदा बाप के पास रहते हैं वो पास हैं। पास नहीं रहते तो पास नहीं हैं। तो सदा कहाँ रहते हो? दूर रहते हो, पास नहीं रहते हो! डबल विदेशियों को तो डबल पास होना चाहिये ना! अच्छा।
तो डबल विदेशियों ने इस बारी हाइ जम्प लगा दी है। मधुबन में हाई जम्प लगाकर पहुँच गये हैं। (इस बार हर वर्ष से ज्यादा संख्या में डबल विदेशी मधुबन पहुँचे हुए हैं) अच्छा, डबल विदेशियों को भी कइयों को पटरानी बनने का चांस तो अच्छा मिला है। पटरानी बनने में मजा है कि नहीं? आप लोगों की तो अटैची इतनी है जो उस पर ही सो सकते हैं। क्योंकि एक बड़ी लाते हैं, एक छोटी लाते हैं, तो छोटी को तकिया बनाओ। जगह बच जायेगी ना! अच्छा लगता है बापदादा सीन देखते हैं कैसे भारी¬भारी अटैचियाँ घसीट कर ला रहे हैं! अच्छी सीन लगती है ना! संगम पर ये मेहनत भी थोड़े समय की है फिर तो प्रकृति भी आपकी दासी होगी तो दासियाँ भी बहुत होंगी। फिर आपको सामान उठाने की जरूरत नहीं। अभी अपना राज्य स्थापन हो रहा है, इस समय गुप्त वेश में हो, सेवाधारी हो फिर राज्य अधिकारी बनेंगे। तो सेवाधारियों को तो सब प्रकार की सेवा करनी पड़ती है। जितनी अभी तन, मन, धन और सम्पर्क से सेवा करते हो उतना ही वहाँ सेवाधारी मिलेंगे। सबसे पहले तो ये प्रकृति के पांच ही तत्व आपके सेवाधारी बनेंगे। अपना राज्य¬भाग्य स्मृति में है ना! कितने बारी राज्य अधिकारी बने हैं! अनगिनत बार बने हैं और बनते ही रहेंगे। लेकिन राज्य अधिकारी से भी अब का सेवाधारी जीवन श्रेष्ठ है। क्योंकि अभी बाप और बच्चों का साथ है। चाहे किसी भी प्रकार की सेवा है लेकिन सेवा का प्रत्यक्षफल अभी मिलता है। बाप का स्नेह, सहयोग और बाप द्वारा मिले हुए खज़ाने प्रत्यक्षफल के रूप में मिलते हैं। जब भी कोई विशेष सेवा करते हो और युक्तियुक्त सेवा करते हो तो कितनी खुशी होती है! उस समय के चेहरे का फोटो निकालो तो कैसा होता है! तो एक तरफ सेवा करते हो, दूसरे तरफ प्रत्यक्षफल आपके लिये सदा तैयार है ही है। एक हाथ से सेवा करो, दूसरे हाथ से फल खाओ-ऐसे अनुभव होता है? कि सेवा में बड़ी मेहनत है? सेवा में हलचल होती है या नहीं? कभी¬कभी होती है। ये हलचल ही परिपक्व बनाती है, अनुभवी बनाती है। हलचल में इसीलिये आते हो जो सिर्फ वर्तमान को देखते हो। लेकिन वर्तमान में छिपा हुआ भविष्य जो है वो स्पष्ट नहीं दिखाई देता है, इसलिये हलचल में आ जाते हैं। कोई भी बड़े ते बड़ी नाजुक परिस्थिति वास्तव में आगे के लिये बहुत बड़ा पाठ पढ़ाती है, परिस्थिति नहीं है लेकिन वह आपकी टीचर है। उस नजर से देखो कि इस परिस्थिति ने क्या पाठ पढ़ाया? इसको कहा जाता है निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना। सिर्फ परिस्थिति को देखते हो तो घबरा जाते हो। और परिस्थिति माया द्वारा सदा नये¬नये रूप से आयेगी। वैसे ही नहीं आयेगी, जिस रूप में आ चुकी है, उस रूप में नहीं आयेगी। नये रूप में आयेगी। तो उसमें घबरा जाते हैं-ये तो नई बात है, ये तो होता नहीं है, ये तो होना नहीं चाहिये....। लेकिन समझ लो कि माया अन्त तक बहुरूपी बन बहुरूप दिखायेगी। माया को बहुरूपी बनना बहुत जल्दी और अच्छा आता है। जैसे आपकी स्थिति होगी ना वैसी परिस्थिति बनाकर आयेगी। आज मानो आप थोड़ा¬सा अलबेले जीवन में हो तो माया भी उसी अलबेले परिस्थिति के रूप में आयेगी। आज मूड थोड़ी ऑफ है, जैसे होनी चाहिये वैसे नहीं है, तो मूड ऑफ की परिस्थिति के रूप में ही आयेगी। फिर सोचते हैं कि पहले ही मैं सोच रही थी फिर ये क्या हुआ? इसलिये माया को देखने के लिये, जानने के लिये त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो। आगे, पीछे, सामने त्रिनेत्री बनो।
समझा?
Answer 4
एडजस्ट करने की पॉवर सदा विजयी बना देती है। ब्रह्मा बाप को देखा तो बच्चों से बच्चा बनकर एडजस्ट हो जाता, बड़ों से बड़ा बनकर एडजस्ट हो जाता। चाहे बेगरी लाइफ, चाहे साधनों की लाइफ, दोनों में एडजस्ट होना और खुशी¬खुशी से होना, सोचकर नहीं। यहाँ दु:खी तो नहीं होते हो लेकिन खुशी के बजाय थोड़ा सोच में पड़ जाते हो-ये क्या हुआ, कैसे हुआ....। तो सोचने वाले को एडजस्ट होने के मजे में कुछ समय लग जाता है। अपने को चेक करो कि कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे अच्छी हो, चाहे हिलाने वाली हो लेकिन हर समय, हर सरकमस्टांस के अन्दर अपने को एडजस्ट कर सकते हैं? डबल फॉरेनर्स को अकेलापन भी अच्छा लगता है और कम्पैनियन भी बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन कम्पनी में हो या अकेले हो, दोनों में एडजस्ट होना-ये है ब्राह्मण जीवन। ऐसे नहीं, संगठन हो और माथा भारी हो जाये-नहीं, मुझे एकान्त चाहिये, ये घमसान में नहीं, मुझे अकेला चाहिये....। मन अकेला अर्थात् बाहरमुखता से अन्तर्मुख में चले जाओ तो अकेलापन है। कोई¬कोई कहते हैं ना-अकेला कमरा चाहिये, दो भी नहीं चाहिये। अकेला मिले तो भी मौज से सोओ और दस के बीच में भी सोना हो तो मौज से सोओ। फॉरेनर्स दस के बीच में सो सकते हैं कि मुश्किल है? सो सकते हैं? (हाँ जी) अच्छा, अभी अगले वर्ष 20-20 को सुलायेंगे। देखो समय बदलता रहता है और बदलता रहेगा। दुनिया की हालतें नाजुक हो रही हैं और भी होंगी। होनी ही है। अभी सिर्फ एक स्थान पर अलग¬अलग होती हैं, आखिर में सब तरफ इकट्ठी होगी। तो नाजुक समय तो आना ही है। समय नाजुक हो लेकिन आपकी नेचर नाजुक नहीं हो। कइयों की नेचर बहुत नाजुक होती है ना, थोड़ा¬सा आवाज हुआ, थोड़ा¬सा कुछ हुआ तो डिस्टर्ब हो गये। इसको कहते हैं नाजुक स्थिति, नाजुक नेचर। तो नाजुक नेचर नहीं हो। जैसा समय वैसा अपने को एडजस्ट कर सको। ये अभ्यास आगे चलकर आपको बहुत काम में आयेगा। क्योंकि हालतें सदा एक जैसी नहीं रहनी है। और फाइनल पेपर आपका नाजुक समय पर होना है। आराम के समय पर नहीं होना है। नाजुक समय पर होना है। तो जितना अभी से अपने को एडजस्ट करने की शक्ति होगी तो नाजुक समय पर पास विद् ऑनर हो सकेंगे। पेपर बहुत टाइम का नहीं है, पेपर तो बहुत थोड़े समय का है लेकिन चारों ओर की नाजुक परिस्थितियाँ, उनके बीच में पेपर देना है। इसलिये अपने को नेचर में भी शक्तिशाली बनाओ। क्या करें, मेरी नेचर ये है, मेरी आदत ही ऐसी है, ये नहीं। इसको नाजुक नेचर कहा जाता है। देखो, बापदादा ने स्थापना के आदि में सब अनुभव करा लिया। जब आदि हुई तो राजकुमार और राजकुमारियों से भी ज्यादा पालना, साधन, सब अनुभव कराया और आगे चलकर बेगरी लाइफ का भी पूरा अनुभव कराया। तो जिन्होंने दोनों अनुभव किया उनकी आदत बन गई। तो आप लोगों के आगे तो ऐसा समय आया नहीं है लेकिन आना है। जहाँ भी रहते हो, सभी हिलने हैं, सब आधार टूटने हैं। तो ऐसे टाइम पर क्या चाहिये? एक ही बाप का आधार। आप लोग तो बहुत¬बहुत¬बहुत लक्की हो, जो आने का समय आपका सहज साधनों का है। सहज साधनों के साथ¬साथ आपका ब्राह्मण जन्म है। लेकिन साधन और साधना-साधनों को देखते साधना को नहीं भूल जाना। क्योंकि आखिर में साधना ही काम में आनी है।
5 th answer
अमेरिका क्या जलवा दिखायेगी? आज शिवरात्रि का झण्डा लहरायेंगे ना तो प्रत्यक्षता का झण्डा पहले देखें अमेरिका में लहराते हैं या अफ्रीका में, या भारत में? अमेरिका में? यू.एन. की बिल्डिंग पर शिव बाबा का झण्डा लहराना। जैसे भारत वाले समझते हैं ना लाल किले पर झण्डा लहरायेंगे तो सबकी नजर होगी ना, तो यू.एन. की बिल्डिंग पर झण्डा लहरायेंगे तो सब क्या बोलेंगे? वन्स मोर, वन्स मोर। वह भी दिन आना ही है। और यूरोप कहाँ झण्डा लहरायेगा? लण्डन के महल में। जैसे वहाँ की परेड देखने आते हैं ना तो ऐसे इस झण्डे को देखने आवे। थोड़ा¬सा हलचल होने दो, उन्हों की हलचल होगी, अपना झण्डा लहरायेंगे और अफ्रीका कहाँ झण्डा लहरायेगा? अफ्रीका में जो नामीग्रामी स्थान हो वहाँ झण्डा लहराना। अभी उस मिलेट्री की परेड निकालते हैं और फिर ब्रह्माकुमारियों की यात्रा निकले। ऑस्ट्रेलिया वाले क्या करेंगे? इस बारी किसको ज्यादा चांस दिया है? यू.के. को। यू.के. वाले बहुत आये हैं। यू.के. तो लक्की हुआ। शिवरात्रि का चांस यू.के. को मिला है। यू.के. वालों ने मेहनत भी अच्छी की है। मलेशिया की सेवा भी अच्छी वृद्धि को प्राप्त कर रही है। अच्छे हैं। यू.के. तो है ही फाउण्डेशन और अमेरिका है सर्विस के वृद्धि की आवाज फैलाने का बड़ा माइक। अमेरिका की यह विशेषता है। और अफ्रीका की विशेषता क्या है? अफ्रीका वालों की कमाल है जो दुनिया भय में है और ये निर्भय हैं। रीयल में श्याम से सुन्दर बनाने वाला तो अफ्रीका है ना! निर्भयता की कमाल इन्हों की है। हिम्मत रखते हैं ना तो बाप की मदद है। अफ्रीका की भी सेवा अच्छी वृद्धि को पा रही है। सबसे पीछे रशिया खुला है, वहाँ की भी सेवा देखो कितनी है! रशिया वाले भी आये हैं ना! ये तो एक ही तरफ बैठते हैं। इन्हों की युनिटी बहुत अच्छी है, जहाँ एक जायेगा ना वहाँ सब जायेंगे। अच्छा है, लास्ट सो फर्स्ट हो रहे हैं। अच्छी रिजल्ट है। बनाते जाओ। और ऑस्ट्रेलिया में बापदादा की बहुत¬बहुत¬बहुत श्रेष्ठ आशाओं के दीपक जग रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया ऐसी कमाल करेंगे जो कोई ने नहीं की। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में सब प्रकार की बुद्धि वाले हैं। इन्वेन्टर भी हैं, कार्य को, प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने वाली बुद्धि भी है, इसलिये आदि में भी ऑस्ट्रेलिया ने बहुत अपनी कमाल दिखाई। मैसेन्जर बनकर जा रहे हैं। सभी के मन में, सारे ग्रुप के मन में ये उमंग है कि ज्यादा से ज्यादा मैसेज देकर अनेक आत्माओं को परिचय दें और स्वीट होम में पहुँचाये।
यूरोप अपनी अंचली यू.के. में डालता है। तो जो भी विशेष देश है, पहुँचना तो कोने¬कोने में है, लेकिन कोने¬कोने में मैसेज जरूर देना। उलहना नहीं सुनना पड़े। मॉरीशियस देश के हिसाब से जितना ही छोटा है उतना ही सेवा में बड़ा है। मॉरीशियस की ये विशेषता है कि आई.पी. भी होमली हैं। चाहे प्राइम मिनिस्टर है या मिनिस्टर हैं लेकिन होमली रूप से मिलते भी हैं और सहयोगी भी बनते हैं। श्रीलंका वाले हाथ उठाओ। ये भाषा के कारण इकट्ठे बैठे हैं। श्रीलंका तो नाम ही श्री है। श्री का अर्थ ही महान है। तो श्रीलंका में जहाँ अशान्ति है वहाँ शान्ति स्थापन करना और शान्ति का सन्देश देना ये कितना श्रेष्ठ कार्य है तो श्रीलंका सन्देश देने का श्री¬कार्य कर रहे हैं। मिडिल ईस्ट भी आया है। दुबई के भी आये हैं। हैं थोड़े लेकिन महावीर हैं। मिडिल ईस्ट भी धीरे¬धीरे आगे बढ़ रहा है। क्योंकि गुप्त में भी गुप्त वेश धारण करके सेवा करनी पड़ती है ना तो डबल सेवा करने की मुबारक। और जगह सेवा करना सहज है लेकिन यहाँ सेवा डबल गुप्त रूप में करना पड़ता है। फिर भी हिम्मत वाले हैं। हिम्मत छोड़ने वाले नहीं। करेबियन में फाउण्डेशन तो अच्छा पड़ा। अभी कितने सेन्टर हो गये करेबियन में। (10-12) फिर भी हिम्मत अच्छी रखी है। करेबियन भी कम नहीं है, कमाल करने वाला है। हर एक की अपनी¬अपनी विशेषता है।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- कौन सी विचित्र जयन्ती को डायमण्ड जयन्ती कहते है ?
प्रश्न 2 :- डबल विदेशी आजकल ‘पॉजिटिव थिंकिंग’ का कोर्स कराते है, क्यों ?
प्रश्न 3 :- निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना किसे कहते है ?
प्रश्न 4 :- आखिर में किस प्रकार साधना ही काम में आनी है ?
प्रश्न 5 :- बापदादा अमृतवेले जिसको देखते है सब एक दो से आगे है , कैसे ?
FILL IN THE BLANKS:-
(सदा, हीरे, गीत, कौड़ी, एक, फलक, अनेक, पास, हीरे, ब्राह्मण, एक, मूल्यवान, आवाज़, पहुंचता,आत्माओं)
1 बाप अवतरित होते है _______ समान _______ को _______ तुल्य बनाने ।
2 एक _______ ब्राह्मण आत्मा _______ से भी _______ हो ।
3 दिल का _______ दिलाराम के _______ पहले _______ है ।
4 बापदादा को अच्छा लगता है कि _______ भाषाओं में होते हुए भी मन का _______, मन की भाषा _______ है ।
5 जो _______ उमंग¬उत्साह में होगा, वो _______ से कहेगा कि _______ हैं ही उत्साह¬उमंग के लिये ।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :- संगमयुग उत्सव का युग है उत्सव मनाना अर्थात् अविनाशी उमंग¬उत्साह में रहना ।
2 :- सबके मन की भाषा अनेक है और एक ही शब्द है, ‘मेरा बाबा’ ।
3 :- ब्राह्मण जीवन में यदि उमंग¬उत्साह का सांस नहीं तो भी साधारण जीवन नही है ।
4 :- राज्य अधिकारी से भी अब का सेवाधारी जीवन श्रेष्ठ है ।
5 :- जितना अभी से अपने को एडजस्ट करने की शक्ति होगी तो नाजुक समय पर पास विद् ऑनर हो सकेंगे ।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- कौन सी विचित्र जयन्ती को डायमण्ड जयन्ती कहते है ?
उत्तर 1 :-✎ इसी विचित्र जयन्ती को डायमण्ड जयन्ती कहते है :-
✎..❶ यही एक वण्डरफुल जयन्ती है जो सारे कल्प में, सारे विश्व में सबसे न्यारी और प्यारी है। कोई भी जयन्ती मनाते हैं तो आत्माओं की, देहधारियों की जयन्ती मनाते हैं। लेकिन यह शिव जयन्ती शरीरधारी आत्मा की नहीं है, निराकार बिन्दु रूप की जयन्ती है। शिव जयन्ती कहने से ज्योतिबिन्दु रूप ही सामने आता है। तो सारे कल्प में अशरीरी परम आत्मा की जयन्ती नहीं मनाई जाती। एक ही त्रिमूर्ति शिव बाप की विचित्र जयन्ती है, जो अशरीरी है। और यही एक शिव जयन्ती है जो बाप और बच्चों की साथ¬साथ जयन्ती है।
✎..❷ सभी को बताते हो ना कि शिव जयन्ती सो त्रिमूर्ति जयन्ती, ब्राह्मण जयन्ती, तो इतनी आत्माओं की परमात्मा बाप के साथ¬साथ की जयन्ती-यह विचित्र है ना। तो ऐसी विचित्र जयन्ती, न्यारी और प्यारी जयन्ती मनाने कहाँ¬कहाँ से पहुँच गये हो! आप बाप को कहते हो मुबारक हो और बाप आपको कहते हैं पदम¬पदम गुणा मुबारक हो।
✎..❸ इस दुनिया में हीरे का मूल्य है इसलिये हीरे¬जैसा कहा जाता है। हीरे से भी ज्यादा एक¬एक ब्राह्मण आत्मा हो। वैसे भी शिव जयन्ती को उत्सव कहते हैं। यथार्थ रीति से उत्सव आप ब्राह्मण ही मनाते हो। क्योंकि उत्सव का अर्थ ही है-सर्व उत्साह¬उमंग में रहें। इसलिये बापदादा इस श्रेष्ठ संगमयुग को उत्सव का युग कहते हैं। हर दिन आपके लिये उत्साह सम्पन्न है। हर दिन उत्सव है।
प्रश्न 2 :- डबल विदेशी आजकल ‘पॉजिटिव थिंकिंग’ का कोर्स कराते है, क्यों ?
उत्तर 2 :- ✎ ब्राह्मण जीवन के मौज को अनुभव करने हेतु कोर्स कराते है :-
✎..❶ जिस समय कोई ऐसी परिस्थिति आ जाये तो अपने को ही स्टूडेण्ड बनाकर, खुद ही टीचर बन करके अपने को यह कोर्स कराओ। अपने को करा सकते हो या सिर्फ दूसरे को करा सकते हो? दूसरे को कराना सहज है। जब यह नेचुरल स्थिति हो जाये कि हर व्यक्ति को, बात को पॉजिटिव वृत्ति से देखो, सुनो या सोचो तो कैसी स्थिति रहेगी? आवे निगेटिव रूप में लेकिन आप निगेटिव को पॉजिटिव वृत्ति से बदल दो। साइलेन्स की पॉवर क्या निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकती! आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकण्ड में परिवर्तन हो जाये।
✎..❷ मन और बुद्धि ऐसा तीव्र गति का यन्त्र बन जाये। क्विक स्पीड से परिवर्तन हो जाये-इसको कहा जाता है ब्राह्मण जीवन का मजा, मौज। अगर जीना है तो मौज से जीयें। तो उत्सव मनाना अर्थात् मौज में रहना। मन भी मौज में, तन भी मौज में, सम्बन्ध¬सम्पर्क भी मौज में।
प्रश्न 3 :- निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना किसे कहते है ?
उत्तर 3 :-✎ निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना कहते है :-
✎..❶ सेवाधारियों को तो सब प्रकार की सेवा करनी पड़ती है। जितनी अभी तन, मन, धन और सम्पर्क से सेवा करते हो उतना ही वहाँ सेवाधारी मिलेंगे। सबसे पहले तो ये प्रकृति के पांच ही तत्व आपके सेवाधारी बनेंगे। अपना राज्य¬भाग्य स्मृति में है ना!कितने बारी राज्य अधिकारी बने हैं! अनगिनत बार बने हैं और बनते ही रहेंगे।
✎..❷ लेकिन राज्य अधिकारी से भी अब का सेवाधारी जीवन श्रेष्ठ है। क्योंकि अभी बाप और बच्चों का साथ है। बाप का स्नेह, सहयोग और बाप द्वारा मिले हुए खज़ाने प्रत्यक्षफल के रूप में मिलते हैं। जब भी कोई विशेष सेवा करते हो और युक्तियुक्त सेवा करते हो तो कितनी खुशी होती है! तो एक तरफ सेवा करते हो, दूसरे तरफ प्रत्यक्षफल आपके लिये सदा तैयार है ही है।
✎..❸ ये हलचल ही परिपक्व बनाती है, अनुभवी बनाती है। हलचल में इसीलिये आते हो जो सिर्फ वर्तमान को देखते हो। लेकिन वर्तमान में छिपा हुआ भविष्य जो है वो स्पष्ट नहीं दिखाई देता है, इसलिये हलचल में आ जाते हैं। कोई भी बड़े ते बड़ी नाजुक परिस्थिति वास्तव में आगे के लिये बहुत बड़ा पाठ पढ़ाती है, परिस्थिति नहीं है लेकिन वह आपकी टीचर है। इसको कहा जाता है निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना।
प्रश्न 4 :- आखिर में किस प्रकार साधना ही काम में आनी है ?
उत्तर 4 :- ✎ अंतिम समय में साधन नही, साधना ही काम आनी है :-
✎..❶ एडजस्ट करने की पॉवर सदा विजयी बना देती है। ब्रह्मा बाप को देखा तो बच्चों से बच्चा बनकर एडजस्ट हो जाता, बड़ों से बड़ा बनकर एडजस्ट हो जाता। चाहे बेगरी लाइफ, चाहे साधनों की लाइफ, दोनों में एडजस्ट होना और खुशी¬खुशी से होना, सोचकर नहीं। अपने को चेक करो कि कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे अच्छी हो, चाहे हिलाने वाली हो लेकिन हर समय, हर सरकमस्टांस के अन्दर अपने को एडजस्ट कर सकते हैं।
✎..❷ डबल फॉरेनर्स को अकेलापन भी अच्छा लगता है और कम्पैनियन भी बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन कम्पनी में हो या अकेले हो, दोनों में एडजस्ट होना-ये है ब्राह्मण जीवन। दुनिया की हालतें नाजुक हो रही हैं और भी होंगी। समय नाजुक हो लेकिन आपकी नेचर नाजुक नहीं हो।
✎..❸ जैसा समय वैसा अपने को एडजस्ट कर सको। ये अभ्यास आगे चलकर आपको बहुत काम में आयेगा। पेपर बहुत टाइम का नहीं है, पेपर तो बहुत थोड़े समय का है लेकिन चारों ओर की नाजुक परिस्थितियाँ, उनके बीच में पेपर देना है। इसलिये अपने को नेचर में भी शक्तिशाली बनाओ। तो ऐसे टाइम पर क्या चाहिये? एक ही बाप का आधार। सहज साधनों के साथ¬साथ आपका ब्राह्मण जन्म है। लेकिन साधन और साधना-साधनों को देखते साधना को नहीं भूल जाना।
प्रश्न 5 :- बापदादा अमृतवेले जिसको देखते है सब एक दो से आगे है , कैसे ?
उत्तर 5 :-✎ निम्न प्रकार सब भिन्न देश की आत्मायें एक दो से आगे है :-
✎..❶ यू.के. वाले बहुत आये हैं। यू.के. वालों ने मेहनत भी अच्छी की है। मलेशिया की सेवा भी अच्छी वृद्धि को प्राप्त कर रही है। अफ्रीका वालों की कमाल है जो दुनिया भय में है और ये निर्भय हैं। रीयल में श्याम से सुन्दर बनाने वाला तो अफ्रीका है ना! सबसे पीछे रशिया खुला है, वहाँ की भी सेवा देखो कितनी है! रशिया वाले भी आये हैं ना! ये तो एक ही तरफ बैठते हैं। इन्हों की युनिटी बहुत अच्छी है, जहाँ एक जायेगा ना वहाँ सब जायेंगे।
✎..❷ ऑस्ट्रेलिया में बापदादा की श्रेष्ठ आशाओं के दीपक जग रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया ऐसी कमाल करेंगे जो कोई ने नहीं की। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में सब प्रकार की बुद्धि वाले हैं। यूरोप अपनी अंचली यू.के. में डालता है। मॉरीशियस देश के हिसाब से जितना ही छोटा है उतना ही सेवा में बड़ा है।
✎..❸ श्रीलंका वाले हाथ उठाओ। श्रीलंका में जहाँ अशान्ति है वहाँ शान्ति स्थापन करना और शान्ति का सन्देश देना ये कितना श्रेष्ठ कार्य है तो श्रीलंका सन्देश देने का श्री¬कार्य कर रहे हैं। मिडिल ईस्ट भी आया है। दुबई के भी आये हैं। हैं थोड़े लेकिन महावीर हैं। मिडिल ईस्ट भी धीरे¬धीरे आगे बढ़ रहा है। करेबियन में फाउण्डेशन तो अच्छा पड़ा। हिम्मत अच्छी रखी है। हर एक की अपनी¬अपनी विशेषता है।
FILL IN THE BLANKS:-
(सदा, हीरे, गीत, कौड़ी, एक, फलक, अनेक, पास, हीरे, ब्राह्मण, एक, मूल्यवान, आवाज़, पहुंचता,आत्माओं)
1 बाप अवतरित होते है _______ समान _______ को _______ तुल्य बनाने ।
✎.. कौड़ी / आत्माओं / हीरे
2 एक _______ ब्राह्मण आत्मा _______ से भी _______ हो ।
✎.. एक / हीरे / मूल्यवान
3 दिल का _______ दिलाराम के _______ पहले _______ है ।
✎.. आवाज / पास / पहुँचता
4 बापदादा को अच्छा लगता है कि _______ भाषाओं में होते हुए भी मन का _______, मन की भाषा _______ है ।
✎.. अनेक / गीत / एक
5 जो _______ उमंग¬उत्साह में होगा, वो _______ से कहेगा कि _______ हैं ही उत्साह¬उमंग के लिये ।
✎.. सदा / फलक / ब्राह्मण
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :- संगमयुग उत्सव का युग है उत्सव मनाना अर्थात् अविनाशी उमंग¬उत्साह में रहना। 【✔️】
2 :- सबके मन की भाषा अनेक है और एक ही शब्द है, ‘मेरा बाबा’। 【✖️】
✎.. सबके मन की भाषा एक है और एक ही शब्द है, ‘मेरा बाबा’।
3 :- ब्राह्मण जीवन में यदि उमंग¬उत्साह का सांस नहीं तो भी साधारण जीवन नही है।【✖️】
✎.. ब्राह्मण जीवन में यदि उमंग¬उत्साह का सांस नहीं तो ब्राह्मण जीवन नही।
4 :- राज्य अधिकारी से भी अब का सेवाधारी जीवन श्रेष्ठ है।【✔️】
5 :- जितना अभी से अपने को एडजस्ट करने की शक्ति होगी तो नाजुक समय पर पास विद् ऑनर हो सकेंगे। 【✔️】