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AVYAKT MURLI

09 / 01 / 95

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   09-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

निश्चयबुद्धि की निशानियाँ - निश्चित विजयी और सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव

आज सर्व बच्चों के रक्षक और शिक्षक बापदादा अपने सभी ब्राह्मण बच्चों के फाउण्डेशन को देख रहे थे। ये तो सभी जानते हो कि वर्तमान श्रेष्ठ जीवन का फाउण्डेशन निश्चय है। जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होती है। हर समय चलन और चेहरे से उनकी झलक अनुभव होती है क्योंकि ब्राह्मण जीवन में सिर्फ जानना नहीं है कि ‘मैं ये हूँ और बाप ये है’, लेकिन जानने का अर्थ है जो जानते हैं वो मानना और चलना।

बापदादा देख रहे थे कि जो भी बच्चे अपने को ब्राह्मण कहलाते हैं वो सभी ये फलक से कहते हैं कि हम निश्चयबुद्धि हैं। तो बापदादा सभी निश्चयबुद्धि बच्चों से पूछते हैं, जब आप सभी कहते हो कि हम निश्चयबुद्धि विजयी हैं तो कभी विजय, कभी हार क्यों होती है? जब कभी¬कभी थोड़ी हलचल होती है तो क्या उस समय निश्चय खत्म हो जाता है? जब निश्चयबुद्धि सदा हो तो विजयी सदा हो कि बीच¬बीच में घुटका और झुटका होता है? निश्चय का फाउण्डेशन चारों ओर से मजबूत है या चारों ओर के बजाय कभी एक ओर कभी दो ओर ढीले हो जाते हैं? कोई भी चीज़ को मजबूत किया जाता है तो चारों ओर से टाइट किया जाता है ना। अगर एक साइड भी थोड़ा¬सा हलचल वाला हो तो हिलेगा ना! तो चारों प्रकार का निश्चय अर्थात् बाप में, आप में, ड्रामा में और ब्राह्मण परिवार में निश्चय। ये चार ही तरफ के निश्चय को जानना नहीं लेकिन मानकर चलना। अगर जानते हैं लेकिन चलते नहीं हैं तो विजय डगमग होती है। जिस समय विजय हलचल में आती है, तो चेक करना कि चारों तरफ से कौन¬सा तरफ हलचल में है? बापदादा देखते हैं कि कई बच्चों को बाप में पूरा निश्चय है, इसमें पास हैं लेकिन अपने आपमें जो निश्चय चाहिए उसमें अन्तर पड़ जाता है। जानते भी हैं, कहते भी हैं कि मैं ये हूँ, मैं ये हूँ, लेकिन जो जानते हैं, मानते हैं वो स्वरूप में, चलन में, कर्म में हो-इसमें ही अन्तर पड़ जाता है। एक तरफ सोचते हैं कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ, विश्व कल्याणकारी हूँ, दूसरे तरफ छोटी¬सी परिस्थिति पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते। हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान् लेकिन ये परिस्थिति बहुत बड़ी है, ये बात ही ऐसी है! तो क्या ये निश्चय है कि सिर्फ जानना है लेकिन मानकर चलना नहीं? कहते वा सोचते हैं कि मैं विश्व कल्याणकारी हूँ लेकिन विश्व को तो छोड़ो, स्व कल्याण में भी कमज़ोर होते हैं। अगर उस समय उन्हें कहो कि क्या स्वयं को परिवर्तन कर स्व कल्याणकारी नहीं बन सकते? तो जवाब देते हैं कि हैं तो विश्व कल्याणकारी लेकिन स्व कल्याण बहुत मुश्किल है! ये बात बदलना मुश्किल है! तो विश्व कल्याणकारी कहेंगे या कमज़ोर? तो स्व में भी परिस्थिति प्रमाण, समय प्रमाण, सम्बन्ध¬सम्पर्क प्रमाण निश्चय स्वरूप में आये, ऐसे निश्चय बुद्धि की विजय हुई ही पड़ी है। जैसे सभी को ये पक्का निश्चय है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, इसके लिए कोई दुनिया के वैज्ञानिक भी आपको हिलाने की कोशिश करें कि आत्मा नहीं शरीर हो, तो मानेंगे नहीं और ही उसको मनायेंगे। तो जैसे ये पक्का है कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ और कौन¬सी आत्मा हूँ, ये भी पक्का है, ऐसे निश्चयबुद्धि की विजय भी इतनी निश्चित है। हार असम्भव है और विजय निश्चित है। और ये भी निश्चित है कि बातें भी अन्त तक आनी हैं। लेकिन उसमें विजयी बनने के लिए एक ही समय पर चारों ही तरफ का निश्चय पक्का चाहिये। तीन में निश्चय है और एक में नहीं है तो विजय निश्चित नहीं है लेकिन मेहनत से विजय होगी। निश्चित विजय वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

कई बार कई कहते हैं बापदादा तो बहुत अच्छा, वो तो पक्का है कि बाप है और हम बच्चे हैं, हमारा बाप से ही सम्बन्ध है लेकिन दैवी परिवार में खिटखिट होती है, उसमें निश्चय डगमग हो जाता है इसीलिये परिवार को छोड़ देते हैं, हल्का कर देते हैं। तो एक साइड ढीला हो गया ना। बिना परिवार के माला में कैसे आयेंगे? माला कब बनती है? जब दाना दाने से मिलता है और एक ही धागे में पिरोये हुए होते हैं। अगर अलग¬अलग धागे में अलग¬ अलग दाना हो तो उसको माला नहीं कहेंगे। तो परिवार है माला। अगर परिवार को छोड़कर तीन निश्चय पक्के हैं तो भी विजय निश्चित नहीं है। चलो परिवार की खिटखिट से किनारा कर लो, बाप का सहारा हो, परिवार का किनारा हो, तो चलेगा? काम तो बाप से है या भाइयों से है? बाप से काम है, वर्सा बाप से मिलना है, भाई¬बहनों से क्या मिलेगा? लेकिन ब्राह्मण जीवन में यही न्यारापन है कि धर्म और राज्य दोनों की स्थापना होती है, सिर्फ धर्म की नहीं। और धर्म पितायें सिर्फ धर्म की स्थापना करते हैं, बाप की विशेषता है धर्म और राज्य की स्थापना करना। तो राज्य में एक राजा क्या करेगा? बहुत अच्छा तख्त भी हो, ताज भी हो, क्या करेगा? राजधानी भी चाहिये ना? तो राजधानी अर्थात् ब्राह्मण परिवार सो राज परिवार। इसलिए ब्राह्मण परिवार में हर परिस्थिति में निश्चयबुद्धि, तब राज्य-भाग्य में भी सदा राज्य अधिकारी होंगे। तो ऐसे नहीं समझना-कोई बात नहीं, परिवार से नहीं बनती है, बाप से तो बनती है! ड्रामा अगर भूल जाता है तो बाप तो याद रहता ही है! लेकिन कोई भी कमज़ोरी एक ही समय पर होती है, स्व स्थिति अर्थात् स्वय्निश्चय भी अगर कमज़ोर होता है तो विजय निश्चित के बजाय हलचल में आ जाती है। तो बापदादा निश्चय के फाउण्डेशन को चेक कर रहे थे। क्या देखा?

सदा चार ही प्रकार का निश्चय एक समय पर साथ नहीं रहता, कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का अनुभव नहीं कर पाते हैं। फिर सोचते हैं-होना तो ये चाहिये लेकिन पता नहीं क्यों नहीं हुआ? किया तो बहुत मेहनत, सोचा तो बहुत अच्छा.... लेकिन सोचना और होना इसमें अन्तर पड़ जाता है। इसका अर्थ ही है कि निश्चय के चारों तरफ मजबूत नहीं हैं। और हंसी की बात तो ये है कि ड्रामा भी कह रहे हैं, है तो ड्रामा, है तो ड्रामा.... लेकिन अच्छी तरह से हिल भी रहे हैं। कभी संकल्प में हिलते, कभी बोल तक भी हिल जाते, कभी कर्म तक भी आ जाते। उस समय क्या लगता होगा, दृश्य सामने लाओ, ड्रामा-ड्रामा भी कह रहे हैं और हिलडुल भी रहे हैं! लेकिन निश्चयबुद्धि की निशानी है निश्चित विजयी। अगर विधि ठीक है तो सिद्धि प्राप्त न हो, ये हो नहीं सकता। तो जब भी कोई भी कार्य में विजय प्राप्त नहीं होती है तो समझ लो कि निश्चय की कमी है। चारों ओर चेक करो, एक ओर नहीं।

और बात, निश्चयबुद्धि की निशानी जैसे निश्चित विजय है वैसे निश्चिन्त होंगे। कोई भी व्यर्थ चिन्तन आ ही नहीं सकता। सिवाए शुभ चिन्तन के व्यर्थ का नामय्निशान नहीं होगा। ऐसे नहीं, व्यर्थ आया, भगाया। निश्चयबुद्धि के आगे व्यर्थ आ नहीं सकता। क्योंकि क्यों, क्या, और कैसे-ये व्यर्थ होता है। जब ड्रामा के राज को जानते हैं, आदि-मध्य¬अन्त को जानने वाले हैं तो जो ड्रामा के आदि¬मध्य¬अन्त को जानने वाले हैं वो छोटी¬सी बात के आदि¬मध्य¬अन्त को नहीं जान सकते! न जानने के कारण क्यों, क्या, कैसे, ऐसे-ये व्यर्थ संकल्प चलते हैं। अगर ड्रामा में अटल निश्चय है, नॉलेजफुल भी हैं, पॉवरफुल भी हैं तो व्यर्थ संकल्प हिलाने की हिम्मत भी नहीं रख सकते। परन्तु जब हिलते हैं तो सोचते हैं पता नहीं क्या हो गया! तो बापदादा हंसते हैं कि ड्रामा के आदि¬मध्य¬अन्त को जान लिया, अपने 84 जन्म को जान लिया और एक बात को नहीं जानते! बड़े होशियार हो! होशियारी दिखाते हो ना समय प्रति समय! कल्प वृक्ष के सभी पत्तों को जानते हो कि नहीं? सभी वृक्ष के फाउण्डेशन में बैठे हो या 7-8 बैठे हैं? तो जड़ में बैठे हुए वृक्ष को जानते हो? पत्ते¬पत्ते को जानते हो और ये पता नहीं कैसे? तो निश्चय की निशानियाँ निश्चिन्त स्थिति, इसका अनुभव करो। होगा, नहीं होगा, क्या होगा, कर तो रहे हैं, देखें क्या होता है-इसको निश्चिन्त नहीं कहेंगे। और फिर बाप के आगे ही फरियाद करते हैं-आप मददगार हो ना, आप रक्षक हो ना, आप ये हो ना, आप ये हो ना....। फरियाद करना अर्थात् अधिकार गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् निश्चिन्त। तो ये प्रैक्टिकल निशानियाँ अपने आपमें चेक करो। ऐसे अलबेले नहीं रह जाना-हम तो हैं ही निश्चयबुद्धि। कौन¬सा निश्चय कमज़ोर है वो चेक करो और चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। बापदादा ने कहा था ना चेकर के साथ मेकर भी हो। सिर्फ चेकर नहीं। चेक करने का अर्थ ही है सेकण्ड में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में दिलशिकस्त के संस्कार पक्के होते जायेंगे और जो बहुतकाल के संस्कार हैं वही अन्त में अवश्य सामना करते रहेंगे। कोई सोचे अन्त में तो मैं सिवाए बाप के और कुछ नहीं सोचूँगा। लेकिन हो नहीं सकता। बहुतकाल का अभ्यास चाहिये। नहीं तो एक सेकण्ड सोचेंगे-शिवबाबा शिवबाबा शिवबाबा.... और दूसरे सेकण्ड माया कहेगी-नहीं, तुम्हारे में शक्ति नहीं है, तुम हो ही कमज़ोर, तो युद्ध चलती रहेगी। यदि निश्चिन्त नहीं होंगे तो ब्राह्मण जीवन के अन्तकाल का जो लक्ष्य वर्णन करते हो वो सहज कैसे होगा और अगर अन्त तक ये व्यर्थ संकल्प होंगे तो वही भूतों के, यमदूतों के रूप में आयेंगे। और कोई यमदूत नहीं आते हैं, ये व्यर्थ संकल्प अपनी कमज़ोरियाँ, यही यमदूत के रूप में आते हैं। यमदूत क्या करते हैं? डराते हैं। और दूसरों के लिये कहेंगे विमान में जायेंगे अर्थात् उड़ती कला से पार हो जायेंगे। कोई विमान आदि नहीं हैं लेकिन उड़ती कला का अनुभव है। इसलिये पहले से ही चेक करके चेंज करो। कब तक करेंगे? बापदादा को खुश तो कर देते हैं-करेंगे, प्रतिज्ञा भी लिख देते हैं लेकिन वो कागज तक रहती हैं या जीवन तक?

अच्छा - आज मधुबन निवासियों का भी टर्न है। मधुबन वालों से तो विशेष बापदादा का स्नेह है।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- फाउंडेशन पक्का करने की बाबा ने क्या युक्तियाँ बताई ?

 प्रश्न 2 :- स्वयं को चेक करने की क्या युक्ति है ?

 प्रश्न 3 :- निश्चित विजय के क्या लक्षण हैं ?

 प्रश्न 4 :- धर्म पिता और बाप में क्या अंतर है ?

 प्रश्न 5 :- क्यों क्या के प्रश्न हमें क्यूँ आते हैं ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(निश्चय, साथ, अनुभव, तख्त, ताज, राजधानी, ब्राह्मण, फलक, सेकंड, दिलशिकस्त, निशानियाँ, निश्चिंत)

 1   सदा चार ही प्रकार का ______ एक समय पर _____ नहीं रहता, कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का ______ नहीं कर पाते हैं।

 2  राज्य में एक राजा क्या करेगा? बहुत अच्छा ______ भी हो, _____ भी हो, क्या करेगा? राजधानी भी चाहिये ना? तो ______ अर्थात् ब्राह्मण परिवार सो राज परिवार।

 3  बापदादा देख रहे थे कि जो भी बच्चे अपने को ______ कहलाते हैं वो सभी ये ______ से कहते हैं कि हम निश्चयबुद्धि हैं।

 4  चेक करने का अर्थ ही है ______ में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में ________ के संस्कार पक्के होते जायेंगे।

 5  निश्चय की ______ निश्चिंत स्थिति, इसका अनुभव करो। होगा, नहीं होगा, क्या होगा, कर तो रहे हैं, देखें क्या होता है-इसको ________नहीं कहेंगे।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :-  संस्कार परिवर्तन के लिए बहुतकाल का अभ्यास चाहिये नहीं तो एक सेकण्ड सोचेंगे-शिवबाबा शिवबाबा .... और दूसरे सेकण्ड माया कहेगी-नहीं, तुम्हारे में शक्ति नहीं है, तुम हो ही कमज़ोर, तो युद्ध चलती रहेगी।

 2  :- फरियाद करना अर्थात् हक गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् मस्त।

 3  :- यदि निश्चिन्त नहीं होंगे तो ब्राह्मण जीवन के अन्तकाल का जो लक्ष्य वर्णन करते हो वो सहज कैसे होगा और अगर अन्त तक ये व्यर्थ संकल्प होंगे तो वही भूतों के, यमदूतों के रूप में आयेंगे।

 4  :- चेक करने का अर्थ ही है______ में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में________ के संस्कार पक्के होते जायेंगे।

 5   :- उड़ती कला का अनुभव तो सबको है। इसलिये पहले से ही चेक करके चेंज करो। कब तक करेंगे? बापदादा को खुश तो कर देते हैं-करेंगे, प्रतिज्ञा भी लिख देते हैं लेकिन वो कागज तक रहती हैं या जीवन तक ?

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- फाउंडेशन पक्का करने की बाबा ने क्या युक्तियाँ बताई ?

   उत्तर 1 :- दृढ़ निश्चय ही फाउंडेशन को पक्का करता है। निश्चय बुद्धि विजयन्ती अनिश्चय बुद्धि विनश्यन्ति।

          .. वर्तमान श्रेष्ठ जीवन का फाउण्डेशन निश्चय है। जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होती है।

          .. फाउंडेशन पक्का होगा तो हर समय चलन और चेहरे से उनकी झलक अनुभव होती है क्योंकि ब्राह्मण जीवन में सिर्फ जानना नहीं है कि ‘मैं ये हूँ और बाप ये है’, लेकिन जानने का अर्थ है जो जानते हैं वो मानना और चलना तभी कहेंगे फाउंडेशन पक्का है।

          .. ये पक्का करो कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, इसके लिए कोई दुनिया के वैज्ञानिक भी आपको हिलाने की कोशिश करें कि आत्मा नहीं शरीर हो, तो मानेंगे नहीं और ही उसको मनायेंगे। तो जैसे ये पक्का है कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ और कौन¬सी आत्मा हूँ, ये भी पक्का है, ऐसे निश्चयबुद्धि की विजय भी इतनी निश्चित है। हार असम्भव है और विजय निश्चित है।

 

 प्रश्न 2 :- स्वयं को चेक करने की क्या युक्ति है ?

 उत्तर 2 :- जैसे कोई भी चीज़ को मजबूत किया जाता है तो चारों ओर से टाइट किया जाता है ना। अगर एक साइड भी थोड़ा¬सा हलचल वाला हो तो हिलेगा ना! इसलिए चेक करो कोई दरवाज़ा खुला तो नही है।

          .. श्रीमत जानते हैं लेकिन उस पर चलते नहीं हैं तो विजय डगमग होती है। जिस समय विजय हलचल में आती है, तो चेक करना कि चारों तरफ से कौन¬सा तरफ हलचल में है?

          .. कई बच्चों को बाप में पूरा निश्चय है, इसमें पास हैं लेकिन अपने आपमें जो निश्चय चाहिए उसमें अन्तर पड़ जाता है। एक तरफ सोचते हैं कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ, विश्व कल्याणकारी हूँ, दूसरे तरफ छोटी सी बात में मूँझ पड़ते हैं तो चेक करो कहाँ कहाँ फसते हो ?

 

 प्रश्न 3 :-  निश्चित विजय के क्या लक्षण हैं ?

   उत्तर 3 :- चारों प्रकार का निश्चय अर्थात् बाप में, आप में, ड्रामा में और ब्राह्मण परिवार में निश्चय। ये चार ही तरफ के निश्चय को जानना नहीं लेकिन मानकर चलना यही दृढ़ संकल्प विजय दिलाएगा ।

           .. मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ और कौन सी आत्मा हूँ, ये भी पक्का है, ऐसे निश्चयबुद्धि की विजय भी इतनी निश्चित है। हार असम्भव है और विजय निश्चित है। और ये भी निश्चित है कि बातें भी अन्त तक आनी हैं। लेकिन उसमें विजयी बनने के लिए एक ही समय पर चारों ही तरफ का निश्चय पक्का चाहिये मेहनत से विजय होगी। निश्चित विजय वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

            .. सब जानते है कि बिना परिवार के माला में कैसे आयेंगे? माला कब बनती है? जब दाना दाने से मिलता है और एक ही धागे में पिरोये हुए होते हैं। अगर अलग-अलग धागे में अलग-अलग दाना हो तो उसको माला नहीं कहेंगे। तो परिवार है माला। अगर परिवार को छोड़कर तीन निश्चय पक्के हैं तो भी विजय निश्चित नहीं है।

 

 प्रश्न 4 :- धर्म पिता और बाप में क्या अंतर है ?

   उत्तर 4 :- बाप नई दुनिया की स्थापना करते हैं। ब्राह्मण जीवन में यही न्यारापन है कि धर्म और राज्य दोनों की स्थापना होती है, सिर्फ धर्म की नहीं। और धर्म पितायें सिर्फ धर्म की स्थापना करते हैं, बाप की विशेषता है धर्म और राज्य की स्थापना करते हैं।

          

 प्रश्न 5 :- क्यों क्या के प्रश्न हमें क्यूँ आते हैं ?

   उत्तर 5 :- बाप और बाप की श्रीमत को भूलना ही हमें संशय में डालता है। बाप को भूले तो माया क्यूँ क्या के प्रश्नों में फसा देती है।

           .. निश्चय कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का अनुभव नहीं कर पाते हैं। फिर सोचते हैं-होना तो ये चाहिये लेकिन पता नहीं क्यों नहीं हुआ? किया तो बहुत मेहनत, सोचा तो बहुत अच्छा.... लेकिन सोचना और होना इसमें अन्तर पड़ जाता है। इसका अर्थ ही है कि निश्चय के चारों तरफ मजबूत नहीं हैं इसलिए क्यों क्या में फस जाते हैं।

           .. ड्रामा अगर भूल जाता है तो बाप तो याद रहता ही है! कोई भी कमज़ोरी एक ही समय पर होती है, स्व स्थिति अर्थात् स्वय्निश्चय भी अगर कमज़ोर होता है तो विजय निश्चित के बजाय हलचल में आ जाती है और सोचते हैं ये करते तो ऐसे होता , ऐसा क्यों हुआ । स्व स्थिति कमजोर होने से भी क्यों,क्या के प्रश्नों में हम मूँझने लगते हैं ।

           .. ड्रामा में आदि, मध्य, अंत को न जानने के कारण क्यों, क्या, कैसे, ऐसे-ये व्यर्थ संकल्प चलते हैं। अगर ड्रामा में अटल निश्चय है, नॉलेजफुल भी हैं, पॉवरफुल हैं तो व्यर्थ संकल्प हिलाने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। परन्तु जब हिलते हैं तो सोचते हैं पता नहीं क्या हो गया!

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(निश्चय, साथ, अनुभव, तख्त, ताज, राजधानी, ब्राह्मण, फलक, सेकंड, दिलशिकस्त, निशानियाँ, निश्चिंत)

 1   सदा चार ही प्रकार का ______ एक समय पर _____ नहीं रहता, कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का ______ नहीं कर पाते हैं।

    निश्चय / साथ / अनुभव

 

 2  राज्य में एक राजा क्या करेगा? बहुत अच्छा ______ भी हो, _____ भी हो, क्या करेगा? राजधानी भी चाहिये ना? तो ______ अर्थात् ब्राह्मण परिवार सो राज परिवार।

      तख्त / ताज / राजधानी

 

 3  बापदादा देख रहे थे कि जो भी बच्चे अपने को ______ कहलाते हैं वो सभी ये ______ से कहते हैं कि हम निश्चयबुद्धि हैं।

   ब्राह्मण / फलक

 

 4  चेक करने का अर्थ ही है ______ में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में ________ के संस्कार पक्के होते जायेंगे।

      सेकंड / दिलशिकस्त

 

 5 निश्चय की ______ निश्चिंत स्थिति, इसका अनुभव करो। होगा, नहीं होगा, क्या होगा, कर तो रहे हैं, देखें क्या होता है-इसको ________ नहीं कहेंगे।

      निशानियाँ / निश्चिंत

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- संस्कार परिवर्तन के लिए बहुतकाल का अभ्यास चाहिये नहीं तो एक सेकण्ड सोचेंगे-शिवबाबा शिवबाबा .... और दूसरे सेकण्ड माया कहेगी-नहीं, तुम्हारे में शक्ति नहीं है, तुम हो ही कमज़ोर, तो युद्ध चलती रहेगी।【✔】

 

 2  :- फरियाद करना अर्थात् हक गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् मस्त।【✖】

  फरियाद करना अर्थात् अधिकार गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् निश्चिन्त।

 

 3  :- यदि निश्चिन्त नहीं होंगे तो ब्राह्मण जीवन के अन्तकाल का जो लक्ष्य वर्णन करते हो वो सहज कैसे होगा और अगर अन्त तक ये व्यर्थ संकल्प होंगे तो वही भूतों के, यमदूतों के रूप में आयेंगे। 【✔】

 

 4  :- यमदूत क्या करते हैं? डराते हैं। और औरों के लिये कहेंगे विमान में जायेंगे अर्थात् उड़ती कला से परे हो जायेंगे।【✔】

  यमदूत क्या करते हैं? डराते हैं। और दूसरों के लिये कहेंगे विमान में जायेंगे अर्थात् उड़ती कला से पार हो जायेंगे।

 

 5   :- उड़ती कला का अनुभव तो सबको है। इसलिये पहले से ही चेक करके चेंज करो। कब तक करेंगे? बापदादा को खुश तो कर देते हैं-करेंगे, प्रतिज्ञा भी लिख देते हैं लेकिन वो कागज तक रहती हैं या जीवन तक ?【✔】