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AVYAKT MURLI
05 / 12 / 74
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05-12-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
व्यर्थ संकल्पों को समर्थ बनाने से काल पर विजय
काल पर विजय दिलाने वाले, सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बनाने वाले बाप-दादा बोले:-
अव्यक्त-मिलन किसको कहा जाता है? जिससे मिलना होता है, उसी के समान बनना होता है। तो अव्यक्त-मिलन अर्थात् बाप-समान अव्यक्त रूपधारी बनना। अव्यक्त अर्थात् जहाँ व्यक्त भाव नहीं। क्या ऐसे बने हो? व्यक्त देश का, व्यक्त देह का और व्यक्त वस्तुओं का जरा भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित न करे, क्या ऐसी स्थिति बनाई है? जो पहला-पहला वायदा है कि तुम्हीं से सुनूं और तुम्हीं से बोलूं, यह वायदा निभाने के लिये सारा दिन-रात जब तक अव्यक्त व निराकारी स्थिति में स्थित नहीं होंगे, तो क्या बाप-दादा के साथ-साथ रहने का अनुभव कर सकेंगे अर्थात् वायदा निभा सकेंगे? सारे दिन में आप कितना समय, यह वायदा निभाते हो? जिससे मिलना होता है, उसके स्थान पर और वैसी स्थिति, स्वयं की बनानी होती है। वह स्थान और स्थिति ये दोनों ही बदलनी पड़ेगी, तब ही यह वायदा निभा सकते हो। व्यक्त भाव में आना व कोई भी व्यक्त व वस्तु में भावना रहना कि यह प्रिय है व अच्छी है, यह व्यक्त-वस्तु और व्यक्ति में भावना रहना अर्थात् कामना का रूप हो जाता है। जब तक कामना है, तब तक माया से सम्पूर्ण रीति सामना नहीं कर सकते। जब तक सामना नहीं कर सकते, तब तक समान नहीं बन सकते अर्थात् वायदा नहीं निभा सकते।
जैसे आप लोग चित्र में कृष्ण को सृष्टि के ग्लोब पर दिखाते हो-ऐसा ही चित्र अपनी प्रैक्टिकल स्थिति का बनाओ। इस व्यक्त देश व इस पुरानी दुनिया से उपराम। व्यक्त भाव और व्यक्त वस्तुओं आदि सबसे उपराम अर्थात् इनके ऊपर साक्षी होकर खड़े रहें। जैसे पाँव के नीचे ग्लोब दिखाते हैं व ग्लोब के ऊपर बैठा हुआ दिखाते हैं अर्थात् उनका मालिकपन व अधिकारीपन दिखाते हैं तो ऐसे अपना चित्र बनाओ। इस पुरानी दुनिया में, जैसे अपनी स्व-इच्छा से, अपने रचे हुए संकल्प के आधार से अव्यक्त से व्यक्त में आते, व्यक्ति व वस्तुओं के आकर्षण के अधीन होकर नहीं। जैसे लिफ्ट में चढ़ते हो, तो स्विच अपने हाथ में होता है चाहे फर्स्ट फ्लोअर पर जाओ, चाहे सेकेण्ड फ्लोअर पर जाओ। जब स्विच कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तब वाया रिज़ल्ट होती है? बीच में लटक जावेंगे ना? ऐसे ही यह स्मृति का स्विच अपने कन्ट्रोल में रखो। जहाँ चाहो, जब चाहो और जितना समय चाहो वैसे अपने स्थान को व स्थिति को सैट कर सको, क्या ऐसे अधिकारी बने हो? क्या काल पर विजय प्राप्त की है? काल अर्थात् समय। तो काल पर विजयी बने हो? अगर पाण्डव सेना की व शक्ति सेना की यह स्टेज अन्त में आयेगी तो साइलेन्स पॉवर तो साइन्स से कम हो गई। क्योंकि साइंस ने तो अभी भी इन तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है।
प्रदर्शनी में, आप लोग चित्र दिखाते हो ना, कि रावण ने चार तत्वों पर विजय प्राप्त की है, उसमें काल भी दिखाते हो न? जब रावण ने अर्थात् रावण की शक्ति साइंस ने अभी भी काफी हद तक तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है, तो साइंस आपसे पॉवरफुल हुई ना? जब साइन्स की शक्ति अपना प्रत्यक्ष सबूत दे रही है तो साइलेन्स की शक्ति अपना प्रत्यक्ष सबूत क्या अन्त में देगी? समय पर विजय अर्थात् काल पर विजय। इसकी परसेन्टेज अभी कम है। अपने को निराकारी स्थिति व अव्यक्त स्थिति में स्थित तो करते हो, लेकिन जितना समय स्थित रहना चाहते हो, उतना समय उस स्थिति में स्थित नहीं हो पाते हो। स्टेज के अनुभव भी प्राप्त करते हो, मेहनत भी करते हो, लेकिन काल पर विजय नहीं कर पाते हो। इसका कारण क्या है? सोचते हो कि आधा घण्टा पॉवरफुल याद में बैठेंगे और आधा घण्टा बैठते भी हो और प्लैन भी बनाते हो लेकिन जितनाजितना जिस स्टेज के लिए सोचते हो, उतना ही समय उस समय उस स्टेज पर स्थित नहीं होते हो। सोचते हो स्विच ऑन थर्ड फ्लोर पर करें, लेकिन पहुँच जाते हो सेकेण्ड फ्लोर पर वा फर्स्ट या ग्राउण्ड फ्लोर तक पहुँच जाते हो। क्योंकि काल पर विजय नहीं। इसका कारण यह है कि बार-बार सारे दिन में समय गँवाने के अभ्यासी हो। व्यर्थ के ऊपर अटेन्शन देने से ही काल पर विजय प्राप्त करने में समर्थ बनेंगे। जब तक समय व्यर्थ जाता है, तब तक विजय पाने में समर्थ नहीं बन सकते। इसी कारण, जो मिलन का अनुभव करना चाहते हो व निरन्तर समय व्यर्थ करने के कारण ही समर्थ नहीं बन पाते। 108 वायदा निभाना चाहते हो वह निभा नहीं सकते। तो अब, अपनी तकदीर की तस्वीर सर्व-तत्वों पर और काल पर सदा विजयी की बनाओ। जब एक-एक सेकेण्ड, व्यर्थ से समर्थ में चेन्ज करो, तब ही विजयी बनेंगे, अच्छा।
ऐसे सदा विजयी, सदा अधिकारी, निरन्तर वायदा निभाने वाले, हरेक को व्यर्थ से समर्थ में परिवर्तन करने वाले, सदा व्यक्त भाव से परे, अव्यक्त स्थिति में रहने वाले लक्की सितारों व समीप सितारों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
महावाक्यों का सार
(1) जब तक कोई कामना है, तब तक माया से सम्पूर्ण रीति सामना नहीं कर सकते हैं।
(2) जहाँ चाहो, जब चाहो, जितना समय चाहो वैसे अपने स्थान को, स्थिति को सेट कर सको, ऐसे अधिकारी बने हो? काल अर्थात् समय पर विजय प्राप्त की है?
(3) व्यर्थ संकल्पों के ऊपर अटेन्शन देने से ही काल पर विजय प्राप्त करने में समर्थ बन सकेंगे।
01-09-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
समीप और समान, महीन और महान
सदा ही कर्म-बन्धनों से अतीत शिव बाबा ने बच्चों से कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने का आह्वान करते हुए कहा –
सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नज़दीक अनुभव करते जा रहे हो? कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचने की निशानी जानते हो? समीपता की निशानी समानता है। किस बात में? आवाज में आना व आवाज से परे हो जाना, साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना, सुनना और स्वरूप होना, मनन करना और मग्न रहना, रूह- रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना, सोचना और करना, कर्मेन्द्रियों में आना अर्थात् कर्मेन्द्रियों का आधार लेना और कर्मेन्द्रियों से परे होना, प्रकृति द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकृति के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और देखते हुए न देखना, सम्पर्क में आते कमल-पुष्प के समान रहना, इन सभी बातों में समानता। उसको कहा जाता है-कर्मातीत अवस्था की समीपता।
ऐसी महीनता और महानता की स्टेज अपनाई है? हलचल थी या अचल थे? फाईनल पेपर में चारों ओर की हलचल होगी। एक तरफ वायुमण्डल व वातावरण की हलचल। दूसरी तरफ व्यक्तियों की हलचल। तीसरी तरफ सर्व सम्बन्धों में हलचल और चौथी तरफ आवश्यक साधनों की अप्राप्ति की हलचल। ऐसे चारों तरफ की हलचल के बीच अचल रहना, यही फाइनल पेपर होना है। किसी भी आधार द्वारा अधिकारीपन की स्टेज पर स्थित रहना - ऐसा पुरूषार्थ फाइनल पेपर के समय सफलता-मूर्त बनने नहीं देगा। वातावरण हो तब याद की यात्रा हो, परिस्थिति न हो तब स्थिति हो,अर्थात् परिस्थिति के आधार पर स्थिति व किसी भी प्रकार का साधन हो तब सफलता हो, ऐसा पुरूषार्थ फाइनल पेपर में फेल कर देगा। इसलिए स्वयं को बाप समान बनाने की तीव्रगति करो।
अपने आपको समझते हो कि फाइनल पेपर जल्दी हो जाए तो सूर्यवंशी प्रालब्ध प्राप्त कर लेंगे। इम्तिहान के लिये एवररेड़ी हो? या होना ही पड़ेगा व हो ही जायेंगे? अथवा समय करा लेगा ऐसे अलबेलेपन के संकल्प समर्थ बना नहीं सकेंगे। समर्थ संकल्प के आगे यह भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यर्थ व अलबेलेपन के संकल्प खत्म हो जाते हैं। अलबेलापन तो नहीं है न? खबरदार, होशियार हो? एवररेडी अर्थात् अभी-अभी किसी भी परिस्थिति व वातावरण में आर्डर मिले व श्रीमत मिले कि एक सेकेण्ड में सर्व-कर्मेन्द्रियों की अधीनता से न्यारे हो कर्मेन्द्रिय-जीत बन एक समर्थ संकल्प में स्थित हो जाओ, तो श्रीमत मिलते हुए मिलना और स्थित होना साथ-साथ हो जाये। बाप ने बोला और बच्चों की स्थिति ऐसी ही उस घड़ी बन जाये उसको कहते हैं एवररेडी। जो पहले बातें सुनाई समानता की जिससे ही समीपता की स्टेज बनती है - ऐसे सब बातों में कहाँ तक समान बने हैं? यह चैकिंग करो। ऐसे तो नहीं डायरेक्शन को प्रैक्टिकल में लाने में एक सेकेण्ड के बजाय एक मिनट लग जाये। एक सेकेण्ड के बजाय एक मिनट भी हुआ तो फर्स्ट डिवीजन में पास नहीं होंगे, चढ़ते, उतरते व स्वयं को सैट करते फर्स्ट डिवीजन की सीट को गंवा देंगे। इसलिये सदा एवररेडी, सिर्फ एवररेडी भी नहीं, सदा एवररेडी।
वर्तमान समय तक रिजल्ट क्या देखने में आती है, उसको जानते हो? पाण्डव तीव्र पुरूषार्थ की लाईन में हैं या शक्तियाँ? मैजॉरिटी तीव्र पुरूषार्थ की लाइन में कौन हैं? सभी पाण्डव मैजॉरिटी शक्तियों को वोट देते हैं। लेकिन पुरूषार्थ के हिसाब से पाण्डव भी शक्तिरूप हैं। सर्व शक्तिवान की सब शक्ति हैं। बापदादा तो पाण्डवों की तरफ लेते हैं। अगर पाण्डवों को आगे नहीं करेंगे तो शक्तियों के आगे शिकार कैसे लायेंगे? इसलिये पाण्डवों को विशेष ब्रह्मा बाप की हमजिन्स के नाते पुरूषार्थ में फालो फादर करना चाहिए। पाण्डव लौकिक जिम्मेवारी उठाने में भी आगे रहते हैं। सिर्फ लौकिक जिम्मेवारी के बजाय बेहद विश्व-कल्याण की जिम्मेवारी उठानी है। कमाई करने की लगन जैसे हद की जानते हो वैसे बेहद की कमाई की लगन में मगन हो जाओ। कमाई के पीछे स्वयं के सुख के साधनों का त्याग करने के भी अनुभवी हो तो बेहद की कमाई के पीछे देह की सुध-बुध त्याग करना व देह की स्मृति का त्याग करना क्या बड़ी बात है? इसलिये पाण्डवों को तीव्र पुरूषार्थ की लाइन में नम्बर वन लेना चाहिए, समझा? पीछे नहीं रहना! अगर शक्तियों से पीछे रह गये तो ब्रह्मा बाप के हम-जिन्स और बाप की लाज नहीं रखी - तो क्या यह शोभता है? इसलिये इसी वर्ष में - दूसरे वर्ष का इन्तज़ार नहीं करना - इसी वर्ष में नम्बर वन लेना है।
शक्तियाँ सोचती होंगी कि हम नम्बर दो हो जायेंगी क्या? शक्तियों के बिना तो शिव बाप की भी कोई चाल नहीं चल सकती। चल सकती है? शक्तियों को इसमें भी त्याग करना चाहिए, शक्तियों का त्याग पूजा जाता है। जो त्याग करता है उसका भाग्य स्वत: बनता है। इसलिये दोनों ही भाई-भाई के रूप में तीव्र पुरूषार्थ करो। समाचार के आधार पर पुरूषार्थ नहीं करना। आपके पुरूषार्थ से ही विनाश के समाचार चारों ओर फैलेंगे। पहले पुरूषार्थ, पीछे समाचार, न कि पहले समाचार और पीछे पुरूषार्थ। अच्छा।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :-अव्यक्त मिलन से क्या भाव है?
प्रश्न 2 :- काल पर विजय प्राप्त नही कर पाते इसका क्या कारण है?
प्रश्न 3 :- कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचने की निशानियां क्या होंगी?
प्रश्न 4 :- फाइनल पेपर में किन-किन तरफ से हलचल होगी?
प्रश्न 5 :- पाण्डव तीव्र पुरूषार्थ की लाईन में हैं या शक्तियाँ? 'मैजॉरिटी तीव्र पुरूषार्थ की लाइन में कौन हैं' के संदर्भ मे बाबा ने क्या कहा?
FILL IN THE BLANKS:-
{ शक्तियों, अलबेलापन, पुरानी, सामना, व्यर्थ, उपराम, विनाश, कामना, देश, माया, समाचार, पूजा, संकल्प, पुरुषार्थ, त्याग }
1 जब तक ______ है, तब तक _____ से सम्पूर्ण रीति _______ नही कर सकते।
2 इस व्यक्त ______ व इस ______ दुनिया से ________।
3 समर्थ संकल्प के आगे यह भिन्न-भिन्न प्रकार के _____ व _______ के ______ समाप्त हो जाएंगे।
4 ______ को इसमें भी ______ करना चाहिए, शक्तियों का त्याग _____ जाता है।
5 समाचार के आधार पर पुरुषार्थ नही करना, आपके _______ से ही _______ के ________ चारों ओर फैलेंगे।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- स्मृति का स्विच अपने कन्ट्रोल में रखो, जहाँ चाहो, जब चाहो ओर जितना समय चाहो वैसे अपने स्थान को व स्थिति को सेट कर सको।
2 :- पावँ के नीचे ग्लोब दिखाते हैं, व ग्लोब के ऊपर बैठा हुआ दिखाते है अर्थार्त उनका मालिकपन व अधिकारिपन दिखाते है तो इस अपना स्वरूप बनाओ।
3 :- पाण्डव सेना की व शक्ति सेना की यह स्टेज अन्त में आएगी तो साईंस पॉवर तो साइलेंस से अधिक हो गई। क्योंकि साइंस ने तो अभी भी इन तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है।
4 :- बाप ने बोला और बच्चों की स्थिति ऐसी ही उस घड़ी बन जाए उसको कहते है एवररेडी।
5 :- एक सेकंड के बजाए एक मिनट भी हुआ तो फर्स्ट डिवीजन में पास नही होंगे।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- अव्यक्त मिलन से क्या भाव है?
उत्तर 1 :- अव्यक्त-मिलन जिससे मिलना होता है, उसी के समान बनना होता है।
❶ अव्यक्त-मिलन अर्थात् बाप-समान अव्यक्त रूपधारी बनना।
❷ अव्यक्त अर्थात् जहाँ व्यक्त भाव नही।
❸ व्यक्त देश का, व्यक्त देह का और व्यक्त वस्तुओं का जरा भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित न करे।
प्रश्न 2 :- काल पर विजय प्राप्त नही कर पाते इसका क्या कारण है?
उत्तर 2 :- काल पर विजय प्राप्त न कर पाने के निम्नलिखित कारण है :-
❶ जितना-जितना जिस स्टेज के लिए सोचते है, उतना समय उस स्टेज पर स्थित नही हो पाते।
❷ बार-बार सारे दिन में समय गवांने के अभ्यासी है।
❸ जब तक समय व्यर्थ जाता है, व्यर्थ से समर्थ में चेंज नही करते, तब तक विजय पाने में समर्थ नही बन सकते। जब एक-एक सेकंड, व्यर्थ से समर्थ में चेन्ज करें, तब ही विजयी बन सकते है।
प्रश्न 3 :- कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचने की निशानियां क्या होंगी?
उत्तर 3 :- कर्मातीत अवस्था के समीप पहुंचने की निशानियां समानता है।
❶ समानता के लिए आवाज में आना व आवाज से परे हो जाना।
❷ साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना।
❸ सुनना ओर स्वरूप होना।
❹ मनन करना और मग्न रहना।
❺ रूह-रिहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना।
❻ सोचना और करना।
❼ कर्मेद्रियों में आना अर्थात कर्मेन्द्रियों का आधार लेना और कर्मेर्न्द्रियों से परे होना।
❽ प्रकृति के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना।
❾ देखना सम्पर्क में आना और देखते हुए न देखना।
❿ सम्पर्क में आते कमल-पुष्प के समान रहना।
इन सब बातों में समानता, उसको कहेंगे कर्मातीत अवस्था की समीपता।
प्रश्न 4 :- फाइनल पेपर में किन-किन तरफ से हलचल होगी?
उत्तर 4 :- फाइनल पेपर में चारो ओर से हलचल होगी :-
❶ एक तरफ वायुमंडल व वातावरण की हलचल।
❷ दूसरी तरफ व्यक्तियों की हलचल।
❸ तीसरी तरफ सर्व सम्बन्धो में हलचल।
❹ चौथी तरफ आवयशक साधनों की अप्राप्ति की हलचल।
ऐसी चारों तरफ की हलचल के बीच अचल रहना है, यही फाइनल पेपर होना है। किसी भी आधार द्वारा अधिकारीपन की स्टेज पर स्थित रहना- ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर के समय सफलता-मूर्त बनने नही देगा।
प्रश्न 5 :- पाण्डव तीव्र पुरूषार्थ की लाईन में हैं या शक्तियाँ? 'मैजॉरिटी तीव्र पुरूषार्थ की लाइन में कौन हैं' के संदर्भ मे बाबा ने क्या कहा?
उत्तर 5 :- बाबा कहते हैं कि :-
❶ सभी पाण्डव मैजॉरिटी शक्तियों को वोट देते हैं। पुरूषार्थ के हिसाब से पाण्डव भी शक्तिरूप हैं। सर्वशक्तिवान की सब शक्ति हैं।
❷ बापदादा तो पाण्डवों की तरफ लेते हैं। अगर पाण्डवों को आगे नहीं करेंगे तो शक्तियों के आगे शिकार कैसे लायेंगे? इसलिये पाण्डवों को विशेष ब्रह्मा बाप की हमजिन्स के नाते पुरूषार्थ में फालो फादर करना चाहिए।
❸ पाण्डव लौकिक जिम्मेवारी उठाने में भी आगे रहते हैं। सिर्फ लौकिक जिम्मेवारी के बजाय बेहद विश्व-कल्याण की जिम्मेवारी उठानी है।
❹ कमाई करने की लगन जैसे हद की जानते हो वैसे बेहद की कमाई की लगन में मगन हो जाओ।
❺ कमाई के पीछे स्वयं के सुख के साधनों का त्याग करने के भी अनुभवी हो तो बेहद की कमाई के पीछे देह की सुध-बुध त्याग करना व देह की स्मृति का त्याग करना क्या बड़ी बात है?
❻ इसलिये पाण्डवों को तीव्र पुरूषार्थ की लाइन में नम्बर वन लेना चाहिए, इसलिये इसी वर्ष में - दूसरे वर्ष का इन्तज़ार नहीं करना - इसी वर्ष में नम्बर वन लेना है।
❼ शक्तियाँ सोचती होंगी कि हम नम्बर दो हो जायेंगी क्या? शक्तियों के बिना तो शिव बाप की भी कोई चाल नहीं चल सकती। चल सकती है? शक्तियों को इसमें भी त्याग करना चाहिए, शक्तियों का त्याग पूजा जाता है।
❽ जो त्याग करता है उसका भाग्य स्वत: बनता है। इसलिये दोनों ही भाई-भाई के रूप में तीव्र पुरूषार्थ करो।
FILL IN THE BLANKS:-
{ शक्तियों, अलबेलापन, पुरानी, सामना, व्यर्थ, उपराम, विनाश, कामना, देश, माया, समाचार, पूजा, संकल्प, पुरुषार्थ, त्याग }
1 जब तक ______ है, तब तक _____ से सम्पूर्ण रीति _______ नही कर सकते।
कामना / माया / सामना
2 इस व्यक्त ______ व इस ______ दुनिया से ________।
देश / पुरानी / उपराम
3 समर्थ संकल्प के आगे यह भिन्न-भिन्न प्रकार के _____ व _______ के ______ समाप्त हो जाएंगे।
व्यर्थ / अलबेलेपन / संकल्प
4 ______ को इसमें भी ______ करना चाहिए, शक्तियों का त्याग _____ जाता है।
शक्तियों / त्याग / पूजा
5 समाचार के आधार पर पुरुषार्थ नही करना, आपके _______ से ही _______ के ________ चारों ओर फैलेंगे।
पुरुषार्थ / विनाश / समाचार
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✖】【✔】
1 :- स्मृति का स्विच अपने कन्ट्रोल में रखो, जहाँ चाहो, जब चाहो ओर जितना समय चाहो वैसे अपने स्थान को व स्थिति को सेट कर सको।【✔】
2 :- पावँ के नीचे ग्लोब दिखाते हैं, व ग्लोब के ऊपर बैठा हुआ दिखाते है अर्थात उनका मालिकपन व अधिकारीपन दिखाते है तो इसका अपना स्वरूप बनाओ।【✖】
पावँ के नीचे ग्लोब दिखाते हैं, व ग्लोब के ऊपर बैठा हुआ दिखाते है अर्थात उनका मालिकपन व अधिकारीपन दिखाते है तो इसका अपना चित्र बनाओ।
3 :- पाण्डव सेना की व शक्ति सेना की यह स्टेज अन्त में आएगी तो साईंस पॉवर तो साइलेंस से कम हो गई। क्योंकि साइंस ने तो अभी भी इन तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है।【✖】
पाण्डव सेना की व शक्ति सेना की यह स्टेज अन्त में आएगी तो साइलेन्स पॉवर तो सांइस से कम हो गई। क्योंकि साइंस ने तो अभी भी इन तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है।
4 :- बाप ने बोला और बच्चों की स्थिति ऐसी ही उस घड़ी बन जाए उसको कहते है एवररेडी।【✔】
5 :- एक सेकंड के बजाए एक मिनट भी हुआ तो फर्स्ट डिवीजन में पास नही होंगे। 【✔】