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AVYAKT MURLI
13 / 04 / 73
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13-04-73 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
भक्त और भावना का फल
विश्व कल्याणकारी सर्व शक्तिवान्, वरदाता, सर्व-आत्माओं के पिता और भावना का फल देने वाले भगवान् बोले :-
जैसे भक्तों को भावना का फल देते हैं, वैसे ही कोई आत्मा भावना रखकर, तड़पती हुई, आपके पास आये कि ‘जीय दान दो’ वा ‘हमारे मन को शान्ति दो’ तो आप लोग उनकी भावना का फल दे सकती हो? उन्हें अपने पुरूषार्थ से जो कुछ भी प्राप्ति होती है वह तो हुआ उनका अपना पुरूषार्थ और उनका फल। लेकिन आपको कोई अगर कहे कि मैं निर्बल हूँ, मेरे में शक्ति नहीं है तो ऐसे को आप भावना का फल दे सकती हो? (बाप द्वारा)। बाप को तो पीछे जानेंगे-जब कि पहले उन्हें दिलासा मिले। लेकिन यदि भावना का फल प्राप्त हो सकता है तब उनकी बुद्धि का योग डायरेक्शन प्रमाण लग सकेगा। ऐसी भावना वाले भक्त अन्त में बहुत आयेंगे। एक हैं-पुरूषार्थ करके पद पाने वाले, वह तो आते रहते हैं, लेकिन अन्त में पुरूषार्थ करने का न तो समय रहेगा और न आत्माओं में शक्ति ही रहेगी, ऐसी आत्माओं को फिर अपने सहयोग से और अपने महादान देने के कर्त्तव्य के आधार से उन की भावना का फल दिलाने के निमित्त बनना पड़े। वे तो यही समझेंगे कि शक्तियों द्वारा मुझे यह वरदान मिला। जो गायन है ‘नजर से निहाल करना।’
जैसे बहुत तेज बिजली होती है तो स्विच ऑन करने से जहाँ भी बिजली लगाते हो उस स्थान के कीटाणु एक सेकेण्ड में भस्म हो जाते हैं। इसी प्रकार जब आप आत्माएं अपनी सम्पूर्ण पॉवरफुल स्टेज पर हों और जैसे कोई आया और एक सेकेण्ड में स्विच ऑन किया अर्थात् शुभ संकल्प किया अथवा शुभ भावना रक्खी कि इस आत्मा का भी कल्याण हो-यह है संकल्प-रूपी स्विच। इनको ऑन करने अर्थात् संकल्प को रचने से फौरन ही उनकी भावना पूरी हो जायेगी, वे गद्गद हो जायेंगे, क्योंकि पीछे आने वाली आत्मायें थोड़े में ही ज्यादा राज़ी होंगी। समझेंगी कि सर्व प्राप्तियाँ हुई। क्योंकि उनका है ही कना-दाना लेने का पार्ट। उनके हिसाब से वही सब-कुछ हो जायेगा। तो सर्व-आत्माओं को उनकी भावना का फल प्राप्त हो और कोई भी वंचित न रहे; इसके लिए इतनी पॉवरफुल स्टेज अर्थात् सर्वशक्तियों को अभी से अपने में जमा करेंगे तब ही इन जमा की हुई शक्तियों से किसी को समाने की शक्ति और किसी को सहन करने की शक्ति दे सकेंगे अर्थात् जिसको जो आवश्यकता होगी वही उसको दे सकेंगे।
जैसे डॉक्टर के पास जैसा रोगी आता है, उसी प्रमाण उनको डोज़ (Dose) देता है और तन्दुरूस्त बनाता है। इसी प्रकार आपको सर्वशक्तियाँ अपने पास जमा करने का अभी से पुरूषार्थ करना पड़े। क्योंकि जिनको विश्व महाराजन् बनना है उनका पुरूषार्थ सिर्फ अपने प्रति नहीं होगा। अपने जीवन में आने वाले विघ्न व परीक्षाओं को पास करना-वह तो बहुत कॉमन (Common) है लेकिन जो विश्व-महाराजन् बनने वाले हैं उनके पास अभी से ही स्टॉक (Stock) भरपूर होगा जो कि विश्व के प्रति प्रयोग हो सके। तो इसी प्रकार यहाँ भी जो विशेष आत्मायें निमित्त बनेंगी उनमें भी सभी शक्तियों का स्टॉक अन्दर अनुभव हो, तब ही समझें कि अब सम्पूर्ण स्टेज की व प्रत्यक्षता का समय नजदीक है। उस समय कोई याद नहीं होगा। दूसरों के प्रति ही हर सेकेण्ड, हर संकल्प होगा।
अभी तो अपने पुरूषार्थ व अपने तन के लिए समय देना पड़ता है, शक्ति भी देनी पड़ती है। अपने पुरूषार्थ के लिए मन भी लगाना पड़ता है, फिर यह स्टेज समाप्त हो जायेगी। फिर यह पुरूषार्थ बदली होकर ऐसा अनुभव होगा कि एक सेकेण्ड भी और एक संकल्प भी अपने प्रति न जाय बल्कि विश्व के कल्याण के प्रति ही हो। ऐसी स्टेज को कहा जायेगा - ‘सम्पूर्ण’ अर्थात् ‘सम्पन्न’। अगर सम्पन्न नहीं तो सम्पूर्ण भी नहीं। क्योंकि सम्पन्न स्टेज ही सम्पूर्ण स्टेज है। तो ऐसे अपने पुरूषार्थ को और ही महीन करते जाना है। विशेष आत्माओं का पुरूषार्थ भी ज़रूर न्यारा होगा। तो क्या पुरूषार्थ में ऐसा परिवर्तन अनुभव होता जा रहा है? अभी तो दाता के बच्चे दातापन की स्टेज पर आने हैं। देना ही उनका लेना होना है। तो अब समय की समीपता के साथ सम्पन्न स्टेज भी चाहिए। आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज ही सम्पूर्णता को समीप लायेगी। तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करें कि जैसे पहले अपने पुरूषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है? अपनी बाडी कॉनशस (Conscious) देह-अभिमान नेचरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जाएगा। सरकमस्टॉन्सेस प्रमाण भी ऐसे होता जाएगा। इससे ऑटोमेटिकली सोलकॉन्शस होंगे। कार्य में लगना अर्थात् सोलकॉ न्शस होना। बगैर सोलकॉन्शस के कार्य सफल नहीं होगा। तो निरन्तर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वत: ही हो जायेगी। विश्व-कल्याणकारी बने हो या आत्म-कल्याणकारी बने हो? अपने हिसाब-किताब करने में बिजी हो या विश्व की सर्व-आत्माओं के कर्मबन्धन व हिसाब-किताब चुक्तु कराने में बिजी हो? किसमें बिजी हो? लक्ष्य रखा है, सदा विश्व-कल्याण के प्रति तन, मन, धन सभी लगाओ। अच्छा! ओम शान्ति।
20-06-73 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
लगन का साधन -- विघ्न
वरदाता, सर्व कल्याणकारी विघ्न विनाशक बाबा बोले :-
वरदान भूमि से वरदाता द्वारा सर्व वरदानों को प्राप्त करके क्या तीव्र पुरुषार्थी बनते जा रहे हो? पुरूषार्थ की चाल में जो परिवर्तन किया है, वह अविनाशी किया है या अल्पकाल के लिए? कैसी भी कोई परिस्थिति आये, कैसे भी विघ्न हिलाने के लिए आ जाए लेकिन जिसके साथ स्वयं बाप सर्वशक्तिवान् है उनके सामने वह विघ्न क्या हैं? उनके आगे विघ्न, परिवर्तन हो क्या बन जायेंगे? ‘विघ्न लगन का साधन बन जायेंगे।’ हर्षित होंगे ना? यदि कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति विघ्न लाने के निमित्त बनता है तो उसके प्रति घृणा-दृष्टि, व्यर्थ संकल्पों की उत्पत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन उसके प्रति वाह-वाह निकले। अगर यह दृष्टि रखो तो आप सभी की श्रेष्ठ दृष्टि हो जायेगी। कोई कैसा भी हो, लेकिन अपनी दृष्टि और वृत्ति सदैव शुभचिन्तक की हो और कल्याण की भावना हो। हर बात में कल्याण दिखाई दे। कल्याणकारी बाप की सन्तान कल्याणकारी हो ना? कल्याणकारी बनने के बाद कोई भी अकल्याण की बात हो नहीं सकती। यह निश्चय और स्मृति-स्वरूप हो जाओ तो आप कभी डगमगा नहीं सकेंगे।
जैसे कोई हरा या लाल चश्मा पहनता है तो उसको सभी हरा अथवा लाल ही दिखाई पड़ता है। वैसे आप लोगों के तीसरे नेत्र पर कल्याणकारी का चश्मा पड़ा है। तीसरा नेत्र है ही कल्याणकारी। उसमें अकल्याण दिखाई पड़े, यह हो ही नहीं सकता। जिसको अज्ञानी लोग अकल्याण समझते हैं लेकिन आपका उस अकल्याण में ही कल्याण समाया हुआ है। जैसे लोग विनाश को अकल्याण समझते हैं लेकिन आप समझते हो कि इससे ही गति-सद्गति के गेट्स खुलेंगे। तो कोई भी बात सामने आती है, ‘सभी में कल्याण भरा हुआ है’-ऐसे निश्चय-बुद्धि होकर चलो तो क्या प्राप्ति होगी?-एक-रस अवस्था हो जायेगी। किसी भी बात में रूकना नहीं चाहिए। जो रूकते हैं वे कमजोर होते है। महावीर कभी नहीं रूकते। ऐसे नहीं विघ्न आयें और रूक जायें। अच्छा।
इस मुरली का सार
1. बाबा कहते कि यदि कोई भी परिस्थिति या व्यक्ति विघ्न लाने के निमित्त बनता है, तो उसके प्रति घृणा दृष्टि न हो, व्यर्थ संकल्पों की उत्पत्ति न होनी चाहिए लेकिन उसके प्रति वाह-वाह निकले क्योंकि उसी विघ्न से तुम्हारी लग्न बढ़ेगी। 2. जैसे कोई हरा या लाल चश्मा पहनता है तो उसको सब कुछ वैसा ही दिखाई पड़ता है, वैसे ही आप लोगों के तीसरे नेत्र पर भी कल्याणकारी का चश्मा पड़ा है। तीसरा नेत्र है ही कल्याणकारी। उसमें अकल्याण हो नहीं सकता। हर बात में तुम्हारा कल्याण ही है-अगर यह बात हरेक की बुद्धि में रहे तो सभी की एक-रस अवस्था हो जायेगी।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- "नज़र से निहाल करना" इस का प्रयोग कब करना है और कैसे?
प्रश्न 2 :- अपने पास सर्वशक्तियाँ जमा करने प्रति बापदादा ने क्या समझानी दी ?
प्रश्न 3 :- सम्पूर्ण अर्थात सम्पन्न किसको कहते हैं ?
प्रश्न 4 :- सोलकॉन्सियस का अर्थ क्या है?
प्रश्न 5 :-"हर बात में कल्याण दिखाई दे", इसके प्रति बापदादा ने क्या समझानी दी ?
FILL IN THE BLANKS:-
( बिजली, दाता, विश्वकल्याण, स्विच, न्यारा, कीटाणु ,परीक्षाओं, स्टॉक, लेना, विश्व, कॉमन, पुरुषार्थ, लगाओ, दातापन, ऑन, परिवर्तन )
1 जैसे बहुत तेज _____ होती है तो ____ ____करने से जहां भी बिजली लगाते हो उस स्थान के ____ एक सेकेंड में भस्म हो जाते हैं।
2 अपने जीवन मे आने वाले विघ्न व ____ को पास करना -वह तो ____ है लेकिन जो विश्व महाराजन बनने वाले हैं उनके पास अभी से ही ____भरपूर होगा जो कि ____ के प्रति प्रयोग हो सके।
3 अभी तो ____ के बच्चे ____ की स्टेज पर आने हैं। देना ही उनका _____ होना है।
4 विशेष आत्माओं का ____भी ज़रूर ____ होगा। तो क्या पुरुषार्थ में ऐसा ____ अनुभव होता जा रहा है।
5 लक्ष्य रखा है, सदा ______ के प्रति तन ,मन,धन सभी ____।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- बगैर बाडीकान्सेस के कार्य सफल नही होगा। तो कभी-कभी आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वतः ही हो जाएगी।
2 :- आत्म-कल्याणकारी बने हो या विश्व-कल्याणकारी बने हो? अपने हिसाब-किताब मिटाने में बिजी हो या विश्व की सर्व-आत्माओं के कर्मबन्धन व हिसाब-किताब चुक्तु कराने में बिजी हो?
3 :- पुरुषार्थ की चाल में जो परिवर्तन किया है,वह अविनाशी किया है या अल्पकाल के लिए?
4 :- तीसरा नेत्र है ही कल्याणकारी।उसमें अकल्याण दिखाई पड़े, यह हो ही नहीं सकता। आपका उस अकल्याण में ही कल्याण समाया हुआ है।
5 :- किसी भी बात में रुकना नहीं चाहिए। जो रुकते हैं वे कमजोर होते है। महावीर कभी नहीं रुकते।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- "नज़र से निहाल करना" इस का प्रयोग कब करना है और कैसे?
उत्तर 1 :- बाबा ने इस का अर्थ ऐसे समझाया है कि :-
❶ जैसे भक्तों को भावना का फल देते हैं, वैसे ही कोई आत्मा भावना रखकर, तड़पती हुई, आपके पास आये की 'जीय दान दो' वा 'हमारे मन को शांति दो' तो आप लोग उनकी भावना का फल दे सकती हो? उन्हें अपने पुरुषार्थ से जो कुछ भी प्राप्ति होती है वह तो हुआ उनका अपना पुरुषार्थ और उनका फल।
❷ लेकिन आपको कोई अगर कहे कि मैं निर्बल हूँ, मेरे में शक्ति नही है तो ऐसे को आप भावना का फल दे सकती हो(बाप द्वारा)। बाप को तो पीछे जानेंगे-जब कि पहले उन्हें दिलासा मिले। लेकिन यदि भावना का फलप्राप्त हो सकता है तब उनकी बुद्धि का योग डायरेक्शन प्रमाण लग सकेगा। ऐसी भावना वाले भक्त अंत मे बहुत आयेंगे।
❸ एक हैं-पुरुषार्थ करके पद पाने वाले, वह आते रहते हैं, लेकिन अन्त मे पुरुषार्थ करने का न तो समय रहेगा और न आत्माओं में शक्ति ही रहेगी, ऐसी आत्माओं को फिर अपने सहयोग से और अपने महादान देने के कर्तव्य के आधार से उन की भावना का फल दिलाने के निमित बनना पड़े। वे तो यही समझेंगे कि शक्तियों द्वारा मुझे यह वरदान मिला।
प्रश्न 2 :- अपने पास सर्वशक्तियाँ जमा करने प्रति बापदादा ने क्या समझानी दी ?
उत्तर 2 :- बाबा ने समझानी दी कि :-
❶ जब आप आत्मायें अपनी सम्पूर्ण पॉवरफुल स्टेज पर हों और जैसे कोई आया और एक सेकेण्ड मे स्विच ऑन किया अर्थात शुभ संकल्प किया अथवा शुभ भावना रखी कि इस आत्मा का भी कल्याण हो-यह है संकल्प रूपी स्विच। इनको आन करने अर्थात संकल्प को रचने से फौरन ही इनकी भावना पूरी हो जाएगी, वे गद्गद हो जाएंगे, क्योंकि पीछे आने वाली आत्मायें तो थोड़े में ही ज्यादा राज़ी होंगी। समझेंगे कि सर्व प्राप्तियाँ हुई।
❷ क्योंकि उनका है ही कना- कना लेने का पार्ट। उनके हिसाब से वही सब-कुछ हो जाएगा। तो सर्व-आत्माओं को उनकी भावना का फल प्राप्त हो और कोई भी बंचित न रहे;इसके लिए इतनी पावरफुल स्टेज अर्थात सर्वशक्तियों को अभी से अपने मे जमा करेंगे तब ही इन जमा की हुई शक्तियों से किसी को समाने की शक्ति और किसीको सहन करने की शक्ति दे सकेंगे अर्थात जो आवश्यकता होगी वही उसको दे सकेंगे। जो गायन है "नज़र से निहाल करना"।
प्रश्न 3 :- सम्पूर्ण अर्थात सम्पन्न किसको कहते हैं?
उत्तर 3 :-सम्पूर्ण अर्थात सम्पन्न स्टेज वो है,
❶ अभी तो अपने पुरुषार्थ व अपने तन के लिए समय देना पड़ता है, शक्ति भी देनी पड़ती है। अपने पुरुषार्थ के लिए मन भी लगाना पड़ता है, फिर यह स्टेज समाप्त हो जाएगी। फिर यह पुरुषार्थ बदली होकर ऐसा अनुभव होगा कि एक सेकेण्ड भी और एक संकल्प भी अपनी प्रति न जाय बल्कि विश्व के कल्याण के प्रति ही हो। इसी स्टेज को कहा जायेगा 'सम्पूर्ण' अर्थात 'सम्पन्न'।
❷ क्योंकि सम्पन्न स्टेज ही सम्पूर्ण है।
प्रश्न 4 :- सोलकॉन्सियस का अर्थ क्या है?
उत्तर 4 :-इसका अर्थ है,
❶ आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज ही सम्पूर्णता को समीप लाएगी। तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करो कि जैसे पहले आप के पुरुषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है? अपनी बाडी कॉन्शस (conscious) देह-अभिमान नेचरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जाएगा।
❷ सरकमटेन्स प्रमाण भी ऐसे होता जाएगा। इससे ऑटोमेटिकली सोलकॉन्सियस होंगे।
❸ कार्य में लगना अर्थात सोलकॉन्सियस होना।
प्रश्न 5 :- "हर बात में कल्याण दिखाई दे" इसके प्रति बापदादा ने क्या समझानी दी?
उत्तर 5 :- बाबा ने समझानी दी कि :-
❶ यदि कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति विघ्न लेन के निमित बनता है तो उसके प्रति घृणा-दृष्टि, व्यर्थ संकल्पों की उत्पत्ति नही होनी चाहिए लेकिन उसके प्रति वाह-वाह निकले। अगर यह दृष्टि रखो तो आप सभी की श्रेष्ठ दृष्टि हो जाएगी। कोई ऐसा भी हो, लेकिन अपनी दृष्टि और वृत्ति सदैव शुभचिंतक की हो और कल्याण की भावना हो।
❷ कल्याणकारी बाप की संतान कल्याणकारी हो ना? कल्याणकारी बनने के बाद कोई भी अकल्याण की बात ही नहीं सकती। यह निश्चय और स्मृति-स्वरूप हो जाओ तो आप कभी डगमगा नहीं सकेंगे।
FILL IN THE BLANKS:-
( बिजली, दाता, विश्वकल्याण, स्विच, न्यारा, कीटाणु, परीक्षाओं, स्टॉक, लेना, विश्व, कॉमन, पुरुषार्थ, लगाओ, दातापन, ऑन, परिवर्तन )
1 जैसे बहुत तेज _____ होती है,तो ____ _____ करने से जहां भी बिजली लगाते हो उस स्थान के ____ एक सेकेंड में भस्म हो जाते हैं।
बिजली / स्विच ऑन / कीटाणु
2 अपने जीवन मे आन वाले विघ्न व ____ को पास करना- वह तो ____ है लेकिन जो विश्व महाराजन बनने वाले हैं उनके पास अभी से ही _____भरपूर होगा जो कि ____ के प्रति प्रयोग हो सकेे।
परीक्षाओं / कॉमन / स्टॉक / विश्व
3 अभी तो ____ के बच्चे ____ की स्टेज पर आने हैं। देना ही उनका ____ होना है।
दाता / दातापन / लेना
4 विशेष आत्माओं का ____भी ज़रूर ____ होगा। तो क्या पुरुषार्थ में ऐसा ____ अनुभव होता जा रहा है।
पुरुषार्थ / न्यारा / परिवर्तन
5 लक्ष्य रखा है, सदा ____ के प्रति तन, मन, धन, सभी ____
विश्व-कल्याण / लगाओ
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- बगैर बाडीकान्सेस के कार्य सफल नहीं होगा। तो कभी-कभी आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वतः ही हो जाएगी【✖】
बगैर सोलकॉन्सियस के कार्य सफल नहीं होगा। तो निरंतर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वतः ही हो जाएगी।
2 :- आत्म-कल्याणकारी बने हो या विश्व-कल्याण कारी बने हो? अपने हिसाब-किताब मिटाने में बिजी हो या विश्व की सर्व-आत्माओं के कर्मबन्धन व हिसाब-किताब चुक्तु कराने में बिजी हो?【✖】
विश्व कल्याणकारी बने हो या आत्म कल्याणकारी बने हो? अपने हिसाब-किताब करने में बिजी हो या विश्व की सर्व-आत्माओं के कर्मबन्धन व हिसाब-किताब चुक्तु कराने में बिजी हो?
3 :- पुरुषार्थ की चाल में जो परिवर्तन किया है, अविनाशी किया है या अल्पकाल के लिए?।【✔】
4 :- तीसरा नेत्र है ही कल्याणकारी। उसमें अकल्याण दिखाई पड़े, यह हो ही नहीं सकता। आपका उस अकल्याण में ही कल्याण समाया हुआ है।【✔】
5 :- किसी भी बात में रुकना नहीं चाहिए। जो रुकते हैं वे कमजोर होते है। महावीर कभी नहीं रुकते।【✔】