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AVYAKT MURLI
10 / 06 / 72
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10-06-72 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सूक्ष्म अभिमान और अनजानपन
वर्तमान समय चारों ओर के पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ में मुख्य दो बातों की कमज़ोरी वा कमी दिखाई देती है, जिस कमी के कारण जो कमाल दिखानी चाहिए वह नहीं दिखा पाते, वह दो कमियां कौनसी हैं? एक तरफ है अभिमान, दूसरी तरफ है अनजानपन। यह दोनों ही बातें पुरूषार्थ को ढीला कर देती हैं। अभिमान भी बहुत सूक्ष्म चीज़ है। अभिमान के कारण कोई ने ज़रा भी कोई उन्नति के लिए इशारा दिया तो सूक्ष्म में न सहनशक्ति की लहर आ जाती है वा संकल्प आता है कि यह क्यों कहा? इसको भी अभिमान सूक्ष्म रूप में कहा जाता है। कोई ने कुछ इशारा दिया तो उस इशारे को वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए उन्नति का साधन समझकर के उस इशारे को समा देना वा अपने में सहन करने की शक्ति भरना - यह अभ्यास होना चाहिए। सूक्ष्म में भी वृति वा दृष्टि में हलचल मचती है - क्यों, कैसे हुआ.? इसको भी देही-अभिमानी की स्टेज नहीं कहेंगे। जैसे महिमा सुनने के समय वृति वा दृष्टि में उस आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, वैसे ही अगर कोई शिक्षा का इशारा देते हैं, तो उसमें भी उसी आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिन्तक की भावना रहती कि यह आत्मा मेरे लिए बड़ी से बड़ी शुभचिन्तक है, ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी। अगर देही- अभिमानी नहीं हैं तो दूसरे शब्दों में अभिमान कहेंगे। इसलिए अपमान को सहन नहीं कर सकते। और दूसरे तरफ है बिल्कुल अनजान, इस कारण भी कई बातों में धोखा खाते हैं। कोई अपने को बचाने के लिए भी अनजान बनता है, कोई रीयल भी अनजान बनता है। तो इन दोनों बातों के बजाए स्वमान जिससे अभिमान बिल्कुल खत्म हो जाए और निर्माण, यह दोनों बातें धारण करनी हैं। मन्सा में स्वमान की स्मृति रहे और वाचा में, कर्मणा में निर्माण अवस्था रहे तो अभिमान खत्म हो जाएगा। फिलोसोफर हो गए हैं लेकिन स्प्रीचुअल नहीं बने हैं अर्थात् यह स्पिरिट नहीं आई है। तो जो आत्मिक स्थिति में, आत्मिक खुमारी में रहते हैं - इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल। आजकल फिलासफर ज्यादा दिखाई देते हैं, स्प्रीचुअल पावर कम है। स्पिरिट एक सेकेण्ड में क्या से क्या कर दिखा सकती है! जैसे जादूगर एक सेकेण्ड में क्या से क्या कर दिखाते हैं, वैसे स्प्रीचुअल्टी वाले में भी कर्त्तव्य की सिद्धि आ जाती। उनमें हाथ की सिद्धि होती है। यह है हर कर्म, हर संकल्प में सिद्धि- स्वरूप। सिद्धि अर्थात् प्राप्ति। सिर्फ प्वाईंट्स सुनना, सुनाना - इसको फिलोसोफी कहा जाता है। फिलासाफी का प्रभाव अल्पकाल का पड़ता है, स्प्रीचुअल्टी का प्रभाव सदा के लिए पड़ता है। तो अभी अपने में कर्म की सिद्धि प्राप्त करने के लिए रूहानियत लानी है। अनजान बनने का अर्थ है कि जो सुनते हैं उसको स्वरूप तक नहीं लाते हैं। योग्य टीचर उसको कहा जाता है जो अपने शिक्षा-स्वरूप से शिक्षा देवे। उनका स्वरूप ही शिक्षा सम्पन्न होगा। उनका देखना-चलना भी किसको शिक्षा देगा। जैसे साकार रूप में कदम-कदम, हर कर्म शिक्षक के रूप में प्रैक्टिकल में देखा। जिसको दूसरे शब्दों में चरित्र कहते हो। किसको वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कामन बात है। लेकिन सभी अनुभव चाहते हैं। अपने श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से अनुभव कराना है। अच्छा |
12-06-72 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
रिफ़ाइन स्थिति की पहचान
जैसे साईंस रिफाइन होती जाती है, ऐसे अपने आप में साइलेन्स की शक्ति वा अपनी स्थिति रिफाइन होती जा रही है? जब रिफाइन चीज़ होती है उसमें क्या-क्या विशेषता होती है? रिफाइन चीज़ जो होती हैं उनकी क्वान्टिटी भले कम होती है, लेकिन क्वालिटी पावरफुल होती है। जो चीज़ रिफाइन नहीं होगी उसकी क्वान्टिटी ज्यादा, क्वालिटी कम होगी। तो यहां भी जबकि रिफाइन होते जाते हैं; तो कम समय, कम संकल्प, कम इनर्जा में जो कर्त्तव्य होगा वह सौ गुणा होगा और हल्कापन भी हो जाता। हल्केपन की निशानी होगी -- वह कब नीचे नहीं आवेगा, ना चाहते भी स्वत: ही ऊपर स्थित रहेगा। यह है रिफाइन क्वालिफिकेशन। तो अपने में यह दोनों विशेषताएं अनुभव होती जाती हैं? भारी होने कारण मेहनत ज्यादा करनी होती है। हल्का होने से मेहनत कम हो जाती है। तो ऐसे नेचरल परिवर्तन होता जाता है। यह दोनों विशेषताएं सदा अटेन्शन में रहें। इसको सामने रखते हुए अपनी रिफाइननेस को चेक कर सकते हो। रिफाइन चीज़ जास्ती भटकती नहीं, स्पीड पकड़ लेती है। अगर रिफाइन ना होगी, किचड़ा मिक्स होगा तो स्पीड पकड़ नहीं सकेगी, निर्विघ्न चल ना सकेंगे। एक तरफ जितना-जितना रिफाइन हो रहे हो, दूसरे तरफ उतना ही छोटी-छोटी बातें वा भूलें वा संस्कार जो हैं उनका फाइन भी बढ़ता जा रहा है। एक तरफ वह नजारा, दूसरे तरफ रिफाइन होने का नजारा, दोनों का फोर्स है। अगर रिफाइन नहीं तो फाइन समझो। दोनों साथ-साथ नजारे दिखाई दे रहे हैं। वह भी अति में जा रहा है और यह भी अति प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता जा रहा है। गुप्त अब प्रख्यात हो रहा है। तो जब दोनों बातें प्रत्यक्ष हों उसी अनुसार ही तो नंबर बनेंगे। माला हाथ से नहीं पिरोनी है। चलन से ही स्वयं अपना नंबर ले लेते हैं। अभी नंबर फिक्स होने का समय आ रहा है। इसलिए दोनों बातें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं और दोनों को देखते हुए साक्षी हो हर्षित रहना है। खेल भी वही अच्छा लगता है जिसमें कोई बात की अति होती है। वही सीन अति आकर्षण वाली होती है। अभी भी ऐसी कसमकश की सीन चल रही है। देखने में मजा आता है ना। वा तरस आता है? एक तरफ को देख खुश होते, दूसरे तरफ को देख रहम पड़ता। दोनों का खेल चल रहा है। आज खेल दिखाया कि पर्दे पर क्या चल रहा है। वतन से तो बहुत स्पष्ट दिखाई देता है। जितना जो ऊंच होता है उनको स्पष्ट दिखाई देता है। जो नीचे स्टेज पर पार्टधारी उनको कुछ दिखाई दे सकता? कुछ भी दिखाई दे सकता? साक्षी हो ऊपर से सभी स्पष्ट दिखाई देता है। आज वतन में वर्तमान खेल की सीन देख रहे थे। अच्छा।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- वर्तमान समय चारों ओर के पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ में मुख्य कौन सी दो बातों की कमज़ोरी वा कमी दिखाई देती है? स्पष्ट करें।
प्रश्न 2 :- देही-अभिमानी की स्टेज और अनजान के सन्दर्भ में बापदादा के महावाक्य क्या है?
प्रश्न 3 :- फिलासाफी का प्रभाव और स्प्रीचुअल्टी का प्रभाव के सम्बन्ध में बापदादा के महावाक्य क्या है?
प्रश्न 4 :- जब रिफाइन चीज़ होती है तो उसमें क्या-क्या विशेषता होती है? स्पष्ट करें।
प्रश्न 5 :- अभी नंबर फिक्स होने का समय आ रहा है। इसलिए दोनों बातें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। इस सन्दर्भ में बापदादा के महावाक्य क्या है?
FILL IN THE BLANKS:-
( सीन, साइन्स, प्रख्यात, प्रयत्क्ष, खत्म, स्प्रीचुअल, साइलेन्स, मजा, स्वमान, धारण, स्पिरिट, रिफाइन, नम्बर, तरस,प्रयत्क्ष )
1 तो इन दोनों बातों के बजाए ______ जिससे अभिमान बिल्कुल ______ हो जाए और निर्माण, यह दोनों बातें ______ करनी हैं।
2 फिलोसोफर ______ हो गए हैं लेकिन ______ नहीं बनें हैं अर्थात् यह ______ नही आई है।
3 जैसे ______ रिफाइन होती जाती है, ऐसे अपने आप में ______ की शक्ति वा अपनी स्थिति ______ होती जा रही है?
4 गुप्त अब ______ हो रहा है। तो जब दोनों बातें ______ हों उसी अनुसार ही तो ______ बनेंगे।
5 अभी भी ऐसी कसमकश की ______ चल रही है। देखने में ______ आता है ना। वा ______ आता है?
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- अनजान बनने का अर्थ है कि जो सुनते हैं उसको स्वरूप तक नहीं लाते हैं।
2 :- आजकल फिलासफर कम दिखाई देते हैं, स्प्रीचुअल पावर ज्यादा है।
3 :- किसको वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कामन बात है।
4 :- भारी होने कारण मेहनत कम करनी होती है। हल्का होने से मेहनत ज्यादा हो जाती है।
5 :- माला हाथ से नहीं पिरोनी है। चेहरे से ही स्वयं अपना नंबर ले लेते हैं।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- वर्तमान समय चारों ओर के पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ में मुख्य कौन सी दो बातों की कमज़ोरी वा कमी दिखाई देती है? स्पष्ट करें।
उत्तर 1 :- बापदादा कहते हैं मुख्य दो बातों की कमज़ोरी वा कमी दिखाई देती है :-
❶ जिस कमी के कारण जो कमाल दिखानी चाहिए वह नहीं दिखा पाते। एक तरफ है अभिमान, दूसरी तरफ है अनजानपन। यह दोनों ही बातें पुरूषार्थ को ढीला कर देती हैं।
❷ अभिमान भी बहुत सूक्ष्म चीज़ है। अभिमान के कारण कोई ने ज़रा भी कोई उन्नति के लिए इशारा दिया तो सूक्ष्म में न सहनशक्ति की लहर आ जाती है वा संकल्प आता है कि यह क्यों कहा? इसको भी अभिमान सूक्ष्म रूप में कहा जाता है।
❸ कोई ने कुछ इशारा दिया तो उस इशारे को वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए उन्नति का साधन समझकर के उस इशारे को समा देना वा अपने में सहन करने की शक्ति भरना - यह अभ्यास होना चाहिए।
प्रश्न 2 :- देही-अभिमानी की स्टेज और अनजान के सन्दर्भ में बापदादा के महावाक्य क्या है?
उत्तर 2 :- देही-अभिमानी ओर अनजान की स्टेज के सन्दर्भ में बापदादा कहते हैं
❶ सूक्ष्म में भी वृति वा दृष्टि में हलचल मचती है - क्यों, कैसे हुआ.? इसको भी देही-अभिमानी की स्टेज नहीं कहेंगे।
❷ जैसे महिमा सुनने के समय वृति वा दृष्टि में उस आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है।
❸ वैसे ही अगर कोई शिक्षा का इशारा देते हैं, तो उसमें भी उसी आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिन्तक की भावना रहती कि यह आत्मा मेरे लिए बड़ी से बड़ी शुभचिन्तक है, ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी।
❹ अगर देही- अभिमानी नहीं हैं तो दूसरे शब्दों में अभिमान कहेंगे। इसलिए अपमान को सहन नहीं कर सकते।
❺ और दूसरे तरफ है बिल्कुल अनजान, इस कारण भी कई बातों में धोखा खाते हैं।
❻ कोई अपने को बचाने के लिए भी अनजान बनता है, कोई रीयल भी अनजान बनता है।
❼ मन्सा में स्वमान की स्मृति रहे और वाचा में, कर्मणा में निर्माण अवस्था रहे तो अभिमान खत्म हो जाएगा।
प्रश्न 3 :- फिलासाफी का प्रभाव और स्प्रीचुअल्टी का प्रभाव के सम्बन्ध में बापदादा के महावाक्य क्या है?
उत्तर 3 :- बापदादा कहते हैं :-
❶ जो आत्मिक स्थिति में, आत्मिक खुमारी में रहते हैं - इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल।
❷ स्पिरिट एक सेकेण्ड में क्या से क्या कर दिखा सकती है! जैसे जादूगर एक सेकेण्ड में क्या से क्या कर दिखाते हैं, वैसे स्प्रीचुअल्टी वाले में भी कर्त्तव्य की सिद्धि आ जाती।
❸ उनमें हाथ की सिद्धि होती है। यह है हर कर्म, हर संकल्प में सिद्धि- स्वरूप। सिद्धि अर्थात् प्राप्ति।
❹ सिर्फ प्वाईंट्स सुनना, सुनाना - इसको फिलोसोफी कहा जाता है। फिलासाफी का प्रभाव अल्पकाल का पड़ता है, स्प्रीचुअल्टी का प्रभाव सदा के लिए पड़ता है।
❺ तो अभी अपने में कर्म की सिद्धि प्राप्त करने के लिए रूहानियत लानी है। योग्य टीचर का स्वरूप ही शिक्षा सम्पन्न होगा। उनका देखना-चलना भी किसको शिक्षा देगा।
❻ जैसे साकार रूप में कदम-कदम, हर कर्म शिक्षक के रूप में प्रैक्टिकल में देखा। जिसको दूसरे शब्दों में चरित्र कहते हो।
❼ लेकिन सभी अनुभव चाहते हैं। अपने श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से अनुभव कराना है।
प्रश्न 4 :- जब रिफाइन चीज़ होती है तो उसमें क्या-क्या विशेषता होती है? स्पष्ट करें।
उत्तर 4 :- बापदादा कहते हैं कि :-
❶ रिफाइन चीज़ जो होती हैं उनकी क्वान्टिटी भले कम होती है, लेकिन क्वालिटी पावरफुल होती है।
❷ तो यहाँ भी जबकि रिफाइन होते जाते हैं; तो कम समय, कम संकल्प, कम एनर्जी में जो कर्त्तव्य होगा वह सौ गुणा होगा और हल्कापन भी हो जाता।
❸ हल्केपन की निशानी होगी -- वह कब नीचे नहीं आवेगा, ना चाहते भी स्वत: ही ऊपर स्थित रहेगा। यह है रिफाइन क्वालिफिकेशन।
❹ तो ऐसे नेचरल परिवर्तन होता जाता है। यह दोनों विशेषताएं सदा अटेन्शन में रहें। इसको सामने रखते हुए अपनी रिफाइननेस को चेक कर सकते हो।
❺ रिफाइन चीज़ जास्ती भटकती नहीं, स्पीड पकड़ लेती है। अगर रिफाइन ना होगी, किचड़ा मिक्स होगा तो स्पीड पकड़ नहीं सकेगी, निर्विघ्न चल ना सकेंगे।
❻ एक तरफ जितना-जितना रिफाइन हो रहे हो, दूसरे तरफ उतना ही छोटी-छोटी बातें वा भूलें वा संस्कार जो हैं उनका फाइन भी बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 5 :- अभी नंबर फिक्स होने का समय आ रहा है। इसलिए दोनों बातें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। इस सन्दर्भ में बापदादा के महावाक्य क्या है?
उत्तर 5 :- बापदादा कहते हैं :-
❶ एक तरफ वह नजारा, दूसरे तरफ रिफाइन होने का नजारा, दोनों का फोर्स है।
❷ दोनों साथ-साथ नजारे दिखाई दे रहे हैं। वह भी अति में जा रहा है और यह भी अति प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता जा रहा है।
❸ दोनों बातें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं और दोनों को देखते हुए साक्षी हो हर्षित रहना है।
❹ खेल भी वही अच्छा लगता है जिसमें कोई बात की अति होती है। वही सीन अति आकर्षण वाली होती है।
❺ एक तरफ को देख खुश होते, दूसरे तरफ को देख रहम पड़ता। दोनों का खेल चल रहा है। आज खेल दिखाया कि पर्दे पर क्या चल रहा है।
❻ वतन से तो बहुत स्पष्ट दिखाई देता है। साक्षी हो ऊपर से सभी स्पष्ट दिखाई देता है। आज वतन में वर्तमान खेल की सीन देख रहे थे।
FILL IN THE BLANKS:-
( सीन, साइन्स, प्रख्यात, प्रयत्क्ष, खत्म, स्प्रीचुअल, साइलेन्स, मजा, स्वमान, धारण, स्पिरिट, रिफाइन, नम्बर, तरस, प्रयत्क्ष )
1 तो इन दोनों बातों के बजाए ______ जिससे अभिमान बिल्कुल ______ हो जाए और निर्माण, यह दोनों बातें ______ करनी हैं।
स्वमान / खत्म / धारण
2 फिलोसोफर _____ हो गए हैं लेकिन ______ नहीं बने हैं अर्थात् यह ______ नही आई है।
प्रत्यक्ष / स्प्रीचुअल / स्पिरिट
3 जैसे _______ रिफाइन होती जाती है, ऐसे अपने आप में _______ की शक्ति वा अपनी स्थिति _______ होती जा रही है?
साइन्स / साइलेन्स / रिफाइन
4 गुप्त अब ______ हो रहा है। तो जब दोनों बातें _______ हों उसी अनुसार ही तो ______ बनेंगे।
प्रख्यात / प्रयत्क्ष / नम्बर
5 अभी भी ऐसी कसमकश की ______ चल रही है। देखने में ______ आता है ना। वा _______ आता है?
सीन / मजा / तरस
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 【✔】【✖】
1 :- अनजान बनने का अर्थ है कि जो सुनते हैं उसको स्वरूप तक नहीं लाते हैं। 【✔】
2 :- आजकल फिलासफर कम दिखाई देते हैं, स्प्रीचुअल पावर ज्यादा है। 【✖】
आजकल फिलासफर ज्यादा दिखाई देते हैं, स्प्रीचुअल पावर कम है।
3 :- किसको वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कामन बात है। 【✔】
4 :- भारी होने कारण मेहनत कम करनी होती है। हल्का होने से मेहनत ज्यादा हो जाती है। 【✖】
भारी होने कारण मेहनत ज्यादा करनी होती है। हल्का होने से मेहनत कम हो जाती है।
5 :- माला हाथ से नहीं पिरोनी है। चेहरे से ही स्वयं अपना नंबर ले लेते हैं। 【✖】
माला हाथ से नहीं पिरोनी है। चलन से ही स्वयं अपना नंबर ले लेते हैं।