24-10-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
नज़र
से निहाल
करने की विधि
अपने स्वरूप,
स्वदेश, स्वधर्म,
श्रेष्ठ कर्म,
श्रेष्ठ स्थिति
में रहते हुए चलते
हो? क्योंकि वर्तमान
समय इसी स्व-स्थिति
की स्थिति से ही
सर्व परिस्थितियों
को पार कर सकेंगे
अर्थात् ‘पास विद्
ऑनर’ बन सकेंगे।
सिर्फ एक ‘स्व’
शब्द भी याद रहे
तो स्व-स्वरूप,
स्वधर्म, स्वदेश
आटोमे- टिकली याद
रहेगा। तो क्या
एक स्व शब्द याद
नहीं रह सकता? सभी
आत्माओं को आवश्यकता
है स्व-स्वरूप
और स्वधर्म में
स्थित कराते स्वदेशी
बनाने की। तो जिस
कर्त्तव्य के लिए
निमित्त हो अथवा
जिस कर्त्तव्य
के लिए अवतरित
हुए हो, तो क्या
कोई कर्त्तव्य
को वा अपने आपको
जानते हुए, मानते
हुए भूल सकते हैं
क्या? आज कोई लौकिक
कर्त्तव्य करते
हुए अपने कर्त्तव्य
को भूलते हैं? डॉ.
अपने डॉक्टरी के
कर्त्तव्य को चलते-फिरते,
खाते- पीते, अनेक
कार्य करते हुए
यह भूल जाता है
क्या कि मेरा कर्त्तव्य
डॉक्टरी का है?
तुम ब्राह्मण,
जिन्हों का जन्म
और कर्म यही है
कि सर्व आत्माओं
को स्व-स्वरूप,
स्वधर्म की स्थिति
में स्थित कराना,
तो क्या ब्राह्मणों
को वा ब्रह्माकुमार-कुमारियों
को यह अपना कर्त्तव्य
भूल सकता है? दूसरी
बात - जब कोई वस्तु
सदाकाल साथ, सम्मुख
रहती है वह कभी
भूल सकती है? अति
समीप ते समीप और
सदा साथ रहने वाली
चीज़
कौनसी है? आत्मा
के सदा समीप और
सदा साथ रहने वाली
वस्तु कौनसी है?
शरीर वा देह, यह
सदैव साथ होने
कारण निरन्तर याद
रहती है ना। भुलाते
हुए भी भूलती नहीं
है। ऐसे ही अब आप
श्रेष्ठ आत्माओं
के सदा समीप और
सदा साथ रहने वाला
कौन है? बापदादा
सदा साथ, सदा सम्मुख
है। जबकि देह जो
साथ रहती है वह
कभी भूलती नहीं,
तो बाप इतना समीप
होते हुए भी क्यों
भूलता है? वर्तमान
समय कम्पलेन क्या
करते हो? बाप की
याद भूल जाती है।
बहुत जन्मों से
साथ रही हुई वस्तु
देह वा देह के सम्बन्धी
नहीं भूलते तो
जिससे सर्व
खज़ानों की
प्र्प्ति होती
है और सदा पास है
वह क्यों भूलना
चाहिए? चढ़ाने
वाला
याद आना चाहिए
वा गिराने वाला?
अगर ठोकर लगाने
वाला भूल से भी
याद आयेगा तो उनको
हटा देंगे ना।
तो चढ़ाने वाला
क्यों भूलता है?
जब ब्राह्मण अपने
स्वस्थिति में,
स्व-स्मृति में
वा श्रेष्ठ स्मृति
में स्थित रहें
तो अन्य आत्माओं
को स्थित करा सकेंगे।
आप सभी इस समय
बाप के साथ-साथ
इसी कर्त्तव्य
के लिए निमित्त
हो। हर आत्मा की
बहुत समय से इच्छा
वा आशा कौनसी रहती
है? निर्वाण वा
मुक्तिधाम में
जाने की इच्छा
अनेक आत्माओं को
बहुत समय से रहती
आई है। तो उन सभी
आत्माओं की बहुत
समय की रही हुई
आश पूरी कराने
के कर्त्तव्य के
निमित्त आप ब्राह्मण
हो। जब तक ऐसी स्थिति
नहीं बनायेंगे
तो यह कर्त्तव्य
कैसे करेंगे? अगर
अपनी ही आश मुक्ति
वा जीवनमुक्ति
को प्राप्त करने
की अभी नहीं पूर्ण
करेंगे तो दूसरों
की कैसे करेंगे?
मुक्ति वा जीवनमुक्ति
का वास्तविक अनुभव
क्या होता है, वह
क्या मुक्ति वा
जीवनमुक्ति धाम
में अनुभव करेंगे?
मुक्ति में तो
अनुभव करने से
परे होंगे और जीवनमुक्ति
में जीवन-बन्ध
क्या होता है वह
अविद्या होने कारण
जीवनमुक्ति में
हैं - यह भी क्या
अनुभव करेंगे।
लेकिन जो बाप द्वारा
मुक्ति-जीवनमुक्ति
का वर्सा प्राप्त
होता है, उसका अनुभव
तो अभी ही कर सकते
हैं ना। निर्वाण
अवस्था वा मुक्ति
की स्थिति अभी
जान सकते हो। तो
मुक्ति-जीवनमुक्ति
का अनुभव अभी करना
है। जब स्वयं मुक्ति-जीवनमुक्ति
के अनुभवी होंगे
तब ही अन्य आत्माओं
को मुक्ति अर्थात्
अपने घर और अपने
राज्य अर्थात्
स्वर्ग के गेट
में जाने की पास
दे सकेंगे। जब
तक आप ब्राह्मण
किसी भी आत्मा
को गेट- पास नहीं
देंगे तो वह पास
ही नहीं कर सकेंगे।
तो मुक्ति जीवनमुक्ति
धाम के गेट-पास
लेने वालों की
बड़ी लम्बी क्यू
आप लोगों के पास
लगने वाली है।
अगर गेट-पास देने
में देरी लगाई
तो समय टू लेट हो
जायेगा। इसलिए
अपने को सदा स्व-स्वरूप,
स्वधर्म, स्वदेशी
समझने से, सदा इस
स्थिति में स्थित
रहने से ही एक सेकेण्ड
में किसी आत्मा
को
नज़र
से निहाल
कर सकेंगे। अपने
कल्याण की वृत्ति
से उन्हें स्मृति
दिलाते हर आत्मा
को गेट-पास दे सकेंगे।
बेचारी तड़फती हुई
आत्माएं आप श्रेष्ठ
आत्माओं से सिर्फ
एक सेकेण्ड में
अपने जन्म-जन्म
की आशा पूरी करने
का दान मांगने
आयेंगी।
इतनी सर्व
शक्तियां
जमा की हैं जो मास्टर
सर्वशक्तिवान्
बन एक सेकेण्ड
की विधि से उन आत्माओं
को सिद्धि प्राप्त
कराओ? जब साइंस
रचना की शक्ति
दिन- प्रतिदिन
काल अर्थात् समय
के ऊपर विजय प्राप्त
करती जा रही है,
हर कार्य में बहुत
थोड़े समय की विधि
से कार्य की सिद्धि
को प्राप्त करते
जा रहे हैं। स्विच
ऑन किया और कार्य
सिद्ध हुआ। यह
विधि है ना। तो
क्या मास्टर रचयिता
अपने साइलेन्स
की शक्ति से वा
सर्व शक्तियों
से एक सेकेण्ड
की विधि से कोई
को सिद्धि नहीं
दे सकते हैं? तो
अब इस श्रेष्ठ
सेवा की आवश्यकता
है। ऐसे सेवाधारी
वा खुदाई-खिदमदगार
बनो।
नयनों की ईश्वरीय
खुमारी खिदमत करे।
क्योंकि आत्माएं
अनेक जन्मों से
अनेक प्रकार के
साधन करते-करते
थकी हुई हैं। अभी
सिद्धि चाहते हैं,
न कि साधना। तो
सिद्धि अर्थात्
सद्गति। तो ऐसे
तड़पती हुई, थकी
हुई आत्माओं वा
प्यासी आत्माओं
की प्यास आप श्रेष्ठ
आत्माओं के सिवाय
कौन बुझायेंगे
वा सिद्धि को प्राप्त
करायेंगे? आपके
सिवाय और कोई आत्मा
कर सकेगी? अनेक
बार किया हुआ अपना
श्रेष्ठ कर्त्तव्य
याद आता है? जितना-
जितना श्रेष्ठ
स्थिति बनाते जायेंगे
उतना आत्माओं की
पुकार के आलाप,
आप आत्माओं को
शक्तियों को
आह्वान
करने
के आलाप, तड़पती
हुई आत्माओं के
अनाथ मुखड़े, थकी
हुई आत्माओं की
सूरतें दिखाई देंगी।
जैसे आदि स्थापना
के कार्य में साकार
बाप के अनुभव का
इग्ज़ाम्पल देखा।
आत्माओं की सेवा
के सिवाय रूक सके?
सिवाय सेवा के
कुछ और दिखाई देता
था? ऐसे ही आत्माओं
को सिद्धि प्राप्त
कराने की लगन में
मगन बनो। फिर यह
छोटी- छोटी बातें,
जिसमें अपना समय
और जमा की हुई शक्तियां
गंवाते हो, वह बच
जायेंगी वा जमा
होती जायेंगी।
जब एक सेकेण्ड
में अपनी पावरफुल
वृत्ति से बेहद
के आत्माओं की
सर्विस
कर सकते
हो, तो अपने हद की
छोटी-छोटी बातों
में समय क्यों
गंवाते हो? बेहद
में रहो तो हद की
बातें स्वत: ही
खत्म हो जायेंगी।
आप लोग हद की बातों
में समय व्यर्थ
कर और फिर बेहद
में टिकने चाहते
हो। लेकिन अब वह
समय गया। अभी तो
बेहद की
सर्विस
में सदा
तत्पर रहो तो हद
की बातें आपेही
छूट जायेंगी। जैसे
अन्य आत्माओं को
कहते हो कि अब भक्ति
में समय बरबाद
करना गोया गुड्डियों
के खेल में समय
बरबाद
करना है, क्योंकि
अब भक्तिकाल समाप्त
हो रहा र्है। ऐसे
कहते हो ना। तो
फिर आप इन हद की
बातों रूपी गुड्डीयों
के खेल में समय
क्यों बरबाद करते
हो? यह भी तो गुड्डियों
का ही खेल है ना,
जिससे कोई प्राप्ति
नहीं, वेस्ट ऑफ
टाइम और वेस्ट
ऑफ इनर्जा है।
तो बाप भी कहते
हैं - अभी इस गुड्डियों
के खेल का समय समाप्त
हो रहा है। जैसे
आजकल के समय कोई
नया फैशन निकले
और फैशन के समय
कोई पुराना फैशन
ही करता चले तो
उसको क्या कहेंगे?
तो इन छोटी-छोटी
बातों में समय
गंवाना - यह पहले
का पुराना फैशन
है। अभी वह नहीं
करना है। जैसे
आप लोग भी कोई-कोई
को कहते हो ना कि
अभी के समय प्रमाण
हैंडालिंग दो,
पुरानी हैंडालिंग
नहीं दो। फलाने
की पुरानी हैंडालिंग
है - उनकी नई हैंडालिंग
है, ऐसे कहते हो
ना। तो अपने आपको
हैंडालिंग देना
- यह भी पुरानी हैंडालिंग
नहीं होनी चाहिए।
जैसे दूसरों को
पुरानी हैंडालिंग
देना जंचता नहीं
है तो अपने को फिर
अब तक पुरानी हैंडालिंग
से क्यों चलाते
हो? अभी परिवर्तन-दिवस
मनाओ। प्लैनिंग
बुद्धि वाली
पार्टी
आई है
ना। तो प्लैनिंग
पार्टी
को नया
प्लैन दे रहे हैं।
जैसे वह गवर्मेन्ट
भी कभी कौनसा, कभी
कौनसा विशेष दिन
मनाती है ना। तो
आप
यहाँ आये हो तो
अपने आप को पुरानी
रीति रस्म के चलते
हुए पुरूषार्थ
का परिवर्तन-दिवस
मनाओ। लेकिन हद
का नहीं, बेहद का।
मधुबन यज्ञ भूमि
में आये हो ना।
यज्ञ में अग्नि
होती है। अग्नि
में कोई भी चीज़
पड़ने
से बहुत जल्दी
मोल्ड हो जाती
है। जैसा स्वरूप
बनाना चाहो वैसा
बना सकते हो। तो
यहाँ
यज्ञ में आये हो
तो अपने आप को जैसे
बनाने चाहो बना
सकते हो। सहज ही
बना सकते हो। अच्छा।