09-10-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
पावरफुल वृत्ति
से
सर्विस
में
वृद्धि
आज यह संगठन किस
लक्ष्य
से इकठ्ठा
हुआ है?
संगठन में प्राप्ति
तो होती है, लेकिन
आपस में मिलने
का भी
लक्ष्य
क्या
रखा है? कुछ नया
प्लैन सोचा है?
क्योंकि यह संगठन
है सर्वश्रेष्ठ
आत्माओं का वा
समीप
आत्माओं
का। सभी की
नज़र
समीप
और श्रेष्ठ आत्माओं
के ऊपर है। तो श्रेष्ठ
आत्माओं को ‘‘सर्विस
में वा
अपने संगठन में
श्रेष्ठता और नवीनता
कैसे लायें’’-यह
सोचना है। नवीनता
किसको कहा जाता
है? नवीनता अर्थात्
ऐसा कोई सहज लेकिन
पावरफुल प्लैन
बनाओ जो वह पावरफुल
प्लैन पावर द्वारा
आत्माओं को
आकर्षित
करे।
ऐसा प्लैन बनाओ
जो दूर से ही आत्माओं
को आकर्षण हो।
जैसे परवाने होते
हैं, तो शमा की आकर्षण
परवानों को, चाहे
कितना भी दूर हो,
खैंच लेती है।
वा कोई तेज अग्नि
जगी हुई होती है
तो दूर से ही उसका
सेक अनुभव होता
है। समझते हैं
- यहाँ कोई अग्नि
है। वा कोई बिल्कुल
ठण्डी चीज़
कहीं
भी होती है तो दूर
से ही उसकी शीतलता
का अनुभव और आकर्षण
होता है। इसी रीति
से ऐसा अपना रूप
और
सर्विस
की रूप-रेखा
बनाओ जो दूर से
ही आकर्षण होती
आत्मायें समीप
आती जाएं। जैसे
वायुमण्डल में
कोई चीज़
फैल जाती
है तो सारे वायुमण्डल
में काफी दूर तक
उनका प्रभाव छाया
होता है। इसी रीति
से इतने सब सहज
योगी वा श्रेष्ठ
आत्मायें अपने
वायुमण्डल को ऐसा
रूहानी बनायें
जो आसपास का वायुमण्डल
रूहानियत के कारण
आत्माओं को अपनी
तरफ खैंच ले।
वायुमण्डल को
बनाने के लिए मुख्य
कौनसी युक्ति है?
वायुमण्डल कैसे
बन सकता है? वृत्ति
से वायुमण्डल बनाना
है। जैसे देखो,
कोई के अन्दर किसके
प्रति वृत्ति में
कोई बात आ जाती
है तो आप लोग क्या
कहते हो? वायुमण्डल
में मेरे प्रति
यह बात है। वायुमण्डल
का फाउन्डेशन वृत्ति
है। तो वृत्तियों
को जब तक पावरफुल
नहीं बनाया है
तब तक वायुमण्डल
में
रूहानियत वा
सर्विस
में वृद्धि
जो चाहते हैं वह
नहीं हो सकती।
अगर बीज
पावरफुल
होता तो वृक्ष
भी पावरफुल होता
है। तो बीज है वृत्ति,
उससे ही अपनी वा
सर्विस
की वृद्धि
कर सकते हो। वृद्धि
का आधार वृत्ति
है। और वृत्ति
में क्या भरना
है, जिससे वृत्ति
पावरफुल हो जाए?
तो वह एक ही बात
है कि वृत्ति में
हर आत्मा के प्रति
रहम वा कल्याण
की वृत्ति रहे।
तो ऑटोमेटिकली
आत्माओं के प्रति
यह वृत्ति होने
के कारण उन आत्माओं
को आप लोगों के
रहम वा कल्याण
का वायब्रेशन पहुँचेगा।
जैसे रेड़िओ का
आवाज़
कैसे
आता है? वायुमण्डल
में जो वायब्रेशन
होते हैं उनको
कैच करते हैं।
वायरलेस द्वारा
वायब्रेशन कैच
करते हैं। तो यह
सब साइंस द्वारा
एक-दो के
आवाज़
को कैच
कर सकते हैं वा
सुन सकते हैं।
तो वह है वायरलेस
द्वारा और यह है
रूहानी पावर द्वारा।
यह भी अगर वृत्ति
पावरफुल है, तो
वृत्ति द्वारा
वायब्रेशन जो होगा
वह उस आत्मा को
ऐसे ही स्पष्ट
अनुभव होगा जैसे
रेडियो का स्वीच
खोलने से स्पष्ट
आवाज़
सुनने
में आता है। आजकल
टेलिवीज़न द्वारा
भी एक्ट,
आवाज़
को स्पष्ट
जान सकते हैं।
ऐसे ही अब वृत्तियों
द्वारा बहुत
सर्विस
कर सकते
हो। जैसे टेलिवीज़न वा रेडियो
की स्टेशन एक ही
स्थान पर होते
हुए भी कहाँ-कहाँ
वह पहुंचता है!
ऐसे ही वृत्ति
में इतनी पावर
होनी चाहिए जो
कहाँ भी बैठें,
लेकिन जितनी पावरफुल
स्टेज उतना दूर
तक पहुँच जाता
है। इसी रीति से
जिस आत्मा की वृत्ति
जितनी पावरफुल
है उतना एक स्थान
पर चारों ओर वृत्ति
द्वारा आत्माओं
को आकर्षण करेंगे।
अभी यह
सर्विस
चाहिए।
वाणी और वृत्ति
- दोनों साथ-साथ
चाहिए। होता
क्या है-जब वृत्ति
द्वारा
सर्विस
करते
हो तो वाणी नहीं
चलती और जब वाणी
द्वारा
सर्विस
करते
हो तो वृत्ति की
पावर कम होती।
लेकिन होना क्या
चाहिए? जैसे आजकल
सिनेमा अथवा टी0वी0
में एक्ट भी,
आवाज़
भी - दोनों
साथ-साथ चलता है।
दोनों कार्य साथ-साथ
चलते हैं ना। इसमें
भी प्रैक्टिस हो
तो वृत्ति और वाणी
- दोनों की
इकट्ठी-इकट्ठी सर्विस
हो। ज्यादा
वाणी में आने के
कारण जो वृत्ति
द्वारा वायुमण्डल
को पावरफुल बना
सकते हैं वह नहीं
कर पाते। सिर्फ
वाणी होने के कारण
उसकी पावर इतने
समय तक चलती है
जितना समय सम्मुख
वा समीप हैं। वृत्ति
वाणी से सूक्ष्म
है ना। तो सूक्ष्म
का प्रभाव जास्ती
पड़ेगा। मोटे
रूप का
प्रभाव कम होगा।
तो सूक्ष्म पावर
भी हो और स्थूल
भी हो। दोनों पावर्स
से वृत्ति
हो, ऐसा कुछ अनोखापन
दिखाई दे।
अभी महान् अन्तर
दिखाई नहीं देता
है। एक ही स्टेज
पर दोनों प्रकार
की आत्मायें
इकट्ठी
विराज़मान हों
तो जनता को महान्
अन्तर दिखाई दे।
साक्षी होकर देखो
तो महान् अन्तर
दिखाई देता है?
जैसे कोई बहुत
पावरफुल चीज़
होती
है तो दूसरी
चीज़ों
का
इफेक्ट उसके ऊपर
नहीं होता है।
यहाँ भी अगर स्थूल
स्टेज पर अपनी
सूक्ष्म पावरफुल
स्टेज है; तो दूसरे
भले कितना भी पावरफुल
बोलें लेकिन वायुमण्डल
में उनका प्रभाव
नहीं पड़ सकता।
जैसे
यादगार रूप
में दिखाते हैं
- स्थूल युद्ध का
रूप, एक तरफ तीर
आया और रास्ते
में उसको कट दिया।
तीर निकला और वहाँ
ही खत्म कर दिया।
यह वृत्ति से ही
वायुमण्डल को पावरफुल
बना सकते हो। अभी
कहाँ-कहाँ अपनी
स्टेज की कमी होने
के कारण अपनी स्टेज
पर अन्य आत्माओं
का प्रभाव वायुमण्डल
पर पड़ता है, क्यों?
कारण क्या है? वृत्ति
द्वारा आत्माओं
को रूहानियत का
घेराव नहीं डाल
सकते हो। जैसे
कोई भी आत्मा को
पकड़ना होता है
तो घेराव ऐसा डालते
हैं जो निकल ही
नहीं सकें। वृत्ति
द्वारा रूहानियत
का घेराव वायुमण्डल
में डालने से कोई
भी आत्मा रूहानी
आकर्षण से बाहर
नहीं निकल सकती।
अभी ऐसी
सर्विस
चाहिए।
क्योंकि वह करामात
देखने को हिरे
हुए हैं ना, तो सब
सोचते हैं - कोई
करामात दिखावे।
लेकिन यहाँ करामात
के बजाय कमालियत
दिखानी है। उन्हों
की है ऋद्धि सिद्धि
द्वारा करामात
और आप लोगों का
है वृत्ति द्वारा
कमालियत दिखाना।
अभी कोई कमालियत
दिखाते हैं, उन्हों
को विशेषता का
अनुभव
ज़रूर
होना
चाहिए। होता क्या
है कि आत्माओं
का अल्पकाल का
प्रभाव कहाँ-कहाँ
पड़ जाता है-उन्हों
को नोट करते हो
यह कैसे करते हैं,
यह कैसे बोलते
हैं। इसी कारण
अपनी
अथॉरिटी
का जो
फोर्स होना चाहिए
वह दूसरे तरफ दृष्टि
जाने से कमज़ोर हो जाता
है। क्योंकि यह
भी बड़ा सूक्ष्म
नियम है। जबकि
वायदा है कि वृत्ति
में, सुनने में,
देखने में, सोचने
में एक के सिवाय
और कोई नहीं। आत्माओं
के प्रभाव को बुद्धि
में रखते हुए वा
आत्माओं के प्रभाव
को देखते हुए करना
- यह भी सूक्ष्म
में लिंक टूट जाती
है। जैसे शुरू-शुरू
में मस्त फकीर
रमतायोगी थे। अपनी
नॉलेज की पावर
को प्रत्यक्ष करने
में समर्थ थे।
वह
समर्थी
होने
के कारण
फर्स्ट
रचना भी समर्थ
हुई। और अबकी रचना
फर्स्ट रचना के
माफिक समर्थ है?
चाहे कितने भी
उमंग आते हैं लेकिन
पहली रचना जो समर्थ
थी अब वह नहीं है।
नॉलेज के अनुभवी
तो आप दिन-प्रतिदिन
बन रहे हो लेकिन
पावरफुल स्टेज
जो पहले थी वह है?
वह निर्भयता है?
वह
अथॉरिटी
के बोल
पहले जैसे अभी
हैं?
जैसे कभी-कभी
कोई चीज़
को ज्यादा
रिफाइन करते हैं
- तो रिफाइन भले
हो जाती है, लेकिन
पावरलेस हो जाती
है। आजकल की
चीज़ों
में
रिफाइन होते भी
फोर्स है? तो यह
भी नॉलेज का रूप
रिफाइन हो गया
है, टैक्ट रिफाइन
हो गई है लेकिन
फोर्स कम है। पहली
बातें अगर स्मृति
में लाओ तो वह खुमारी
कितनी थी! नॉलेज
की आकर्षण नहीं
थी लेकिन मस्तक
और नयनों में आकर्षण
थी। नयनों से सब
अनुभव करते थे
कि यह कोई अल्लाह
लोग आए हैं। अभी
मिक्स होने के
कारण मिक्सड दिखाई
देते हैं। बहुत
मिक्स वाली चीज़
जो होती
है वह अल्पकाल
के लिए रसना बहुत
देती है लेकिन
उसमें ताकत नहीं
होती। जैसे चटनी
कितनी चटपटी होती
है लेकिन उसमें
पावर है? सिर्फ
अल्पकाल के लिए
जीभ का रस आकर्षण
करता है। तो यह
भी बहुत मिक्स
करने से अल्पकाल
के लिए सुनने में
बहुत अच्छा लगता
है, परन्तु पावर
नहीं। जैसे ताकत
की चीज़
एनर्जा को
बढ़ाती है और एनर्जा
सदाकाल का साथी
बन जाती है। इसी
रीति से जो
अथॉरिटी
और ओरीजनल्टी
के बोल हैं वह सदाकाल
के लिए शक्ति रूप
बना देता है और
जो रमणीक रूप वा
मिक्स रूप करते
हैं तो वह सिर्फ
अल्पकाल के लिए
रूचि में लाते
हैं। आत्माओं को
रूचि में लाना
है वा शक्ति भरनी
है? क्या करना है?
शक्ति उन्हों को
सदाकाल के लिए
आकर्षित
करती
रहेगी। और रूचि
अभी है, फिर दूसरी
कोई बात सुनी तो
उस तरफ रूचि होने
के कारण वहाँ ही
खत्म हो जायेगी।
तो ऐसा अभी रमतायोगी
बनो। ऐसे अनुभव
होने
चाहिए - जैसे
कोई बड़े-बड़े महात्माएं
होते हैं बहुत
समय गुफाओं में
रहने के बाद सृष्टि
पर आते हैं सेवा
के लिए। ऐसे जब
स्टेज पर आते हो
तो यह अनुभव होना
चाहिए कि
यह आत्माएं
बहुत समय के अन्तर्मुखता,
रूहानियत की गुफा
से निकल कर सेवा
के लिए आई हैं।
तपस्वी रूप दिखाई
दे। बेहद के वैराग
की रेखायें सूरत
से दिखाई
दें। कोई थाडा-सा
वैरागी होता है
तो उनकी झलक सिद्ध
करती है ना कि यह
वैरागी हैं। तो
बेहद की वैराग
वृत्ति दिखाई देनी
चाहिए। स्टेज पर
जब
सर्विस
पर आते
हो तो आपकी सूरत
ऐसे अनुभव होनी
चाहिए जैसे प्रोजेक्टर
की मशीन होती है
- उसमें स्लाइड्स
चेन्ज होती जाती
हैं। कितना अटेन्शन
से देखते हैं! वह
सीन स्पष्ट दिखाई
देती है। वैसे
जब
सर्विस
की स्टेज
पर आते हो - एक-एक
की सूरत प्रोजेक्टर-शो
की मशीन माफिक
दिखाई दे। रहमदिल
का गुण सूरत से
दिखाई देना चाहिए।
बेहद के वैरागी
हो तो बेहद वैराग्य
की रेखायें सूरत
से दिखाई देनी
चाहिए। आलमाइटी
अथॉरिटी
द्वारा
निमित्त बने हुए
हो तो
अथॉरिटी
का रूप
दिखाई देना चाहिए।
जैसे उसमें भी
स्लाइड्स भर लेते
हैं, फिर एक-एक स्पष्ट
दिखाई देता है।
इसी रीति से आत्मा
में जो सर्व गुणों
के वा सर्व शक्तियों
के संस्कार भरे
हुए हैं वह एक-एक
संस्कार सूरत से
स्पष्ट दिखाई दें।
इसको कहा जाता
है
सर्विस। जैसे
साकार रूप का इग्जैम्पल
देखा, सूरत से हर
गुण का प्रत्यक्ष
साक्षात्कार किया।
फालो फादर। कैसी
भी
अथॉरिटी
वाला
आये वा कैसे भी
मूड वाला आये लेकिन
गुणों की पर्सनैलिटी,
रूहानियत की पर्सनैलिटी,
सर्व
शक्तियों
की पर्सनैलिटी
के सामने क्या
करेंगे? झुक जायेंगे।
अपना प्रभाव नहीं
डाल सकेंगे।
यह वृत्ति द्वारा
वायुमण्डल पावरफुल
बनाने के कारण
उन्हों की वृत्ति
वा उन्हों के अन्दर
के वायब्रेशन बदल
जायेंगे। सबके
मुख से वृत्ति
की पावर का वर्णन
होता था ना। तो
वृत्ति और वाणी
की
अथॉरिटी
का प्रत्यक्ष
सबूत देखा, तो फालो
करना चाहिए ना।
अब स्नेह रूप में
तो पास हो गये।
अब किसमें पास
होना है? क्योंकि
अन्तिम स्वरूप
है ही शक्ति का।
कोई भी आत्मा आप
लोगों के पास आती
है तो पहले जगत्-माता
का स्नेह रूप धारण
करते हो, लेकिन
जब वह चलना शुरू
करता है और माया
का सामना करना
पड़ता है, तो सामना
करने में सहयोगी
बनने के लिए शक्ति
रूप भी धारण करना
पड़े।
जहाँ देखेंगे
निमित्त बनी हुई
आत्माएं सिर्फ
स्नेह मूर्त हैं,
तो उन्हों की रचना
में भी समस्याओं
को सामना करने
की शक्ति कम होगी।
यज्ञ वा दैवी परिवार
के स्नेही, सहयोगी
होंगे लेकिन सामना
नहीं कर सकेंगे।
कारण? रचता का प्रभाव
रचना पर पड़ता है।
अभी जो भी आत्माएं
आगे बढ़ते-बढ़ते
अब
जहाँ तक पहुँच
गई हैं, उससे आगे
बढ़ाने के लिए विशेष
आत्माओं को विशेष
क्या करना है? जिन
आत्माओं के निमित्त
बने हो उन आत्माओं
में भी शक्ति
रूप से
शक्ति भरने की
आवश्यकता है। वर्तमान
समय के मैजारिटी
आत्माओं की रिजल्ट
क्या दिखाई देती
है? पीछे हटेंगे
भी नहीं और आगे
बढ़ेंगे
भी नहीं।
अटके हुए भी नहीं
हैं, लटके हुए भी
नहीं हैं लेकिन
शक्ति नहीं है
जो जम्प दे सकें।
एक्स्ट्रा फोर्स
चाहिए। जैसे राकेट
में फोर्स भरकर
इतना ऊपर भेजते
हैं ना, तो अभी आत्माओं
को परवरिश चाहिए।
अपनी यथा शक्ति
से जम्प नहीं दे
सकते। विशेष आत्माओं
को विशेष शक्ति
भरकर के हाई जम्प
दिलाना है। चाहते
हैं, पुरूषार्थ
भी करते हैं लेकिन
अभी फोर्स चाहिए।
वह फोर्स कैसे
देंगे? जब पहले
अपने में इतना
फोर्स हो जो अपने
को तो आगे बढ़ा सको
लेकिन शक्ति का
दान भी कर सको।
जैसे ज्ञान का
दान करते हो वैसे
अभी चाहिए शक्ति
का बल। अभी वरदातापन
का कर्त्तव्य करना
है। ज्ञानदाता
बन बहुत किया, अब
शक्तियों का वरदाता
बनना है। इसलिए
शक्तियों के आगे
सदैव वर मांगते
हैं। सिद्धि कैसे
मिलेगी शक्तियों
द्वारा? अभी कौनसी
सर्विस
करनी
है? वरदानी बनकर
सर्वशक्तियों
का अपनी निमित्त
बनी हुई रचना को
वरदान देना है।
विशेष आत्मायें
जो निमित्त बनी
हुई हों, वो ही ज्यादा
यह
सर्विस
कर सकती
हैं। यह ग्रुप
विशेष आत्माओं
का है ना। जैसे
सुनाया - माइक बनना
बहुत सहज है लेकिन
आप लोगों की
सर्विस, माइक
तो बहुत बन जायेंगे
लेकिन माइट भरने
वाले आप हो। अभी
यह आवश्यकता है।
अभी अपने ही पुरूषार्थ
में रहने का समय
नहीं है, अब अपने
पुरूषार्थ द्वारा
प्रत्यक्ष होकर
प्रभाव निकालने
का समय है और वह
प्रभाव ही आत्माओं
को ऑटोमेटिकली
आकर्षण करेगा।
पाण्डवों का
गायन क्या है? गुप्त
रहने के बाद प्रत्यक्ष
हुए ना। अभी प्रत्यक्ष
होना चाहिए। जैसे
स्थूल स्टेज पर
प्रत्यक्ष होते
जा रहे हो, अब अपनी
सूक्ष्म स्टेज
को प्रत्यक्ष करो।
गर्जना की रचना
करो। अगर कमजोर
रचना करेंगे तो
कमजोर रचना को
सम्भालने में भी
समय लगेगा। पावरफुल
रचना होने से सहयोगी
बनेंगे। अभी ललकार
करनी चाहिए। देवियों
के पूजन में ललकार
का ही पूजन होता
है। यह पावर की
निशानी यादगार
रूप में है - जोर-जोर
से
चिल्लाते हैं।
अपने अन्दर के
फोर्स को इस रीति
प्रसिद्ध करते
हैं। देवियों का
पूजन चुपचाप नहीं
करेंगे, जोर-शोर
से करते हैं। तो
अब शक्तियों को
ललकार और गर्जना
करनी चाहिए-अपने
सिद्धान्तों को
सिद्ध करने में,
तब सिद्धि को प्राप्त
करेंगे। जब रिवाजी
आत्मायें भी निर्भय
होकर अपने सिद्धान्त
को सिद्ध करने
का कितना पुरूषार्थ
करती हैं, तो आप
लोगों को सिद्धान्तों
को सिद्ध करने
का कितना जोश होना
चाहिए! आप वायुमण्डल
के होश में आ जाते
हो। आदि का पार्ट
फिर से अन्त में
गुह्य
और गोपनीय
रूप से रिपीट करना
है। रिवाजी करामात
दिखाने वालों की
देखो - खुमारी कितनी
होती है! अन्दर
में समझते हैं
कि यह अल्पकाल
का है, फिर भी खुमारी
कितनी रखते हैं!
लेकिन जो सत्य
खुमारी है वह कितनी
कमालियत दिखा सकती
है? उसके आगे उन्हों
की खुमारी क्या
है? अभी लास्ट कोर्स
कौनसा रहा है? फोर्स
रूप बनना है। अभी
जगत्-माता बहुत
बने, अब शक्तिरूप
से स्टेज पर आना
है। शक्तियां आसुरी
संस्कारों को एक
धक से खत्म करती
हैं और स्नेही
मां जो होती है
वह धीरे-धीरे प्यार
से पालना करती
है। पहले वह आवश्यकता
थी लेकिन अभी आवश्यकता
है शक्ति रूप बन
आसुरी संस्कारों
को एक धक से खत्म
करना। जैसे वह
बलि चढ़ाते है तो
पहले श्रृंगार
करते हैं, उसमें
समय लगता है। लेकिन
जब बलि चढ़ती है
तो एक सेकेण्ड
में। श्रृंगार
बहुत किया, अब एक
धक से वायुमण्डल
से भी आसुरी संस्कारों
को खत्म करने का
फोर्स होना
चाहिए।
रहमदिल के साथ-साथ
शक्तिरूप का रूहाब
भी होना चाहिए।
सिर्फ रहमदिल भी
नहीं। जितना ही
अति रूहाब उतना
ही अति रहम। शब्दों
में भी रहमदिल
का भाव हो, ऐसी
सर्विस
का अभी
समय है। यह जो गायन
है
नज़र
से निहाल
करने का, वह किसका
गायन है? शक्तियों
के चित्रों में
सदैव नयनों की
शोभा आप देखेंगे।
और कोई इतनी आकर्षण
वाली चीज़
नहीं
होती है। नयनों
द्वारा ही सब भाव
प्रसिद्ध करते
हैं। तो यह
नज़र
से निहाल
करना -
यह
सर्विस
भी शक्तियों
की गाई हुई है।
नयनों की आकर्षण
हो, नयनों में
रूहानियत
हो, नयनों में रूहाब
हो, नयनों में रहमदिली
हो - ऐसा प्लैन बनाना
है।
यहाँ मधुबन से
जो विशेष आत्माएं
निकलें तो आपकी
रचना को अनुभव
हो कि
यह शक्ति-सेना
अपने में शक्ति
को प्रत्यक्ष करने
का प्रभाव भरकर
आई है। प्रभावशाली
चलन, प्रभावशाली
वृत्ति अनुभव करें।
आपके ऊपर सारे
दैवी परिवार की
प्रोग्रेस का आधार
है। सब समझते हैं
- इस प्रोग्राम
के बाद हम आत्माओं
में वा
सर्विस
में प्रोग्रास
होगी। अगर ऐसे
ही साधारण प्रोग्राम
समाप्त किया तो
सभी सोचेंगे। सबकी
नज़रों में है कि
इन विशेष आत्माओं
का संगठन क्या
जलवा दिखाता है!
तो इतना ही अटेन्शन
देना पड़े।
एक तो
सर्विस
में नवीनता,
दूसरा निमित्त
बनी हुई आत्माओं
में नवीनता दिखाई
दे। क्योंकि
सर्विस
का सारा
आधार विशेष आत्माओं
पर है। अभी तो सब
समझते हैं। जैसे
साइंस वाले पावरफुल
इन्वेन्शन निकाल
रहे हैं, वैसे यह
शक्ति ग्रुप भी
पावरफुल साइलेन्स
का श्रेष्ठ शस्त्र
तैयार
कर दिखायेंगे।
आपस में सिर्फ
मिलना नहीं है
लेकिन मिलकर के
कोई पावरफुल शस्त्र
तैयार
करना है। जो अति
पावरफुल चीज़
होती
है वह अन्डरग्राउण्ड
होती है। तो यह
संगठन भी अन्डरग्राउण्ड
है। अन्तर्मुखता
में अन्दर जाकर
सोचने का है। कोई
कमालियत दिखानी
है। कामन संगठन
तो सब करते रहते
हैं, आप लोगों ने
भी कामन बातें
ही कीं तो कमालियत
कौन करेगा? ऐसे
शस्त्र
बनाना।
इसलिए ही शक्तियों
को शस्त्र ज़रूर
दिखाते
हैं। अब संहारी
बनो। अपने संस्कारों
के भी संहारी और
आत्माओं के तमोगुणी
संस्कारों के भी
संहारी। शंकर का
पार्ट प्रैक्टिकल
तो बजना है लेकिन
शक्तियाँ ही संहार
का पार्ट बजाती
हैं, शंकर को नहीं
बजाना है। शक्तियों
को संहारी रूप
धारण करना है, जिससे
संहार करना है।
कर्त्तव्य किया
है, अब यह रूप दिखाओ।
इस रूप को धारण
करने से रिजल्ट
क्या होगी? आपकी
जो रचना है वह अनुभव
करेगी कि दिन- प्रतिदिन
एक्स्ट्रा लिफ्ट
मिलती जा रही है।
यथा शक्ति अपना
फोर्स तो लगाया,
अपनी मेहनत से
अभी नहीं चल सकते,
अभी उन्हों को
चाहिए वरदान की
लिफ्ट। आज दिन
तक जो बातें उन्हों
को मुश्किल पड़ती
हैं, तो आप लोगों
की इस पावरफुल
सर्विस
से उन्हों
के मुख से मुश्किल
शब्द खत्म हो जाए,
सब बात में सहज
का अनुभव करें।
यह जब अपनी रचना
में देखेंगे तब
समझना संहारी रूप
बने हैं। स्पष्ट
रिजल्ट दिखाई दे।
फिर तूफान, तूफान
नहीं तोफा लगेगा।
ऐसा रूप चेन्ज
हो जायेगा तब समझो
कि अपनी
ओरीजनल
स्टेज का साक्षात्कार
करा रहे हैं।
सभी धारणाओं
की बातों में से
मुख्य धारणा की
कौनसी बात सभी
को देते हो? अव्यक्त
बनने
के लिए भी प्वाइंट
कौनसी देते हो?
बाप को याद करने
अथवा रूह-रूहान
करने का भी उमंग
कैसे उठेगा? उसके
लिए मुख्य बात
है सच्चाई और सफाई।
आपस में एक-दो के
भाव को सफाई से
जानना आवश्यक है।
विशेष आत्माओं
के लिए सच्चाई-सफाई
शब्द का अर्थ भी
गुह्य
है। एक-दो
के प्रति दिल में
बिल्कुल सफाई हो।
जैसे कोई बिल्कुल
साफ
चीज़
होती है तो
उनमें सब-कुछ स्पष्ट
दिखाई देता है
ना। वैसे ही एक-दो
की भावना, भाव-स्वभाव
स्पष्ट दिखाई दें।
जहाँ सच्चाई-सफाई
है वहाँ समीपता
होती है। जैसे
बापदादा के समीप
हैं। राज्य सिर्फ
एक से तो नहीं चलता
है ना, आपस में भी
सम्बन्ध में आना
है। वहाँ भी आपस
में समीप सम्बन्ध
में कैसे आयेंगे?
जब यहाँ दिल समीप
होगी। यहाँ के
दिल की समीपता
वहाँ समीपता लायेगी।
एक-दो के स्वभाव,
मन के भाव - दोनों
में समीपता होनी
चाहिए। स्वभाव
की भिन्नता के
कारण ही समीपता
नहीं होती है।
कोई रमणीक होगा
तो समीपता होगी,
कोई आफीशल होगा
तो समीपता नहीं।
लेकिन यहाँ तो
सर्व गुण सम्पन्न,
16 कला सम्पूर्ण
बनना है ना। यह
कला भी कम क्यों?
समझो - आपके ओरीजनल
संस्कार आफीशल
हैं; लेकिन समय,
संगठन रमणीकता
लाता है। तो यह
भी कला होनी चाहिए
जो स्वभाव को मिला
सकें। ऐसे ही 16 कला
सम्पन्न बन सकेंगे।
तो मन के भाव को
भी मिलाना है और
स्वभाव को भी मिलाना
है, तब समीप आयेंगे।
अभी भिन्नता महसूस
होती है। एक-एक
के ओरिजनल स्वभाव
अभी फर्क में दिखाई
देते हैं, यह सम्पूर्णता
की निशानी नहीं
है। सब कलायें
भरनी
चाहिए। फलाने
का स्वभाव सीरियस
है, यह भी समझो कला
कम है। फलाने से
यह बात नहीं कर
सकते - यह भी कला
कम। तो 16 कला सम्पूर्ण
अर्थात् जो सम्पूर्ण
स्टेज है वह सर्व
कलायें स्वभाव
में होनी
चाहिए। उसको
कहते हैं 16 कला सम्पूर्ण।
इस संगठन में स्वभाव
को और भाव को समीप
लाना है। कभी-कभी
कहते हैं ना - यह
मेरा स्वभाव है,
मेरा कोई यह भाव
नहीं है। तो यह
मन की भावनायें
भी एक-दो में मिलनी
चाहिए। जब सम्पूर्णता
एक ही है, तो भाव
और स्वभाव
भी मिलने
चाहिए। जैसे
गायन है - यह एक ही
सांचे में से निकले
हुए एक ही भाषा
बोलते हैं, एक ही
ढंग है-यह प्रसिद्ध
है ना। वैसे अब
यह प्रसिद्ध दिखाई
देना चाहिए।
सर्वश्रेष्ठ
आत्माओं के मन
की भावना और स्वभाव
एक ही सांचे से
निकले हुए हों,
ऐसा दिखाई दे।
सच्चाई-सफाई का
कोई साधारण अर्थ
नहीं उठाना। जितनी
सफाई होगी उतना
हल्कापन भी होगा।
जितना हल्के होंगे
उतना एक-दो के समीप
आयेंगे और दूसरों
को भी हल्का बना
सकेंगे। हल्कापन
होने के कारण चेहरे
से लाइट दिखाई
देगी। तो अभी यह
चेन्ज लाओ। पहले-पहले
आपकी सूरत से साक्षात्कार
अधिक होते थे, लाइट
दिखाई देती थी।
शुरू के
सर्विस
की स्मृति
लाओ, बहुत साक्षात्कार
होते थे, देवी का
रूप अनुभव करते
थे। अभी स्पीकर
लगते हो, नॉलेजफुल
लगते हो लेकिन
पावरफुल नहीं लगते
हो। यह इस संगठन
में भरना है। बिल्कुल
ऐसे दिखाई दे जैसे
अभी सब अनुभव करते
हैं कि यह दो निमित्त
हैं। (दादी-दीदी)
परन्तु यह दो नहीं,
एक दिखाई देती
हैं। सब प्रत्यक्ष
अनुभव करते हैं।
एक- दो के समीप आते-आते
समान होते जाते
हैं। तो जैसे यह
दो एक दिखाई देती
हैं वैसे यह सब
एक दिखाई दें, तब
कहेंगे अब माला
तैयार है। स्नेह
का धागा तैयार
हो गया तो मणके
सहज पिरो जायेंगे।
स्नेह के धागे
से मोती अति समीप
होते हैं, तब ही
माला बनती है।
समीपता ही माला
बनाती है। तो स्नेह
का धागा तैयार
हुआ लेकिन अभी
मणकों को एक-दो
के समीप मन की भावना
और स्वभाव मिलाना
है, तब माला प्रत्यक्ष
दिखाई देगी। यह
ज़रूर
करना
है। ऐसी कमाल कर
दिखाना।
इतना दूर-दूर,
कहाँ-कहाँ से
सर्विस
छोड़कर
आये हो ना। तो उसका
सबूत
ज़रूर
दिखाना।
दूर से चलकर आये
हो, दूरी को मिटाने
के लिए। समझा? सर्वश्रेष्ठ
आत्माओं के साथ
बापदादा भी है
ना। जिन समीप आत्माओं
के साथ बापदादा
है, ऐसे ग्रुप का
सब इन्तजार कर
रहे हैं कि कब इस
संगठन का जलवा
देखेंगे। विशेष
आत्माओं का साधारण
कर्त्तव्य भी विशेष
माना जाता है।
रिवाजी रीति आपस
में बैठेंगे तो
भी लोग उस विशेषता
से देखेंगे। सभी
चाहते हैं - अभी
कोई ऐसा फोर्स
मिले जो नवीनता
का
अनुभव हो।
सबको फोर्स देने
के निमित्त आत्मायें
हो। उन्हों को
अव्यक्ति स्थिति
में ऐसा चढ़ा दो
जो इस धरती की छोटी-छोटी
बातों की आकर्षण
उन्हों को खींच
न सकें। माया-प्रूफ
बनाओ। माया-प्रूफ
बनाने का प्रूफ
दिखाना है। आप
हो प्रूफ! विजयी
रत्न क्या होते
हैं, उनका प्रूफ
हो। तो जो प्रूफ
हैं उन सबको माया-
प्रूफ बनना है।
तो इस संगठन का
छाप क्या रहेगा?
16 कला सम्पूर्ण
बनना है। एक भी
कला कम न हो। जो
ओल्ड गोल्ड हैं,
वह मोल्ड सहज हो
सकते हैं। कला
न होने के कारण
ही मोल्ड नहीं
हो सकते। सम्पूर्ण,
फुल परसेन्टेज़
का गोल्ड
हो। इसलिए सर्व
विशेषतायें भरकर
जाना। अभी भी देखो,
हरेक की अपनी-अपनी
विशेषता होती है।
जब कोई विशेष कार्य
होता है तो उसके
लिए विशेष आत्मा
की याद आती है।
लेकिन अब कोई भी
कार्य हो तो सर्व
विशेष आत्माओं
की स्मृति आये।
तो एक-दो में सहयोग
देना और लेना।
जब बीज-रूप ग्रुप
ऐसे बनेंगे तो
बीज से वृक्ष तो
ऑटोमेटिकली निकलेंगे
ही। यह संगठन बीज-रूप
है ना। सृष्टि
के बीज-रूप नहीं
हो लेकिन अपनी
रचना के तो बीज-रूप
हो ना। तो अगर बीज-रूप
संगठन 16 कला सम्पूर्ण
बन जायेगा तो वृक्ष
भी ऐसे निकलेंगे।
अभी समय नहीं है
जो छोटी-सी कमी
के कारण कम रह जाएं।
अगर कमी रह गई तो
नम्बर में भी कम
रह जायेंगे। छोटी-छोटी
कमियों के कारण
इस संगठन को नम्बर
में कम नहीं आना
है।
तो सच्ची दीपावली
मनाना। पुराने
संस्कार, पुराने
संकल्प, पुरानी
भाव- नायें, पुराने
स्वभाव सब खत्म
कर सम्पूर्णता
का, सर्व विशेषताओं
का खाता शुरू कर
जाना। दीपावली
जब पहले विशेष
आत्मायें मनायेंगी
तब फिर और मनायेंगे।
यह सारी
भट्ठी
ही
टीचर्स की है, हरेक
के फीचर से यह फ्यूचर
दिखाई दे तो क्या
हो जायेगा? फ्यूचर
प्रेजेन्ट हो जायेगा।
अच्छा।