25-08-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
मुख्य
7 कमजोरियां और
उनको मिटाने के
लिए 7 दिन का कोर्स
एक सेकेण्ड में
वाणी से परे स्थिति
में स्थित हो सकते
हो? जैसे और कर्मेन्द्रियों
को जब चाहो जैसे
चाहो वैसे हिला
सकते हो, ऐसे ही
बुद्धि की लगन
को जहाँ चाहो, जब
चाहो वैसे और वहाँ
स्थित कर सकते
हो?
ऐसे पावरफुल
बने हो? यह विधि
वृद्धि को पाती
जा रही है? अगर विधि
यथार्थ
है तो विधि से सिद्धि
अर्थात् सफलता
और श्रेष्ठता अवश्य
ही दिन- प्रति-दिन
वृद्धि को पाते
हुए अनुभव करेंगे।
इस परिणाम से अपने
पुरूषार्थ की
यथार्थ
स्थिति को परख
सकते हो। यह सिद्धि
विधि को परखने
की मुख्य निशानी
है। कोई भी बात
को परखने के लिए
निशानियां होती
हैं। तो इस निशानी
से अपने सम्पूर्ण
बुद्धि की निशानी
को परख सकते हो?
आजकल जो पुरूषार्थ
पुरूषार्थियों
का चल रहा है, उसमें
मुख्य कमजोरियां
कौनसी दिखाई देती
हैं? (1) एक तो स्मृति
में
समर्थी
नहीं
रही है। (2) दृष्टि
में दिव्यता वा
अलौकिकता यथा शक्ति
नम्बरवार आई हुई
है। (3) वृत्ति में
विल पावर न होने
का कारण वृत्ति
एकरस न हो, चंचल
होती है। (4) निराकारी
अवस्था का अटेन्शन
कम होने के कारण
मुख्य विकार देह-अभिमान,
काम और क्रोध - इन
तीनों का वार समय
प्रति समय होता
रहता है। (5) संगठन
में रहते वा संपर्क
में आते वायुमण्डल,
वायब्रेशन अपना
इम्प्रेशन डालता
है। (6) अव्यक्त
फरिश्तेपन
की स्थिति कम होने
कारण अच्छी वा
बुरी बातों की
फीलिंग आने से
फेल हो जाते हैं।
(7) अपनी याद की यात्रा
से सन्तुष्ट कम।
यह है
पुरूषार्थियों
के पुरूषार्थ की
नम्बरवार रिजल्ट।
अब इन सात बातों
को मिटाने के लिए
फिर से 7 दिन का कोर्स
कराना पड़े। इन
सातों बातों को
सामने रख सात दिन
का कोर्स जो औरों
को कराते हो वह
अपने आप को रिवाइज़
कराना।
जैसे मुरलियों
को रिवाइज़
कर रहे
हो, तो रिवाइज़
करने
से नवीनता और शक्ति
बढ़ने का अनुभव
करते हो ऐसे अब
एकान्त
में बैठ अमृतवेले,
जो सात बातें सुनाइंर्,
उन पर एक एक बात
का निवारण हर दिन
के पाठ में कैसे
समाया हुआ है, वह
मनन करके मक्खन
अर्थात् सार निकालना
और आपस में लेन-देन
करना। कोर्स तो
किया है लेकिन
जैसे जिज्ञासुओं
को कोर्स कराने
के बाद हर पाठ की
युक्ति बताते हो
वा अटेन्शन दिलाते
हो, वैसे आप हर एक
रेगुलर गॉडली स्टूडेन्ट
अब फिर से एक सप्ताह
एक पाठ को प्रैक्टिस
और प्रैक्टिकल
में लाओ। जैसे
साप्ताहिक पाठ
करते हैं ना। आप
लोग भी
सर्विस
में ‘पवित्रता
सप्ताह’ वा ‘शान्ति
सप्ताह’ का प्रोग्राम
रखते हो ना। वैसे
ही अपनी प्रोग्रेस
के लिए हर पाठ का
साप्ताहिक पाठ
प्रैक्टिकल और
प्रैक्टिस में
लाओ। तो रिवाइज
होने से क्या होगा?
सफलता समीप, सहज
और स्पष्ट दिखाई
देगी। तो श्रेष्ठ
तो बन ही जायेंगे।
अपने आप को हर संकल्प
वा कर्म में महान्
बनाने के लिए सभी
से सहज युक्ति
की तीन बातें सुनाओ।
मन, वचन, कर्म में
महानता के लिए
ही पूछ रहे हैं।
महान् बनने के
लिए एक तो अपने
को पुरानी दुनिया
में मेहमान समझो।
दूसरी बात - जो भी
संकल्प वा कर्म
करते हो, तो महान्
अन्तर को बुद्धि
में रख संकल्प
और कर्म करो। तीसरी
बात कि बाप के वा
अपने दैवी परिवार
की हर आत्मा के
गुण और श्रेष्ठ
कर्त्तव्य की महिमा
करते रहो। 1. मेहमान,
2. महान् अन्तर और
3. महिमा। यह तीन
बातें चलती रहें
तो जो 7 कमियां हैं
वह समाप्त हो जाएं।
मेहमान न समझने
के कारण कोई भी
रूप वा रंगत में
अट्रेक्शन और अटेन्शन
जाता है। महान्
अन्तर को सामने
रखने से कभी भी
देह-अहंकार वा
क्रोध का अंश वा
वंश नहीं रह सकता।
तीसरी बात - बाप
की वा हर आत्मा
के गुणों की महिमा
वा कर्त्तव्य की
महिमा करते रहने
से किसी द्वारा
किसी बात की फीलिंग
नहीं आ सकती। और
सदैव गुणों और
कर्त्तव्यों की
महिमा करने से
याद की यात्रा,
असन्तुष्टता भी
निरन्तर वा सहज
याद में परिवर्तन
हो जायेगी। इन
तीनों शब्दों को
सदा स्मृति में
रखो तो
समर्थीवान हो
जायेंगे। दृष्टि,
वृत्ति, वायुमण्डल
सभी परिवर्तन हो
जायेंगे।
द्वापर से लेकर
आज तक अपनी और अपने
दैवी परिवार की
आत्माओं की महिमा
करते आये हो, कीर्तन
करते आये हो। अब
फिर
चैतन्य परिचित
हुई
आत्माओं के अवगुणों
को वा कमियों को
क्यों देखते हो
वा बुद्धि में
धारण क्यों करते
हो? अभी भी सारे
विश्व से चुनी
हुई श्रेष्ठ आत्माओं
के गुण-गान करो।
बुद्धि द्वारा
ग्रहण करो और मुख
द्वारा एक-दो के
गुणगान करो। फिर
दृष्टि वा वृत्ति
चंचल होगी? किसकी
भी कमी की फीलिंग
होगी? अभी अनुभव
किया है कि कोई
भी मन्दिर की मूर्ति
कितनी भी अट्रैक्टिव
वा सुन्दर सजी
हुई हो, तो कभी भी
दृष्टि उनकी सुन्दरता
वा सजावट के तरफ
संकल्प मात्र भी
चंचल
नहीं होती है।
और वहाँ ही अगर
कोई सिनेमा वा
कोई ऐसी किताबों
में से कोई अट्रेक्शन
वा सजावट देखते
हैं वा कोई बोर्ड
भी देखते हैं तो
वृत्ति और दृष्टि
चंचल हो जाती है,
क्यों? अट्रेक्शन
तो मूर्तियों में
भी है। सजावट, फीचर्स
और नेचर्स की ब्यूटी
मूर्तियों में
भी है, फिर भी वृत्ति
और दृष्टि चंचल
क्यों नहीं होती?
दोनों ही चित्र
सामने रखो वा एक
ही कमरे में रखो
तो एक सेकेण्ड
में उस तरफ जाने
से वृत्ति चंचल
होती है और उस तरफ
जाने से वृत्ति
पवित्र बन जाती
है। यह पवित्रता
और अपवित्रता का
कारण क्या होता
है? स्मृति। स्मृति
है कि यह देवी है;
तो यह स्मृति दृष्टि
और वृत्ति को पवित्र
बनाती है। और स्मृति
है कि यह फीमेल
है; तो वह स्मृति
वृत्ति और दृष्टि
अपवित्रता की तरफ
खैंचती है। वहाँ
रूप को देखेंगे
और वहाँ रूहानियत
को देखेंगे। ऐसा
पास्ट का अनुभव
तो होगा ना। वर्तमान
भी परसेन्टेज में
है। लेकिन इसको
मिटाने के लिए
कभी भी कहाँ भी
देखते हो, किससे
भी बोलते हो तो
स्मृति में क्या
रखो? आत्मा समझना,
वह तो हुई फर्स्ट
स्टेज। लेकिन कर्म
में आते, सम्पर्क
में आते, सम्बन्ध
में आते यही स्मृति
रखो कि यह सभी जड़
चित्रों की
चैतन्य
देवी वा देवताओं
के रूप हैं। तो
देवी का रूप स्मृति
में आने से जैसे
जड़ चित्रों में
कभी संकल्प मात्र
भी अपवित्रता वा
देह का अट्रेक्शन
नहीं होता है, ऐसे
ही चैतन्य रूप
में भी यह स्मृति
रखने से संकल्प
में भी यह कम्पलेन
नहीं रहेगी और
कम्पलीट हो जायेंगे।
समझा? यह हैं वर्तमान
पुरूषार्थियों
की कम्पलेन के
ऊपर कम्पलीट बनने
की युक्तियां।
अच्छा
भट्ठी
वाले
अपनी उन्नति कर
रहे हैं। स्पीड
भी तीव्र है? ऐसे
नहीं कि समाप्ति
के बाद नीचे उतरते
स्पीड कम हो जाये।
ऐसा ही पुरूषार्थ
कर रहे हो ना। अच्छा।