01-08-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
स्वयं की
स्टेज
को सेट
करने की विधि
आज समाप्ति का
दिन है वा समर्पण
होने का दिन है?
समर्पण अर्थात्
जो भी ईश्वरीय
मर्यादाओं के विपरीत
संस्कार वा स्वभाव
वा कर्म हैं उसको
समर्पण कर देना
है। जैसे कोई मशीनरी
को सेट किया जाता
है, तो एक
बार सेट
करने से फिर ऑटोमेटिकली
चलती रहती है।
इस रीति से
भट्ठी
में
भी अपनी सम्पूर्ण
स्टेज वा बाप के
समान स्टेज वा
कर्मातीत स्थिति
की स्टेज के सेट
को ऐसा सेट किया
है जो कि फिर संकल्प,
शब्द वा कर्म उसी
सेटिंग के प्रमाण
ऑटोमेटिकली चलते
ही रहे? ऐसी
अथॉरिटी
की स्मृति
की स्थिति की सेटिंग
की है? आलमाइटी
अथॉरिटी
बाप है
ना। आप सभी भी मास्टर
आलमाइटी
अथॉरिटी
अपने
को समझते हो? जो
आलमाइटी
अथॉरिटी
की स्टेज
को एक बार सेट कर
देते हैं वह कभी
भी ऐसे सोचेंगे
नहीं वा कहेंगे
नहीं वा करेंगे
नहीं जो कि कमजोरी
के लक्षण होते
हैं। क्योंकि मास्टर
आलमाइटी
अथॉरिटी
हो। जब
विश्व को इतने
थोड़े समय में परिवर्तन
करने की
अथॉरिटी
है, तो
क्या मास्टर आलमाइटी
अथॉरिटी
में अभी-अभी
एक सेकेण्ड में
अपने को परिवार्तित
करने की शक्ति
नहीं? हम मास्टर
आलमाइटी
अथॉरिटी
हैं - इस
स्थिति को सेट
कर दो। आटोमेटिकली
चलने वाली जो चीज़
होती
है उनको बार-बार
सेट नहीं किया
जाता है। एक बार
सेट कर दिया, फिर
आटोमेटिकली
चलती
रहती है। आप लोग
भी अभी सहज और सदा
के कर्मयोगी अर्थात्
निरन्तर निर्विकल्प
समाधि में रहने
वाले सहज योगी
बने हो? कि योगी
बने हो? जो सदा योगी
रहते हैं वह सदाचारी
रहते हैं। सदाचारी
कौन बन सकता है?
जो सदा योगी स्थिति
में स्थित रहते
हैं वही सदाचारी
होते हैं। तो हम
सदाचारी हैं, इसलिए
कभी, कैसे भी डगमग
नहीं हो सकते।
सदैव अचल- अडोल
हो। ऐसे ही अपनी
भट्ठी
में
प्रतिज्ञा रूपी
स्विच को सेट किया
है? अगर प्रतिज्ञा
रूपी स्विच को
सेट कर दिया, तो
प्रैक्टिकल में
प्रतिज्ञा प्रमाण
ही चलेगा ना। तो
सदाचारी वा निरन्तर
योगी व सहज योगी
नहीं हो जायेंगे?
गायन है
ना कि
पाण्डव पहाड़ों
पर जाकर गल गये।
पहाड़ का अर्थ क्या
है? पहाड़ ऊंचा होता
है ना धरती से? तो
पाण्डव धरती अर्थात्
नीचे की स्टेज
को छोड़कर जब ऊंची
स्टेज पर जाते
हैं तो अपने पास्ट
के वा ईश्वरीय
मर्यादाओं के विपरीत
जो संस्कार, स्वभाव,
संकल्प, कर्म वा
शब्द जो भी हैं
उसमें अपने को
मरजीवा बनाया अर्थात्
गल गये। तो आप भी
धरती से ऊंचे चले
गये थे ना। पूरे
गल कर आये हो वा
कुछ रखकर आये हो?
अपने में 100ज्ञ्
निश्चय-बुद्धि
हैं तो उनकी कभी
हार नहीं हो सकती।
एक चाहिए हिम्मत;
दूसरा, फिर हिम्मत
के साथ-साथ उल्लास
भी चाहिए। अगर
हिम्मत और उल्लास
नहीं, तो भी प्रैक्टिकल
में शो नहीं हो
सकता। इसलिए दोनों
साथ- साथ
चाहिए। एक अन्तर्मुखता
और दूसरी बाहर
से शो करने वाली
हर्षितमु- खता,
वह अवस्था है? दोनों
साथ-साथ चाहिए।
इस रीति हिम्मत
के साथ उल्लास
भी
चाहिए, जिससे दूर
से ही मालूम हो
कि इन्हों के पास
कोई विशेष प्राप्ति
है। जो प्राप्ति
वाले होते हैं
उनके हर चलन, नैन-चैन
से वह उमंग-उत्साह
दिखाई देता है।
भक्ति-मार्ग में
सिर्फ उत्साह दिलाने
के लिए उत्सव मनाने
का साधन बनाया
है। खुशी में नाचते
हैं ना। कोई की
भी उदासी या उलझन
आदि होती है, वह
किनारे हो जाती
है ना। तो हिम्मत
के साथ उल्लास
भी जरूर
चाहिए।
और अविनाशी स्टैम्प
लगाई है? अगर अविनाशी
की स्टैम्प न लगाई
तो क्या होगा? दण्ड
पड़ जायेगा। इसलिए
यह स्टैम्प जरूर
लगाना। तो यह सदाकाल
के लिए समर्पण
समारोह है ना? फिर
बार-बार तो यह समारोह
नहीं मनाना पड़ेगा
ना? हाँ, याद की निशानी
का मनाना और बात
है। जैसे बर्थ-
डे-याद निशानी
के लिए मनाते हैं
ना। तो यह समर्पण
प्रतिज्ञा दिवस
है।
विजय का दिन भी
मनाते हैं। तो
यह भी आप सभी की
विजय अष्टमी का
दिन हुआ ना। विजयी
बनने का दिन सदैव
स्मृति में रखना।
लास्ट स्वाहा ऐसे
करो जो सभी के मुख
से आप लोगों को
देख कर ‘वाह-वाह’
निकले और आपको
कॉपी करें। कोई
अच्छी बात होती
है तो न चाहते भी
सभी को कॉपी करने
की इच्छा होती
है। जैसे बाप को
कॉपी करते हैं
वैसे आप लोगों
के हर कर्म को कॉपी
करें। जितना श्रेष्ठ
कर्म होगा उतना
ही श्रेष्ठ आत्माओं
में सिमरण किये
जायेंगे। नाम सिमरण
करते हैं ना। जितना
कोई श्रेष्ठ आत्मा
है, तो न
चाहते भी
उनके गुणों और
कर्म को मिसाल
बनाने लिए नाम
सिमरण करते हैं।
ऐसे ही आप सभी भी
श्रेष्ठ आत्माओं
में सिमरण करने
योग्य बन जायेंगे।
अब तो योगी बनने
का ही ठेका उठाया
है ना। योगयुक्त
अर्थात् युक्तियुक्त।
अगर कोई भी युक्तियुक्त
संकल्प वा शब्द
वा कर्म नहीं होता
है, तो समझना चाहिए
योगयुक्त
नहीं हैं। क्योंकि
योगयुक्त की निशानी
है युक्तियुक्त।
योगयुक्त का कभी
अयुक्त कर्म वा
संकल्प हो ही नहीं
सकता है। यह कनेक्शन
है। अच्छा