06-05-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
बापदादा का
विशेष श्रृंगार
-- ‘नूरे-रत्न’
आज रत्नागर बाप
अपने रत्नों को
देख
हर्षित
हो रहे
हैं। देख रहे हैं
कि हरेक रत्न यथा-शक्ति
पुरूषार्थ कर आगे
बढ़ रहे हैं। हरेक
अपने आपको जानते
हो कि हम कौनसा
रत्न हैं? कितने
प्रकार के रत्न
होते हैं? (8
रत्न
हैं) आप कितने नम्बर
के रत्न हो? हीरे
के संग रह हीरे
समान नहीं बने
हो? रत्न तो सभी
हो लेकिन एक रत्न
है, जिनको कहते
हैं नूर-ए-रत्न।
तो क्या सभी नूर-ए-रत्न
नहीं हो? एक तो नूर-ए-रत्न,
दूसरे हैं गले
की माला के रत्न।
तीसरी स्टेज क्या
है, जानते हो? तीसरे
हैं हाथों के कंगन
के रत्न। सभी से
फर्स्ट नम्बर हैं
नूर-ए-रत्न। वह
कौन बनते हैं? जिनके
नयनों में सिवाय
बाप के और कुछ भी
देखते हुए भी देखने
में नहीं आता है।
वह हैं नूर-ए-रत्न।
और जो अपने मुख
से ज्ञान का वर्णन
करते हैं लेकिन
जैसा पहला नम्बर
सुनाया कि सदैव
नयनों में बाप
की याद, बाप की सूरत
ही सभी को दिखाई
दे-उसमें कुछ कम
हैं, वह गले द्वारा
सर्विस
करते
हैं, इसलिए गले
की माला का रत्न
बनते हैं। और तीसरा
नम्बर जो हाथ के
कंगन का रत्न बनते
हैं उनकी विशेषता
क्या है? किस-न-किस
रूप से मददगार
बनते हैं। तो मददगार
बनने की निशानी
यह बांहों के कंगन
के रत्न बनते हैं।
अब हरेक अपने से
पूछे कि मैं कौनसा
रत्न हूँ? पहला
नम्बर, दूसरा नम्बर
वा तीसरा नम्बर?
रत्न तो सभी हैं
और बापदादा के
श्रृंगार भी तीनों
ही हैं। अब बताओ,
कौनसा रत्न हो?
नूर- ए-रत्नों की
जो परख सुनाई उसमें
‘पास विद् ऑनर’ हो?
उम्मीदवार में
भी नम्बर होते
हैं। तो सदैव यह
स्मृति में रखो
कि हम बापदादा
के नूर-ए-रत्न हैं,
तो हमारे नयनों
में वा नजरों में
और कोई भी चीज समा
नहीं सकती। चलते-
फिरते, खाते-पीते
आपके नयनों में
क्या दिखाई देना
चाहिए? बाप की मूरत
वा सूरत। ऐसी स्थिति
में रहने से कभी
भी कोई कम्पलेन
नहीं करेंगे। जो
भी भिन्न-भिन्न
प्रकार की परेशानियां
परेशान करती हैं
और परेशान होने
के कारण अपनी शान
से परे हो जाते
हो। तो परेशान
का अर्थ क्या हुआ?
अपनी जो
शान है
उससे परे होने
के कारण परेशान
होना पड़ता है।
अगर अपनी शान में
स्थित हो जाओ तो
परेशान हो नहीं
सकते। तो सर्व
परेशानियों को
मिटाने के लिए
सिर्फ शब्द के
अर्थ-स्वरूप में
टिक जाओ। अर्थात्
अपने शान में स्थित
हो जाओ तो शान से
मान सदैव प्राप्त
होता है। इसलिए
शान-मान कहा जाता
है। तो अपनी शान
को जानो। जितना
जो अपनी शान में
स्थित होते हैं
उतना ही उनको मान
मिलता है। अपनी
शान को जानते हो?
कितनी ऊंची शान
है! लौकिक रीति
भी शान वाला कभी
भी ऐसा कर्त्तव्य
नहीं करेगा जो
शान के विरूद्ध
हो। अपनी शान सदैव
याद रखो तो कर्म
भी शानदार होंगे
और परेशान भी नहीं
होंगे। तो यह सहज
युक्ति नहीं है
परेशानी को मिटाने
की? कोई भी बुराई
को समाप्त करने
के लिए बाप की बड़ाई
करो। सिर्फ एक
मात्रा के फर्क
से कितना अन्तर
हो गया है! बुराई
और बड़ाई, सिर्फ
एक मात्रा को पलटाना
है। यह तो 5 वर्ष
का छोटा बच्चा
भी कर सकता है।
सदैव बड़े से बड़े
बाप की बड़ाई करते
रहो, इसमें सारी
पढ़ाई भी आ जाती
है। तो यह बाप की
बड़ाई करने से क्या
होगा? लड़ाई बन्द।
माया से लड़-लड़ कर
थक गये हो ना। जब
बाप की बड़ाई करेंगे
तो लड़ाई से थकेंगे
नहीं, लेकिन बाप
के गुण गाते खुशी
में रहने से लड़ाई
भी एक खेल मिसल
दिखाई पड़ेगी। खेल
में हर्ष होता
है ना। तो जो लड़ाई
को खेल समझते, ऐसी
स्थिति में रहने
वालों की निशानी
क्या होगी? हर्ष।
सदा
हर्षित
रहने
वाले को माया कभी
भी किसी भी रूप
से
आकर्षित
नहीं
कर सकती। तो माया
की आकर्षण से बचने
के लिए एक तो सदैव
अपनी शान में रहो,
दूसरा माया को
खेल समझ सदैव खेल
में
हर्षित
रहो।
सिर्फ दो बातें
याद रहें तो हर
कर्म यादगार बन
जाये। जैसे साकार
में अनुभव किया
- कैसे हर कर्म यादगार
बनाया। ऐसे ही
आप सभी का हर कर्म
यादगार बने, उसके
लिए दो बातें याद
रखो। आधारमूर्त
और उद्धारमूर्त।
यह दोनों बातें
याद रहें तो हर
कर्म यादगार बनेगा।
अगर सदैव अपने
को विश्व-परिवर्तन
के आधारमूर्त समझो
तो हर कर्म ऊंचा
होगा। फिर साथ-साथ
उदारचित अर्थात्
सर्व आत्माओं के
प्रति सदैव कल्याण
की भावना वृत्ति-दृष्टि
में रहने से हर
कर्म श्रेष्ठ होगा।
तो अपना हर कर्म
ऐसे करो जो
यादगार
बनने योग्य हो।
यह फालो करना मुश्किल
है क्या? (म्यूजियम सर्विस
पर
पार्टी
जा रही
है) त्याग का सदैव
भाग्य बनता है।
जो त्याग करता
है उसको भाग्य
स्वत: ही प्राप्त
हो जाता है। इसलिए
यह जो बड़े से बड़ा
त्याग करते हैं
उन्हों का बड़े
से बड़ा भाग्य जमा
हो जाता है। इसलिए
खुशी से जाना
चाहिए
सर्विस
पर। अच्छा।