09-04-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
अव्यक्त
स्थिति
में सर्व गुणों
का अनुभव
आवाज़
से परे
की स्थिति प्रिय
लगती है वा
आवाज़
में रहने
की स्थिति प्रिय
लगती है? कौनसी
स्थिति ज्यादा
प्रिय लगती है?
क्या दोनों ही
स्थिति इकट्ठी
रह सकती हैं? इसका
अनुभव है? यह अनुभव
करते
समय कौनसा
गुण प्रत्यक्ष
रूप में दिखाई
देता है? (न्यारा
और प्यारा) यह अवस्था
ऐसी है जैसे बीज
में सारा वृक्ष
समाया हुआ होता
है, वैसे ही इस अव्यक्त
स्थिति
में जो भी संगमयुग
के विशेष गुणों
की महिमा करते
हो वह सर्व विशेष
गुण उस समय अनुभव
में आते हैं। क्योंकि
मास्टर बीजरूप
भी हैं,
नॉलेजफुल भी
हैं। तो सिर्फ
शान्ति नहीं लेकिन
शान्ति के साथ-साथ
ज्ञान, अतीन्द्रिय
सुख, प्रेम, आनन्द,
शक्ति आदि-आदि
सर्व मुख्य गुणों
का अनुभव होता
है। न सिर्फ अपने
को लेकिन अन्य
आत्मायें भी ऐसी
स्थिति में स्थित
हुई आत्मा के चेहरे
से इन सर्व गुणों
का अनुभव करती
हैं। जैसे साकार
स्वरूप में क्या
अनुभव किया? एक
ही समय सर्व गुण
अनुभव में आते
हैं। क्योंकि एक
गुण में सर्व गुण
समाये हुए होते
हैं। जैसे अज्ञानता
में एक विकार के
साथ सर्व विकारों
का गहरा सम्बन्ध
होता है, वैसे एक
गुण के साथ मुख्य
गुणों का भी गहरा
सम्बन्ध है। अगर
कोई कहे कि मेरी
स्थिति ज्ञान-स्वरूप
है; तो ज्ञान-स्वरूप
के साथ-साथ अन्य
गुण भी उसमें सामये
हुए जरूर हैं।
जिसको एक शब्द
में कौनसी स्टेज
कहेंगे? मास्टर
सर्वशक्तिवान।
ऐसी स्थिति में
सर्व शक्तियों
की धारणा होती
है। तो ऐसी स्थिति
बनाना - यह है समानता,
सम्पूर्णता की
स्थिति। ऐसी स्थिति
में स्थित होकर
सर्विस
करती
हो?
सर्विस
करने
के समय जब स्टेज
पर आती हो तो पहले
इस स्टेज पर उपस्थित
हो फिर स्थूल स्टेज
पर आओ। इससे क्या
अनुभव होगा? संगठन
के बीच होते हुए
भी अलौकिक आत्मायें
दिखाई पड़ेंगी।
अभी साधारण स्वरूप
के साथ-साथ स्थिति
भी साधारण दिखाई
पड़ती है। लेकिन
साधारण रूप में
होते असाधारण स्थिति
वा अलौकिक स्थिति
होने से संगठन
के बीच जैसे अल्लाह
लोग दिखाई
पड़ेंगे। शुरू-शुरू
में भी ऐसी स्थिति
का नशा रहता था
ना। जैसे सितारों
के संगठन में विशेष
सितारे होते हैं,
उनकी चमक, झलक दूर
से ही न्यारी और
प्यारी लगती है।
तो आप सितारे भी
साधारण आत्माओं
के बीच में एक विशेष
आत्माएं दिखाई
दो। जब कोई असाधारण
वस्तु सामने आ
जाती है तो न चाहते
हुए भी सभी का अटेन्शन
उस तरफ खिंच जाता
है। तो ऐसी स्थिति
में स्थित हो स्टेज
पर आओ जो लोगों
की निगाह आप लोगों
की तरफ स्वत: ही
जाये। स्टेज सेक्रेटरी
परिचय न दे लेकिन
आपकी स्टेज स्वयं
ही परिचय दे। क्या
हीरा धूल में छिपा
हुआ भी अपना परिचय
खुद नहीं देता
है? तो संगमयुग
पर हीरे तुल्य
जीवन अपना परिचय
स्वयं ही दे सकता
है। अभी तक की रिजल्ट
क्या है? मालूम
है? अभी किस तुल्य
बने हो? भाषण आदि
जो करते हो उसकी
रिजल्ट क्या दिखाई
देती है? वर्तमान
समय में जो नम्बरवन
प्रजा कहें वह
भी कम निकलते हैं।
साधारण प्रजा ज्यादा
निकल रही है। क्योंकि
साधारण रूप के
साथ स्थिति भी
बहुत समय साधारण
बन जाती है। अभी
साधारण रूप में
असाधारण स्थिति
का अनुभव स्वयं
भी करो और औरों
को भी कराओ। बाहरमुखता
में आने के समय
अन्तर्मुखता की
स्थिति को भी साथ-साथ
रखो - यह नहीं होता।
या तो अन्तर्मुखी
बनते हो या तो बाहरमुखी
बन जाते हो। लेकिन
अन्तर्मुखी बनकर
फिर बाहरमुखी में
आना - इस अभ्यास
के लिए अपने ऊपर
व्यक्तिगत अटेन्शन
रखने की आवश्यकता
है। बाहरमुखता
की आकर्षण अन्तर्मुखता
की स्थिति से ज्यादा
होती है। इसका
कारण यह है कि सदैव
अपने श्रेष्ठ स्वरूप
वा श्रेष्ठ नशे
में स्थित नहीं
रहते। इसलिए स्थिति
पावरफुल नहीं होती
है।
नॉलेजफुल के
साथ पावरफुल भी
बनकर
नॉलेज
दो तो
अनेक आत्माओं को
अनुभवी बना सकेंगे।
अभी सुनाने वाले
बहुत हैं लेकिन
अनुभव कराने वाले
कम हैं। सुनाने
वाले तो अनेक हैं
ही, लेकिन अनुभव
कराने वाले सिर्फ
आप ही हो। तो जिस
समय
सर्विस
करती
हो उस समय यही
लक्ष्य
रखो कि
ज्ञान- दान के साथ
अपने वा बाप के
गुणों का दान भी
करना है। गुणों
का दान सिवाय आप
लोगों के अन्य
कोई कर नहीं सकता।
इसलिये स्वयं सर्व
गुणों के अनुभव-स्वरूप
होंगे तो अन्य
को भी अनुभवी बना
सकेंगे। कमल पुष्प
के
समान बने हो? अपने
जीवन का ही चित्र
दिखाया है ना।
कि और कोई महारथियों
के जीवन का चित्र
है? हमारा चित्र
है - ऐसे ही वहते
हैं ना। चित्र
क्यों बनाया जाता
है? चरित्र का ही
चित्र बनता है।
तो ऐसे चरित्रवान
हो तब तो चित्र
बनाया है ना। यह
एक ही चित्र स्मृति
में रखकर हर कर्म
में आओ तो सदैव
और सर्व बातों
में अलिप्त (न्यारा)
रहेंगे। यह अल्पकाल
के लिए रहते हो।
कितना भी, कैसा
भी वातावरण हो,
कैसा भी वायुमण्डल
हो लेकिन सिर्फ
यह चित्र
भी याद रखो तो वायुमण्डल
से न्यारे रहेंगे।
अभी वायुमण्डल
का प्रभाव कहाँ-कहाँ
पड़ जाता है।
लक्ष्य
बहुत
ऊंचा है कि हम पाँच
तत्वों को भी पावन
करने वाले हैं,
परिवर्तन में लाने
वाले हैं। वह वायुमण्डल
के वश कभी हो सकते
हैं? परिवर्तन
करने वाले हो, न
कि प्रकृति के
आकर्षण में आकर
परिवर्तन में आने
वाले हो। फिर कमल
पुष्प के समान
सदाकाल रह सकेंगे।
आज इस ग्रुप का
कौनसा दिन है? अब
थ्योरी पूरी हुई।
प्रैक्टिकल पेपर
देने
जा रही हो। अब यह
ग्रुप अन्य सभी
ग्रुप से विशेष
क्या कार्य करके
दिखायेगा? कितने
समय में और कितने
वारिस बनाकर लायेंगी?
थोड़े समय में अनेकों
को बनायेंगी। इन्होंने
वायदे तो बहुत
किये हैं। फंक्शन
ही वायदों का करते
हैं। जितने वायदे
करती हो उन सभी
वायदों को निभाने
के लिए सिर्फ एक
ही कायदा याद रखना।
कौनसा? (जीते-जी
मरना) बार-बार जीते-जी
मरना होता है क्या?
बापदादा सदैव हरेक
में सभी प्रकार
की उम्मीदें रखते
हैं। लेकिन उम्मीदों
को पूर्ण करने
वाले नम्बरवार
अपना शो दिखाते
हैं। इसलिए इस
ग्रुप को मुख्य
एक वायदा याद रखना
है। सारे कोर्स
का सार क्या था?
चित्रों में भी
मुख्य चित्र कौनसा
प्रैक्टिकल में
दिखायेंगे जिससे
बापदादा को प्रत्यक्ष
कर सकेंगे? सभी
शिक्षाओं का सार
बताओ। कोई भी कर्म
से देखने, उठने,
बैठने, चलने और
सोने से भी फरिश्तापन
दिखाई दे। सभी
कर्म में अलौकिकता
हो। कोई भी लौकिकता
कर्म में वा संस्कारों
में न हो। ऐसा परिवर्तन
किया है? सर्वोत्तम
पुरुषार्थी
के लक्षण
भी विशेष होते
हैं। उनका सोचना,
करना, बोलना - तीनों
ही समान होते हैं।
वह यह नहीं कहेंगे
कि सोचते तो थे
कि यह न करें लेकिन
कर लिया। नहीं।
सोचना, बोलना, करना-
तीनों ही एक समान
और बाप समान हों।
ऐसे श्रेष्ठ
पुरुषार्थी
बने हो?
अच्छा।
यह ग्रुप जितना
ही बड़ा है उतना
ही शक्तिशाली स्वरूप
बनकर चारों ओर
फैल जायेंगे तो
फिर शक्तियाँ जय-जयकार
की
आवाज़
बुलन्द कर
सकती हैं। संस्कारों
के अधीन भी नहीं
होना है। कोई के
स्नेह के अधीन
भी नहीं होना है।
वायुमण्डल के अधीन
भी नहीं। समझा?
अब ऐसे शब्द मुख
से तो क्या मन में
संकल्प रूप में
भी न आएं कि - क्या
करें, मजबूर हूँ।
चाहे कोई व्यक्ति
ने वा वायुमण्डल
ने मजबूर किया,
लेकिन नहीं। मजबूर
नहीं होना है परन्तु
मजबूत होना है।
समझा? फिर यह कम्पलेन
न आये। अपने पुरूषार्थ
की कम्पलेन
भट्ठी
के
पहले कोई निकाली
थी? वह क्या थी? निर्बलता
के कारण संगदोष
में आना। इस कम्पलेन
को कम्पलीट करके
जा रही हो? कोई भी
ऐसे संग में नहीं
आ सकेंगी। कोई
ईश्वरीय रूप से
माया अपना साथी
बनाने की कोशिश
करे तो? देखना, अपने
वायदों को याद
रखना। नारे जो
गाये हैं -’’एक हैं,
एक के रहेंगे, एक
की ही मत पर चलेंगे’’-
यह सदैव पक्का
रखना। ईश्वरीय
रूप से माया ऐसा
सामने आयेगी जो
उनको परखने की
बहुत आवश्यकता
पड़ेगी। परखने की
शक्ति धारण कर
जा रही हो? सदैव
यह अविनाशी रखना।
अब रिजल्ट देखेंगे।
अल्पकाल की रिजल्ट
नहीं दिखानी है।
सदाकाल और सम्पूर्ण
रिजल्ट दिखानी
है। जो वायदे किये
हैं इस ग्रुप ने,
हिम्मत भी रखी
है परन्तु उन वायदों
से हटाने में माया
मजबूर करे तो फिर
क्या करेंगे? वायदे
तो बहुत अच्छे
किये हैं। लेकिन
समझो कोई मजबूर
कर देते हैं तो
फिर क्या करेंगे?
जो खुद ही मजबूर
हो जायेगा वह फिर
लड़ाई क्या करेगा।
सच किसको कहा
जाता है -- यह मालूम
है? जो बात अगर संकल्प
में भी आती हो, संकल्प
को भी छिपाना नहीं
है - इसको कहा जाता
है सच। अगर पुरूषार्थ
कर सफलता भी लेती
हो तो भी अपनी सफलता
वा हार खाने का
दोनों का समाचार
स्पष्ट सुनाना।
यह है सच। सच वाले
अपने वायदे पूरा
कर सकेंगे। अच्छा!