13-03-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
बन्धनमुक्त
आत्मा की निशानियाँ
जो
भी यहाँ बैठे
हैं वह सभी अपने
को बन्धनमुक्त
आत्मा समझते हैं
अर्थात् सभी बन्धनमुक्त
बने हैं वा अभी
तक कोई-न-कोई बन्धन
है? शक्ति सेना
बन्धन मुक्त बनी
है? जो समझते हैं
कि सर्व बन्धनमुक्त
बने हैं वह
हाथ उठायें।
सर्विस
के कारण
निमित्त मात्र
रहे हुए हैं, वह
दूसरी बात है।
लेकिन अपना बन्धन
खत्म किया है? ऐसे
समझते हैं कि अपने
रूप से बन्धनमुक्त
होकर के सिर्फ
निमित्त मात्र
सर्विस
के कारण
इस शरीर में कर्त्तव्य
अर्थ बैठे हुए
हैं? (मैजारिटी
ने हाथ उठाया) जिन्होंने
भी हाथ उठाया वह
कभी संकल्पमात्र
भी संकल्प वा शरीर
के, परिस्थितियों
के अधीन वा संकल्प
में थोड़े समय के
लिए भी परेशानी
वा उसका थोड़ा भी
लेशमात्र अनुभव
करते हैं वा उससे
भी परे हो गये हैं?
जब बन्धनमुक्त
हैं तो मन के वश
अर्थात् व्यर्थ
संकल्पों के वश
नहीं होंगे। व्यर्थ
संकल्पों पर पूरा
कन्ट्रोल होगा।
परिस्थितियों
के वश भी नहीं होंगे।
परिस्थितियों
का सामना करने
की सम्पूर्ण शक्ति
होगी। जिन्होंने
हाथ उठाया वह ऐसे
हैं? तो इन बन्धनों
में भी अभी बंधे
हुए हैं ना। जो
बन्धनमुक्त होगा
उनकी निशानी क्या
होगी? जो बन्धनमुक्त
होगा वह सदैव योगयुक्त
होगा। बन्धनमुक्त
की निशानी है योगयुक्त।
और, जो योगी होगा,
ऐसे योगी का मुख्य
गुण कौनसा दिखाई
देगा? जान-बूझकर
के बुद्धि का खेल
कराते हैं। तो
ऐसे योगी का मुख्य
गुण वा लक्षण क्या
होगा? जितना योगी
उतना सर्व का सहयोगी
और सर्व के सहयोग
का अधिकारी स्वत:
ही बन जाता है।
योगी अर्थात् सहयोगी।
जो जितना योगी
होगा उतना उसको
सहयोग अवश्य ही
प्राप्त होता है।
अगर सर्व से सहयोग
प्राप्त करना चाहते
हो तो योगी बनो।
योगी
को सहयोग क्यों
प्राप्त होता है?
क्योंकि बीज से
योग लगाते हो।
बीज से कनेक्शन
अथवा स्नेह होने
के कारण स्नेह
का रिटर्न सहयोग
प्राप्त हो जाता
है। तो बीज से योग
लगाने वाला, बीज
को स्नेह का पानी
देने वाला सर्व
आत्माओं
द्वारा सहयोग रूपी
फल प्राप्त कर
लेता है। जैसे
साधारण वृक्ष से
फल की प्राप्ति
के लिए क्या किया
जाता है? वैसे ही
जो योगी है उसको
एक- एक से योग लगाने
की आवश्यकता नहीं
होती, एक-एक से सहयोग
प्राप्त करने की
आशा नहीं रहती।
लेकिन एक बीज से
योग अर्थात् कनेक्शन
होने के कारण सर्व
आत्मायें अर्थात्
पूरे वृक्ष के
साथ कनेक्शन हो
ही जाता है। तो
कनेक्शन का अटेन्शन
रखो। तो सहयोगी
बनने के लिए पहले
अपने आप से पूछो
कि कितना और कैसा
योगी बना हूँ? अगर
सम्पूर्ण योगी
नहीं तो सम्पूर्ण
सहयोगी नहीं बन
सकते, न सहयोग मिल
सकता है। कितनी
भी कोई कोशिश करे
परन्तु बीज से
योग लगाने के सिवाय
कोई पत्ते अर्थात्
किसी आत्मा से
सहयोग प्राप्त
हो जाये-यह हो नहीं
सकता। इसलिए सर्व
के सहयोगी बनने
वा सर्व का सहयोग
लेने के लिए सहज
पुरूषार्थ कौनसा
है? बीज रूप से कनेक्शन
अर्थात् योग। फिर
एक-एक से मेहनत
कर प्राप्त करने
की आशा समाप्त
हो जायेगी, मेहनत
से छूट जायेंगे।
शार्टकट रास्ता
यह है। अगर सर्व
का सहयोगी, सदा
योगयुक्त होंगे
तो
बन्धनमुक्त
भी
ज़रूर
होंगे।
क्योंकि जब सर्व
शक्तियों का सहयोग,
सर्व आत्माओं का
सहयोग प्राप्त
हो जाता है तो ऐसी
शक्तिरूप आत्मा
के लिए कोई बन्धन
काटना मुश्किल
होगा? बन्धन- मुक्त
होने के लिए योगयुक्त
होना है। और योगयुक्त
बनने से स्नेह
और सहयोग युक्त
बन जाते हैं। तो
ऐसे बन्धनमुक्त
बनो। सहज-सहज करते
भी कितना समय लग
गया है।
ऐसी स्थिति अब
ज़रूर
होनी
चाहिए। जो बन्धनमुक्त
की स्थिति सुनाई
कि शरीर में रहते
हुए सिर्फ निमित्त
ईश्वरीय कर्त्तव्य
के लिए आधार लिया
हुआ है। अधीनता
नहीं। निमित्त
आधार लिया है।
जो निमित्त आधार
शरीर को समझेंगे
वह कभी भी अधीन
नहीं बनेंगे। निमित्त
आधारमूर्त ही सर्व
आत्माओं के आधारमूर्त
बन सकते हैं। जो
स्वयं ही अधीन
हैं वह उद्धार
क्या करेंगे। इसलिए
सर्विस
की सफलता
भी इतनी है जितनी
अधीनता से परे
हरेक है। तो सर्व
की सफलता के लिए
सर्व अधीनता से
परे होना बहुत
ज़रूरी
है। इस स्थिति
को बनाने के लिए
ऐसे दो शब्द याद
रखो जिससे सहज
ही ऐसी स्थिति
को पा सको। वह कौनसे
दो शब्द हैं? जब
बन्धनमुक्त हो
जायेंगे तो
जैसे
टेलीफोन में एक-दो
का
आवाज़
कैच कर सकते
हैं, वैसे कोई के
संकल्प में क्या
है, वह भी कैच करेंगे।
अभी अजुन बन रहे
हो, इसलिए सोचना
पड़ता है। दो शब्द
हैं - (1) साक्षी और
(2) साथी। एक तो साथी
को सदैव साथ रखो।
दूसरा - साक्षी
बनकर हर कर्म करो।
तो साथी और साक्षी
- ये दो शब्द प्रैक्टिस
में लाओ तो यह बन्धनमुक्त
की अवस्था बहुत
जल्दी बन सकती
है। सर्वशक्तिमान
का साथ होने से
शक्तियाँ भी सर्व
प्राप्त हो जाती
हैं। और साथ-साथ
साक्षी बनकर चलने
से कोई भी बन्धन
में फंसेंगे नहीं।
तो बन्धनमुक्त
हुए हो ना। इसके
लिए ये दो शब्द
सदैव याद रखना।
वह योग, वह सहयोग।
दोनों बातें आ
गईं। अब ऐसा पुरूषार्थ
कितने समय में
करेंगे? बिल्कुल
बन्धनमुक्त होकर
के साक्षीपन में
निमित्तमात्र
इस शरीर में रहकर
कर्त्तव्य करना
है। अभी इस बारी
यह अपने आपसे संकल्प
करके जाना। क्योंकि
आप (टीचर्स) लोगों
को सहज भी है। टीचर्स
को विशेष सहज क्यों
है? क्योंकि उन्हों
का पूरा जीवन ही
निमित्त है। समझा?
टीचर्स हैं ही
निमित्त बने हुए।
तो उन्हों को यह
संकल्प रखना है
कि इस शरीर में
भी हम निमित्तमात्र
हैं। यह तो सहज
होगा ना। इन (गोपों)
लोगों को तो फिर
डबल
ज़िम्मेवारी
है, इसलिए इन्हों
को युद्ध करनी
पड़ेगी हटाने की।
बाकी जो हैं ही
निमित्त बने हुए,
तो उन्हों के लिए
सहज है। आप (माताओं)
के लिए फिर सहज
क्या है? जैसे उन्हों
को इस विशेष बात
के कारण सहज है
वैसे आप लोगों
को भी एक बात के
कारण सहज है। जो
प्रवृत्ति में
रहते हैं उन्हों
के लिए सहज बात
इसलिए है कि उन्हों
के सामने सदैव
कान्ट्रास्ट है।
कान्ट्रास्ट होने
के कारण निर्णय
करना सहज हो जाता
है। निर्णय करने
की शक्ति कम है,
इसलिए सहज नहीं
भासता है। एक बार
जब अनुभव कर लिया
कि इससे प्राप्ति
क्या है, फिर निर्णय
हो ही जाता है।
ठोकर का अनुभव
एक बार किया तो
फिर बार-बार थोडेही
ठोकर खायेंगे।
निर्णय शक्ति कम
है तो फिर मुश्किल
भी हो जाता है।
तो यह प्रवृत्ति
में अथवा परिवार
में रहते हैं, उनके
अनुभवी होने के
कारण, सामने कान्ट्रास्ट
होने के कारण धोखे
से बच जाते हैं।
जो वरदान के अधिकारी
बन जाते हैं वह
किसके अधीन नहीं
होते। समझा? तो
अब अधीनता समाप्त,
अधिकार शुरू। कब
कोई अधीनता का
संकल्प भी न आये।
ऐसा पक्का निश्यच
है। निश्चय
में कभी
परसेन्टेज नहीं
होती है। शक्तिसेना
ने अपने में क्या
धारणा की? जब स्नेह
और शक्ति समान
होंगे फिर तो सम्पूर्ण
हो ही गये। अपने
शूरवीर रूप का
साक्षात्कार किया
है? शूरवीर कभी
किससे घबराते नहीं।
लेकिन शूरवीर के
सामने आने वाले
घबराते हैं। तो
अभी जो शूरवीरता
का साक्षात्कार
किया, सदैव वही
सामने रखना। और
आज जो दो शब्द सुनाये
वह सदैव याद रखना।
अच्छा।