01-02-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
ताज, तिलक और
तख्त नशीन बनने
की विधि
बा
पदादा सभी
बच्चों को देख
हर्षित
हो रहे
हैं, क्योंकि हरेक
को नम्बरवार ताज
व तख्त-नशीन देख
रहे हैं। आप अपने
को ताज व तख्त नशीन
देख रहे हो? कितने
प्रकार के ताज
हैं और कितने प्रकार
के तख्त हैं? आपको
कितने
ताज हैं? (21 जन्मों
के 21 ताज) अभी कोई
ताज है कि सिर्फ
21 ताज ही दिखाई देते
हैं? अभी का ताज
ही अनेक ताज धारण
कराता है। तो अब
अपने को ताजधारी
देखते हो। कितने
ताज धारण किये
हैं? ( अनगिनत) पाण्डव
सेना को कितने
ताज हैं? (दो) शक्तियों
को अनेक और पाण्डवों
को दो? अगर अभी ताज
धारण नहीं करेंगे
तो भविष्य के ताज
भी कैसे मिलेंगे!
इस समय सभी बच्चों
को ताज व तख्त नशीन
बनाते हैं। तख्तनशीन
अगर हैं तो ताजधारी
भी होंगे। तख्त
कितने प्रकार के
हैं? अभी दिल के
तख्त नशीन और अकाल
तख्तनशीन तो हो
ही। जैसे अकालतख्त
नशीन हो तो प्योरिटी
की लाइट का ताज
भी अभी ही धारण
करते हो और दिल
के तख्त नशीन होने
से, सेवाधारी बनने
से
ज़िम्मेवारी
का ताज़
धारण करते
हो। तो अब हरेक
अपने को देखे कि
दोनों ही तख्त
नशीन और दोनों
ही ताजधारी कितना
समय रहते हैं? ताज
और तख्त मिला तो
सबको है लेकिन
कोई कितना समय
ताज व तख्त नशीन
बनते हैं --
यह हरेक
का अपना पुरूषार्थ
है। कइयों को स्थूल
ताज भी धारण करने
का अनुभव कम होता
है तो बार-बार उतार
देते हैं। लेकिन
यह ताज और तख्त
तो ऐसा सरल-सहज
है जो हर समय ताज
व तख्तधारी बन
सकते हो। जब कोई
तख्तनशीन होता
है तो तख्त पर उपस्थित
होने से राजकारोबारी
उसके आर्डर से
चलते
हैं। अगर तख्त
छोड़ते हैं तो वही
कारोबारी उसके
आर्डर में नहीं
चलेंगे। तो ऐसे
आप जब ताज व तख्त
छोड़ देते हो तो
यह कर्मेन्द्रियां
आपका ही आर्डर
नहीं सुनती हैं।
जब तख्तनशीन होते
हो तो यही कर्मेन्द्रियां
जी-हजूर करती हैं।
इसलिए सदैव यही
ध्यान रखो कि यह
ताज व तख्त कभी
छूटे नहीं। अपना
ताज
व तख्त नशीन का
सम्पूर्ण चित्र
सदैव याद रखो।
उनको याद रखने
से अनेक चित्र
जो बन जाते हैं
वह नहीं बनेंगे।
एक दिन के अन्दर
ही हरेक के भिन्न-भिन्न
रूप बदलने के चित्र
दिखाई देते हैं।
तो अपना एक सम्पूर्ण
चित्र सामने रखो।
ताज व तख्त-नशीन
बनने से निशाना
और नशा स्वत: ही
रहेगा। क्योंकि
ताज व तख्त है ही
नशा और निशाने
की याद दिलाने
वाला। तो अपना
ताज व तख्त कभी
भी नहीं छोड़ना।
जितना-जितना अब
ताज व तख्त धारण
करने के अनुभवी
वा अभ्यासी बनेंगे
उतना ही वहाँ भी
इतना समय ताज व
तख्त धारण करेंगे।
अगर अभी अल्प समय
ताज व तख्त नशीन
बनते हो तो वहाँ
भी बहुत थोड़ा समय
ताज व तख्त प्राप्त
कर सकेंगे। अभी
का अभ्यास हरेक
को अपना भविष्य
साक्षात्कार करा
रहा है। अभी भी
सिर्फ दूसरों को
ताज व तख्तनशीन
देखते हुए खुश
होते रहेंगे तो
वहाँ भी देखते
रहना पड़ेगा। इसलिए
सदाकाल के लिए
ताज व तख्त नशीन
बनो। ऐसा ताज व
तख्त फिर कब मिलेगा?
अभी ही मिलेगा।
कल्प के बाद भी
अभी ही मिलेगा।
अभी नहीं तो कभी
नहीं।
घर बैठे कोई ताज
व तख्त देने आये
तो क्या करेंगे?
बाप भी अभी आत्माओं
के घर में मेहमान
बन आये हैं ना।
घर बैठे ताज व तख्त
की सौगात देने
आये हैं। ताज व
तख्त को छोड़ कहाँ
चले जाते हो, मालूम
है? माया का कोई
निवास-स्थान है?
आप भी सर्वव्यापी
कहते हो वा आप लोगों
के सिवाय और सभी
जगह है? आपने 63 जन्मों
में कितनी बार
माया को ठिकाना
दिया होगा! उसका
परिणाम भी कितनी
बार देखा होगा।
जो बहुत बार के
अनुभवी फिर भी
वह बात करें तो
क्या कहेंगे? जैसे
दिखाते हैं ना
ताज वा तख्त छोड़
जंगल में चले जाते
हैं तो यहाँ भी
कांटों के जंगल
में चले जाते हो।
कहाँ तख्त, कहाँ
काटों का जंगल।
क्या पसन्द है?
जैसे कोई भक्त
वा श्रृंगार करने
वाले नियम प्रमाण
नहा- धोकर अपने
मस्तक पर तिलक
ज़रूर
लगाते
हैं। श्रृंगार
के कारण, भक्ति
के कारण और सुहाग
के कारण भी तिलक
लगाते हैं। तो
ऐसे ही अमृतवेले
तुम अपने को
ज्ञान-स्नान
कराते हो, अपने
को ज्ञान से सजाते
हो। तो अमृतवेले
वैसे यह स्मृति
का तिलक देना चाहिए।
लेकिन अमृतवेले
यह स्मृति का तिलक
देना भूल जाते
हो। अगर कोई तिलक
देते भी हैं तो
फिर मिटा भी लेते
हैं। जैसे कइयों
की आदत होती है
-- बार-बार मस्तक
को हाथ लगाकर तिलक
मिटा देते हैं।
अभी-अभी
तिलक
देंगे, अभी-अभी
मिटा देंगे। ऐसे
ही यह भी बात है।
कोई को तिलक देना
भूल जाता है, कोई
देते हैं फिर मिटा
देते हैं। तो लगाना
और मिटाना -- दोनों
ही काम चलते हैं।
तो अमृतवेले का
यह स्मृति का दिया
हुआ तिलक सदैव
कायम रखते रहो
तो सुहाग, श्रृंगार
और योगीपन की निशानी
सदैव आपके मस्तक
से दिखाई देगी।
जैसे भक्तों का
तिलक देखकर के
समझते हैं - यह भक्त
है। इस प्रकार
आपकी स्मृति का
तिलक इतना स्पष्ट
सभी को दिखाई देगा
जो झट महसूस करेंगे
कि यह ‘योगी तू आत्मा’
है। तो तिलक, ताज
और तख्त सभी कायम
रखो। तिलक को मिटाओ
नहीं। अपने को
मास्टर सर्वशक्तिवान
कहलाते हो, तो मास्टर
सर्वशक्तिवान
को ताज व तख्त धारण
करना भी नहीं आता
है क्या! सदैव सिर्फ
दो बातें कर्म
करते हुए याद रखो।
फिर ऐसी प्रैक्टिस
हो जायेगी जो किसके
मन में आये हुए
संकल्प को ऐसे
कैच करेंगे जैसे
मुख से की हुई बात
सरल रीति से कैच
कर सकते हो। वैसे
मन के संकल्प को
सहज ही कैच करेंगे।
लेकिन यह तब होगा
जब समानता के नज़दीक आयेंगे।
एक-दो के स्वभाव
में भी अगर कोई
की समानता होती
है तो उनके भाव
को सहज समझ सकते
हैं। तो यह भी बाप
की समानता के समीप
जाने से मन के संकल्प
ऐसे कैच कर सकेंगे
जैसे मुख द्वारा
वाणी। इसके लिए
सिर्फ अपने संकल्पों
की मिक्सचर्टा
नहीं होनी चाहिए।
संकल्पों के ऊपर
कन्ट्रोलिंग पावर
होनी
ज़रूरी है।
जैसे बाहर की कारोबार
कंट्रोल करने की
कन्ट्रोलिंग पावर
किसमें कितनी होती
है, किसमें कितनी
होती है। ऐसे ही
यह मन के संकल्पों
की कारोबार को
कन्ट्रोल करने
की कन्ट्रोलिंग
पावर नम्बरवार
है। तो वह दो बातें
कौनसी हैं?
एक तो सदैव यह
स्मृति में रखो
कि मैं हर समय, हर
सेकेण्ड, हर कर्म
करते हुए स्टेज
पर हूँ। हर कर्म
पर अटेन्शन रहने
से सम्पूर्ण स्टेज
के नज़दीक आते जायेंगे।
दूसरी बात -- सदैव
अपने वर्तमान और
भविष्य के स्टेट्स
को स्मृति में
रखो। तो एक स्टेज,
दूसरा स्टेट्स
- यह दोनों बातें
सदैव स्मृति में
रखने से कोई भी
ऐसा कार्य नहीं
होगा जो स्टेट्स
के विरूद्ध हो।
और, साथ-साथ स्टेज
पर अपने को समझने
से सदैव ऊंच कर्त्तव्यों
को करने की प्रेरणा
मिलेगी। यह दो
बातें सदैव स्मृति
में रखते चलो।
अच्छा। आप लोग
दूर से आये हो वा
बापदादा दूर से
आये हैं? रफ्तार
भले तेज है लेकिन
दूरी किसकी है?
आप लोग सफर
कर आये
हो, बापदादा भी
सफर कर आये हैं।
इसलिए दोनों ही
सफर वाले हैं।
सिर्फ आपके सफर
में थकावट है और
इस सफर में अथक
हैं। मधुबन निवासी
बनना - यह भी ड्रामा
के अन्दर बहुत-बहुत
सौभाग्य की निशानी
है। क्योंकि मधुबन
है वरदान भूमि।
तो वरदान भूमि
पर आये हो। वह है
मेहनत की भूमि,
यह है वरदान भूमि।
तो वरदान भूमि
पर आकर वरदाता
से वा वरदाता द्वारा
निमित्त बनी हुई
आत्माओं से िज़तना जो
वरदान लेने चाहें
वह ले सकते हैं।
निमित्त बनी हुई
श्रेष्ठ आत्माओं
से वरदान कैसे
लेंगे? यह हिसाब
जानते हो? मधुबन
में वरदान मिलता
है। वायुमण्डल
में, पवित्र चरित्र-भूमि
में वरदान तो भरा
हुआ है लेकिन निमित्त
बनी हुई श्रेष्ठ
आत्माओं से वरदान
कैसे लेंगे? वरदान
में मेहनत कम होती
है। जैसे मन्दिर
में पण्डे यात्रियों
को वरदान दिलाने
देवियों के सामने
ले जाते हैं। तो
आप भी पण्डे हो।
यात्रियों को वरदान
कैसे दिलायेंगे?
वरदान लेने का
साधन कौनसा है?
श्रेष्ठ आत्माओं
द्वारा वरदान इसलिए
मिलता है - जो निमित्त
बने हुए होने के
कारण उन्हों के
हर कर्म को देखकर
सहज प्रेरणा मिलती
है। कोई भी चीज़
जब साकार
में देखी जाती
है तो जल्दी ग्रहण
कर सकते हैं। बुद्धि
में सोचने की बात
देरी से ग्रहण
होती है। यहाँ
भी साकार रूप में
जिन्होंने साकार
को देखा, उन्हों
को याद करना सहज
है और बिन्दी रूप
को याद करना
ज़रा...। इसी रीति जो
निमित्त बनी हुई
श्रेष्ठ आत्मायें
हैं उन्हों की
सर्विस, त्याग,
स्नेह, सर्व के
सहयोगीपन का प्रैक्टिकल
कर्म देखते हुए
जो प्रेरणा मिलती
है वह वरदान रूप
में सहज प्राप्त
होती है। तो मधुबन
वरदाता की भूमि
में आकर हर एक श्रेष्ठ
आत्माओं द्वारा
सहज कर्मयोगी बनने
का वरदान प्राप्त
करके ही जाना।
क्योंकि आप लोग
भी सिर्फ मुश्किल
बात यही बताते
हो कि कर्म करते
हुए स्मृति में
रहना मुश्किल है।
तो निमित्त बनी
हुई आत्माओं को
कर्म करते हुए
इन गुणों की धारणा
में देखते सहज
कर्मयोगी बनने
की प्रेरणा मिलती
है। तो उन एक भी
वरदान को छोड़कर
नहीं जाना। सर्व
वरदान प्राप्त
करते-करते स्वयं
भी मास्टर
वरदाता
बन जायेंगे। अच्छा।