18-01-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
अव्यक्त
स्थिति
द्वारा सेवा
आज
आवाज़
से परे
जाने का दिन रखा
हुआ है। तो बापदादा
भी
आवाज़
में कैसे
आयें?
आवाज़
से परे
रहने का अभ्यास
बहुत आवश्यक है।
आवाज़
में आकर
जो आत्माओं की
सेवा करते हो, उससे
अधिक
आवाज़
से परे
स्थिति में स्थित
होकर सेवा करने
से सेवा का प्रत्यक्ष
प्रमाण देख सकेंगे।
अपनी अव्यक्ति
स्थिति होने से
अन्य आत्माओं को
भी अव्यक्त
स्थिति
का एक सेकेण्ड
में अनुभव कराया
तो वह प्रत्यक्षफल-स्वरूप
आपके सम्मुख दिखाई
देगा।
आवाज़
से परे
स्थिति में स्थित
हो फिर
आवाज़
में आने
से वह
आवाज़,
आवाज़
नहीं
लगेगा। लेकिन उस
आवाज़
में भी
अव्यक्ति वायब्रेशन
का प्रवाह किसी
को भी बाप की तरफ
आकर्षित
करेगा।
वह
आवाज़
सुनते हुये
उन्हों को आपकी
अव्यक्त
स्थिति
का अनुभव होने
लगेगा। जैसे इस
साकार सृष्टि में
छोटे बच्चों को
लोरी देते हैं,
वह भी
आवाज़
होता
है लेकिन वह
आवाज़,
आवाज़
से परे
ले जाने का साधन
होता है। ऐसे ही
अव्यक्त
स्थिति
में स्थित होकर
आवाज़
में आओ
तो
आवाज़
से परे स्थिति
का अनुभव करा सकते
हो। एक सेकेण्ड
की अव्यक्त
स्थिति
का अनुभव आत्मा
को अविनाशी सम्बन्ध
में जोड़ सकता है।
ऐसा अटूट सम्बन्ध
जुड़ जाता है जो
माया भी उस अनुभवी
आत्मा को हिला
नहीं सकती। सिर्फ
आवाज़
द्वारा
प्रभावित हुई आत्माएं
अनेक
आवाज़
सुनने
से आवागमन में
आ जाती हैं। लेकिन
अव्यक्त
स्थिति
में स्थित हुए
आवाज़
द्वारा
अनुभवी आत्मायें
आवागमन से छूट
जाती हैं। ऐसी
आत्मा के ऊपर किसी
भी रूप का प्रभाव
नहीं पड़ सकता।
सदैव अपने को कम्बाइन्ड
समझ, कम्बाइन्ड
रूप की
सर्विस
करो अर्थात्
अव्यक्त
स्थिति
और फिर
आवाज़।
दोनों की कम्बाइन्ड
रूप की
सर्विस
वारिस
बनायेगी। सिर्फ
आवाज़
द्वारा
सर्विस
करने
से प्रजा बनती
जा रही है। तो अब
सर्विस
में नवीनता
लाओ। (इस प्रकार
की
सर्विस
करने
का साधन कौनसा
है?) जिस समय
सर्विस
करते
हो उस समय मंथन
चलता है, लेकिन
‘याद में मगन’ -- यह
स्टेज मंथन की
स्टेज से कम होती
है। दूसरे के तरफ
ध्यान अधिक रहता
है, अपनी अव्यक्त
स्थिति
की तरफ ध्यान कम
रहता है। इस कारण
ज्ञान के विस्तार
का प्रभाव पड़ता
है लेकिन लगन में
मगन रहने का प्रभाव
कम दिखाई देता
है।
रिजल्ट
में यह
कहते हैं कि ज्ञान
बहुत ऊंचा है।
लेकिन मगन रहना
है -- यह हिम्मत नहीं
रखते। क्योंकि
अव्यक्त
स्थिति
द्वारा लगन का
अर्थात् सम्बन्ध
जोड़ने का अनुभव
नहीं किया है।
बाकी थोड़ा कणा-दाना
लेने से प्रजा
बन जाती है। अब
के सम्बन्ध जुटने
से ही भविष्य सम्बन्ध
में आयेंगे, नहीं
तो प्रजा में।
तो नवीनता यही
लानी है, जो एक सेकेण्ड
में अव्यक्ति अनुभव
द्वारा सम्बन्ध
जोड़ना है। सम्बन्ध
और सम्पर्क -- दोनों
में फर्क है। सम्पर्क
में आते हैं, सम्बन्ध
में नहीं आते।
समझा?
आज के दिन अव्यक्त
स्थिति
का अनुभव किया
है। यही अनुभव
सदाकाल कायम रखते
रहो तो औरों को
भी अनुभव करा सकेंगे।
आजकल वाणी व अन्य
साधन अनेक प्रकार
से अनेकों द्वारा
आत्माओं को प्रभावित
कर रहे हैं। लेकिन
अनुभव सिवाय आप
लोगों के अन्य
कोई नहीं कर सकते
हैं, न करा सकते
हैं। इसलिये आज
के समय में यह अनुभव
कराने की आवश्यकता
है। सभी के अन्दर
अभिलाषा भी है,
थोड़े समय में अनुभव
करने के इच्छुक
हैं। सुनने के
इच्छुक नहीं हैं।
अनुभव में स्थित
रह अनुभव कराओ।
सभी का स्नेह वतन
में मिला। सुनाया
था - तीन प्रकार
की याद और स्नेह
वतन में पहुँची।
वियोगी, योगी और
स्नेही। तीनों
ही रूप का याद-प्यार
बापदादा को मिला।
रिवाइज कोर्स के
वर्ष भी समाप्त
होते जा रहे हैं।
वर्ष समाप्त होने
से स्टूडेंट को
अपनी रिजल्ट निकालनी
होती है। तो इस
वर्ष की
रिजल्ट
में हरेक
को अपनी कौनसी
रिजल्ट
निकालनी
है? इसकी मुख्य
चार बातें ध्यान
में रखनी हैं।
एक -- अपने में सर्व
प्रकार की श्रेष्ठता
कितनी है? दूसरा
-- सम्पूर्णता में
वा सर्व के सम्बन्ध
में समीपता कितनी
आई है? तीसरा-- अपने
में वा दूसरों
के सम्बन्ध में
सन्तुष्टता कहाँ
तक आई है? और चौथा
- अपने में शूरवीरता
कहाँ तक आई है? यह
चार बातें अपने
में चेक करनी हैं।
आज के दिन अपनी
रिजल्ट
को चेक
करने का कर्त्तव्य
पहले करना है।
आज का दिवस सिर्फ
स्मृति-दिवस नहीं
मनाना लेकिन आज
का दिवस
समर्थी
बढ़ाने
का दिवस मनाना।
आज का दिवस स्थिति
वा स्टेज ट्रान्सफर
करने का दिवस समझो।
जैसे आजकल ट्रान्सपेरेंट
चीजें अच्छी लगती
हैं ना। वैसे अपने
को भी ऐसी ट्रान्सपेरेंट
स्थिति में ट्रान्सफर
करना है। आज के
दिन का महत्व समझा?
ऐसे ट्रान्सपेरेंट
हो जाओ जो आपके
शरीर के अन्दर
जो आत्मा विराजमान
है वह स्पष्ट सभी
को दिखाई दे। आपका
आत्मिक स्वरूप
उन्हों को अपने
आत्मिक स्वरूप
का साक्षात्कार
कराये। इसको ही
कहते हैं अव्यक्ति
वा आत्मिक स्थिति
का अनुभव कराना।
आज याद के यात्रा
की रिजल्ट क्या
थी? स्नेह स्वरूप
थी या शक्ति स्वरूप
थी? यह स्नेह भी
शक्ति का वरदान
प्राप्त कराता
है। तो आज स्नेह
का वरदान प्राप्त
करने का दिवस है।
एक होती है पुरूषार्थ
से प्राप्ति दूसरी
होती है वरदान
से प्राप्ति। तो
आज का दिन पुरूषार्थ
से शक्ति प्राप्त
करने का नहीं लेकिन
स्नेह द्वारा शक्ति
का वरदान प्राप्त
करने का दिवस है।
आज के दिन को विशेष
वरदान का दिन समझना।
स्नेह द्वारा कोई
भी वरदाता से वर
प्राप्त हो सकता
है। समझा पुरूषार्थ
द्वारा नहीं लेकिन
स्नेह द्वारा।
किसने कितना वरदान
लिया है वह हरेक
के ऊपर है। लेकिन
स्नेह द्वारा सभी
समीप आकर वरदान
प्राप्त कर सकते
हैं। वरदान के
दिवस को जितना
जो समझ सके उतना
ही पा सकता है।
कैच करने वाले
की कमाल होती है।
आज के वरदान दिवस
पर जो जितना कैच
कर सके उन्होंने
उतना ही वरदान
प्राप्त किया।
जैसे पुरूषार्थ
करते हो एक बाप
के सिवाय और कोई
याद
आकर्षित
न करे
ऐसे आज का दिन सहज
याद का अनुभव किया।
अच्छा।