16-06-69
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
“बड़े-से-बड़ा
त्याग -
अवगुणों का
त्याग”
सभी
किस स्वरूप
में बैठे हो? स्नेह
रूप में बैठे
हो या
शक्तिरूप में
बैठे हो? इस
समय कौन सा
रूप है? स्नेह
में शक्ति
रहती है।
दोनों इकट्ठी
रह सकती है?
क्यों नहीं
कहते हो दोनों
रूप हैं।
बापदादा के
साथ स्नेह
क्यों है? बापदादा
से स्नेह
इसलिए है कि
जो शिवबाबा का
मुख्य टाइटिल
है उसमें आप
समान होना है।
मुख्य टाइटिल
कौन सा है? (सर्वशक्तिवान)
तो सिर्फ
स्नेह जो होता
है तो वह कभी
टूट भी सकता
है लेकिन स्नेह
और शक्ति
दोनों का जहाँ
मिलाप होता है,
वहाँ आत्मा
और परमात्मा
का मिलाप भी
अविनाशी अमर
रहता है। तो
अपने इस मिलन
को अविनाशी
बनाने के लिये
क्या साधन
करना पड़ेगा?
स्नेह और
शक्ति दोनों
का मिलाप अपने
अन्दर करना
पड़ेगा- तब
कहेंगे आत्मा
और परमात्मा
का मिलाप।
मेले में तो
बैठे हो लेकिन
कई मेले में
बैठे हुए भी दोनों
के मिलाप को
भूल जाते हैं।
अच्छा - आज तो
खास
कुमारियों के
प्रति ही आये
हैं। आज
कुमारियों का
कौन सा दिन है?
(मिलन दिन)
रिजल्ट भी आप
सभी की निकली
है? अपने
रिजल्ट को खुद
जान सकती हो?
त्रिकालदर्शी
बनी हो? इस
ग्रुप से
नम्बरवन
कुमारी कौन
निकली है? (चन्द्रिका)
नम्बरवन का
मुख्य
कर्तव्य है -
अपने जैसा
नम्बरवन
बनाना।
कुमारियों को
तो अभी एक और
पेपर देना हैं।
वह पेपर
प्रैक्टिकल
का, न कि
लिखने का। अभी
तो एक माँस की
ट्रेनिंग की
रिजल्ट में नम्बरवन
हैं। लेकिन
फाइनल रिजल्ट
में भी
नम्बरवन आ
सकती हैं।
लेकिन उसके
लिये कौन सी
मुख्य बात
बुद्धि में
रखनी है? त्याग
और सेवा तो है,
एक और मुख्य
बात है। सभी
से बड़ा बलिदान
कौन सा है और
सभी से बड़ा
त्याग कौन सा
है? दूसरों
के अवगुणों को
त्याग करना-
यह है बड़ा त्याग।
सभी से बड़ी
सेवा कौन सी
है? जो
श्रेष्ठ
सेवाधारी
होंगे - वह
मुख्य कौन सी
सेवा करेंगे?
जो तीव्र
पुरुषार्थी
होंगे वह
तीव्र पुरुषार्थ
का सबूत क्या
दिखावेंगे?
कोई भी
सामने आये तो
एक सेकेण्ड
में उनको मरजीवा
बनाना। कहते
हैं ना एक धक
से मरजीवा
बनना। जिसको
झाटकू कहते
हैं। अधूरा
नहीं छोड़ना।
श्रेष्ठ सेवा
यह है जो उनको
झट झाटकू बना
देना। अभी तो
आप तीर मारते
हो, बाहर
फिर जिन्दा हो
जाते हैं।
लेकिन ऐसा समय
आना है जो एक
सेकेण्ड में
नजर से निहाल
कर देंगे तब
सर्विस की
सफलता और
प्रभाव
निकलेगा। अभी
मरजीवा भल
बनाते हो -
झाटकू नहीं
बनाते हो। दो
बातों की कमी
है। वह बातें
आ जाये तो
अपना रगरंग
दूसरों को भी
चढ़ा सकती हो।
आप झाटकू बनी
हो? (पुरुषार्थी
हैं)
कहाँ-कहाँ भूल
होती रहे तो उनको
पुरुषार्थी
कहेंगे? प्रतिज्ञा
यह करनी है - आज
से हम झाटकू
बन गये हैं
फिर जिन्दा
नहीं होंगे,
पुरानी
दुनिया में।
हिम्मतवान को
फिर मदद भी
मिलती है।
हिम्मत के
कारण बापदादा
का स्नेह रहता
है। तो दो
बातों की कमी
बता रहे थे एक
मुख्य कमी है एकान्तवासी
कम रहते हो।
और दूसरी कमी
हैं एकता में
कम रहते हो।
एकता और
एकान्त में
बहुत थोड़ा
फर्क है।
एकान्त स्थूल
भी होती है,
सूक्ष्म भी
होती हैं।
इसमें दोनों
की आवश्यकता
है। एकान्त के
आनन्द के
अनुभवी बन
जाये तो फिर
बाहरमुखता
अच्छी नहीं
लगेगी। अभी
बाहरमुखता
में सभी का
इन्ट्रेन्ट
जास्ती जाता
है। इन दो
बातों की
मैजारिटी में
कमी है।
अव्यक्त
स्थिति को
बढ़ाने के लिए
इसकी बहुत आव-
श्यकता है।
इससे ज्यादा
एकान्त में रुचि
रखनी है।
कुमारियों को
अब जाना है -
प्रैक्टिकल
कोर्स देने।
अब कुमारियों
को तीन सौगात
देनी हैं।
सौगात है
स्नेह की
निशानी। तो
तीनों
सम्बन्ध से
तीन सौगात
देते हैं। जो
कभी भूलना
नहीं है।
बापदादा की
सौगात सदा
अपने साथ रखना।
सौगात छिपाकर
रखनी होती है
ना। तो बाप के
रूप में एक
शिक्षा की
सौगात याद
रखना। क्या
शिक्षा देते
हैं कि सदैव
बापदादा और जो
निमित्त बनी
हुई बहने हैं
और जो भी दैवी
परिवार है उन
सबसे
आज्ञाकारी
वफादार बनकर
के चलना है,
यह है बाप के
रूप में
शिक्षा की
सौगात। और फिर
टीचर के रूप
में कौन सी
शिक्षा की सौगात
देते हैं? शिक्षा
को ग्रहण किया
जाता है ना।
जहाँ भी जाओ
तो टीचर के
रूप में एक तो
ज्ञान ग्रहण,
दूसरा
गुणग्रहाक यह
शिक्षा हमेशा
याद रखना और
गुरू के रूप
से यही शिक्षा
है सदैव एक मत
होना है, एकरस
और एक के ही
याद में रहना।
विष्णु को जो
अलंकार
दिखाये हैं वह
अभी शक्तिरूप
में धारण करने
हैं। यह
अलंकार सदैव
अपने सामने
रखो। यह है
बाप टीचर और
गुरू तीनों
सम्बन्ध से
शिक्षा की
सौगात - खास
कुमारियों
प्रति। अब
देखेंगे
कौन-कौन इस
सौगात को साथ
रखते हैं।
वह लोग
भी रिफाइन
बम्बस बना रहे
हैं ना। तुमको
भी अब रिफाइन
बम्बस गिराने
हैं। चींटी
मार्ग की
सर्विस बहुत
की। बम गिराने
से झट सफाई हो
जाती है। तो
विशेष आवाज
फैलाने की
सर्विस करनी
है, उसको बम
गिराना कहते
हैं। जितना जो
रिफाइन होंगे
उतना रिफाइन
बम फेकेंगे -
औरों पर। अभी
आलराउण्डर
बनना है।
जितना-जितना
बनेंगी
उतना-उतना
नजदीक आयेंगी सतयुगी
परिवार के।
आलराउण्ड
चक्र लगाकर
अपना शो
दिखाना -तब है
ट्रेनिंग की
रिजल्ट।
प्रैक्टिकल
कोर्स के बाद
फिर रिजल्ट
देखेंगे। अभी
फिर एक माँस
के बाद मधुबन
में आओ तो
अकेले नहीं
आना है। अभी
ट्रेनिंग
पूरी नहीं है।
प्रैक्टिकल
अभी है। अकेला
कोई को लौटना
नहीं है। कोई
न कोई का
पण्डा बनकर
आना है, यात्री
ले आना है।
बापदादा की इन
कुमारियों
में बहुत
उम्मीद है।
उम्मीदवार
रत्नों को
बापदादा
नयनों में समाते
हैं।
अच्छा !!!