04-03-69
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
“होली
के शुभ अवसर”
आज
आपकी खास होली
है क्या? होली
कैसे मनाई
जाती है? होली
मनाने आती है?
काम की होली
कौन सी है? वर्तमान
पार्ट अनुसार
होली कैसे
मनायेंगे? वर्तमान
समय कौन सी
होली मनाने की
आवश्यकता है?
होली में कई
बातें करनी
होती है। लग
भी जाता है।
जलाया भी जाता
है और साथ-साथ
श्रृंगारा भी
जाता है। और
कुछ मिटाना भी
होता है। जो
भी बातें होली
में करनी है
वह सभी इस समय
चल रही है।
जलाना क्या है,
मिटाना
क्या है, रंगना
क्या है और
श्रृंगारना
क्या है? यह
सभी कर लेना
इसको कहा जाता
है मनाना। अगर
इन चारों
बातों में से
कुछ कमी है तो
मनाना नहीं
कहेंगे। होली
के दिनों में
बहुत सुन्दर
सजते हैं।
कैसे सजते हैं?
देव- ताओं
के समान। आप
सभी सजे हुए
हैं? सजावट
में कोई कमी
तो नहीं है।
सजावट में
मुख्य होली का
श्रृंगार
कौनसा होता है?
सांग जो
बनाते हैं
उन्हों को
पहले-पहले
मस्तक में
बल्ब लगाते
हैं। यह भी इस
समय की कॉपी
की हुई है। आप
का भी काम का
मुख्य
श्रृंगार है
मस्तक पर आत्मा
का दीपक जलाना।
इसकी निशानी
बल्व जलाते
हैं। लेकिन यह
सभी बातें
होने लिए होली
का अर्थ याद
रखना है। ' 'होली
'' जो कुछ
हुआ वह हो गया।
हो लिया। जो
सीन हुई होली
अर्थात् बीत
चुकी।
वर्तमान समय
जो प्याइन्ट
ध्यान में
रखनी है वह है
यह होली की
अर्थात्
ड्रामा के ढाल
की। जब ऐसे
मजबूत होंगे
तब वह रंग भी
पक्का लग सकेगा।
अगर होली का
अर्थ जीवन में
नहीं लायेंगे
तो रंग कच्चा
हो जाता है। पक्का
रंग खाने के
लिए हर वक्त
सोचो हो ली।
जो बीता हो ही
गया। ऐसी होली
मना रहे हो?
वा कभी-कभी
ड्रामा की सीन
देखकर कुछ
मंथन चलता है।
ज्ञान का मंथन
दूसरी बात है।
लेकिन ड्रामा
की सीन पर
मंथन करना
क्यों, क्या,
कैसे। वह
किस चीज का
मंथन किया
जाता। दही को
जब मंथन किया
जाता है तब
मक्खन निकलता
है। अगर पानी
को मंथन
करेंगे तो
क्या निकलेगा?
कुछ भी नहीं।
रिजल्ट में
यही होगा एक
तो थकावट, दूसरा
टाइम वेस्ट।
इसलिए यह हुआ
पानी का मंथन।
ऐसा मंथन करने
के बजाये
ज्ञान का मंथन
करना है।
साकार रूप में
लास्ट दिनों
में सर्विस की
मुख्य युक्ति
कौन सी सुनाई
थी? ' 'घेराव
डालना' ' डबल
घेराव डालना
है एक तो वाणी
द्वारा
सर्विस का
दूसरा-
अव्यक्त
आकर्षण का। यह
ऐसा घराव
डालना है जो
खुद न उससे
निकल सकें, न दूसरे
निकल सकें।
घेराव डालने
का ढंग अभी तक
प्रैक्टिकल
में दिखाया
नहीं है।
म्युजियम
बनाना तो सहज
है। म्युजियम
बनाना यह कोई
घेराव डालना
नहीं है।
लेकिन अपने
अव्यक्त
आकर्षण से
उन्हों को घायल
करना यह है
घेराव डालना।
वह अभी चल रहा
है। अभी
सर्विस का समय
भी ज्यादा
नहीं मिलेगा।
समस्यायें
ऐसी खड़ी हो
जाएँगी जो
आपके सर्विस में
भी बाधा पड़ने
की सम्भावना
होगी। इसलिए
जो समय मिल
रहा है उसमें
जिसको जितनी
सर्विस करनी
है वह अधिक से
अधिक कर लें।
नहीं तो
सर्विस का समय
भी होली हो
जायेगा। यानी
बीत जायेगा।
इसलिए अब अपने
को आपे ही
ज्यादा में
ज्यादा सर्विस
के बन्धन में
बांधना चाहिए।
इस एक बन्धन
से ही अनेक
बन्धन मिट
जाते हैं।
अपने को खुद
ईश्वरीय सेवा
में लगाना
चाहिए औरों के
कहने से नहीं।
औरों के कहने
से क्या होगा?
आधा फल
मिलेगा।
क्योंकि
जिसने कहा
अथवा प्रेरणा
दी उनकी भाईवारी
हो जाती है।
दुकान में अगर
दो भाईवार
(साझीदार) हो
तो बंटवारा हो
जाता है ना! एक
है तो वह
मालिक हो रहता
है। इसलिए अगर
किसके कहने से
करते हैं तो
उस कार्य में
भाईवारी हो
जाती है। और
स्वयं ही
मालिक बन करके
करते हैं तो
सारी मिलकियत
के अधिकारी बन
जाते हैं।
इसलिए हरेक को
मालिक बनकर
करना है लेकिन
मालिकपने के
साथ-साथ
बालकपन भी
पूरा होना
चाहिए।
कहाँ-कहाँ
मालिक बनकर खड़े
हो जाते हैं,
कहाँ फिर
बालक होकर छोड़
देते हैं। तो
न छोड़ना है न
पकड़ना है।
पकड़ना
अर्थात् जिद
से नहीं पकड़ना
है। कोई चीज
को अगर बहुत
जोर से पकड़ा
जाता है तो उस चीज
का रूप बदल
जाता है ना।
फूल को जोर से
पकड़ों तो क्या
हाल होगा।
पकड़ना तो है
लेकिन कहाँ तक,
कैसे पकड़ना
है, यह भी
समझना है। या
तो पकड़ते अटक
जाते हैं वा
छोड़ते हैं तो
छूट जाते हैं।
दोनों ही समान
रहे यह
पुरुषार्थ
करना है। जो
मालिक और बालक
दोनों रीति से
चलने वाला होगा
उनकी मुख्य
परख यह होगी -
एक तो
निर्माणता होगी
उसके साथ
निरहंकारी,
निर्माण और
साथ-साथ प्रेम
स्वरूप। यह
चारों ही
बातें उनके हर
चलन से देखने
में आएँगी।
अगर चारों में
से कोई भी कम
है तो कुछ
स्टेज की कमी
है। अच्छा-
वतन
में आज होली
कैसे खेली
मालूम है? सिर्फ
बच्चों के साथ
ही थे। आप भी
होली मना रहे
हो ना! वहाँ
सन्देशी आई तो
एक खेल किया।
कौन सा खेल
किया होगा? (आप ले चलो तो
देखे) बुद्धि
का विमान तो
है। बुद्धि का
विमान तो
दिव्य दृष्टि
से भी अच्छा
है। यहाँ तो
वह हो ही नहीं
सकता। वह चीज
ही नहीं। आज
सुहेजों का
दिन था ना! तो
जब सन्देशियॉ
वतन में आई तो
साकार को छिपा
दिया। एक बहुत
सुन्दर फूलों
की पहाड़ी बनाई
थी उनके अन्दर
साकार को
छिपाया हुआ था।
दूर से देखने
में तो पहाड़ी
ही नजर आती थी।
तो जब सदेशी
आई तो साकार
को देखा नहीं।
बहुत ढूढा
देखने में ही
नहीं आया। फिर
अचानक ही जैसे
छिपने का खेल
करते हैं ना! ऐसा
खेल देखा।
फूलों के बीच
साकार बैठा
हुआ नजर आया।
वह सीन बड़ी
अच्छी थी।
अव्यक्त
बापदादा हरेक को
अमृत कर भोग दे
रहे थे और एकएक
से मुलाकात भी
कर रहे थे। खास
म्युजियम वालों
को डायरेक्शन दे
रहे थे अव्यक्ति
आकर्षण से म्युजियम
ऐसा बनाओ जो कोई
भी अन्दर आये, देखे
तो एकदम आकर्षित
हो जाये।
अच्छा !!!