06-02-69
ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
"महिमा
सुनना छोड़ो –
महान बनों"
सभी
याद की यात्रा
में बैठे हो? पढ़ाई
का सार तो समझ
में आ गया। उस
सार को जीवन
में लाकर के
दुनिया को वह
राज सुनाना है।
रचयिता और
रचना की नालेज
को तो समझ गये
हो। सुना तो
बहुत है लेकिन
अब जो सुना है
वह स्वरूप
बनके सभी को
दिखाना है।
कैसे
दिखायेंगे?
आपकी हर चलन
से बाप और
दादा के
चरित्र नजर
आवे। आपकी
आँखों में उस
ही बाप को
देखें। आपकी
वाणी से
उन्हीं की
नालेज को
सुनें। हर चलन
में, हर
चरित्र समाया
हुआ होना
चाहिए। सिर्फ
बाप के चरित्र
नहीं लेकिन
बाप के चरित्र
देख बच्चे भी
चरित्रवान बन जायें।
आपके चित्र
में उसी
अलौकिक चित्र
को देखें। आप
के व्यक्त रूप
में अव्यक्त
मूर्त नजर आवे।
ऐसा
पुरूषार्थ
करके, जो
बापदादा ने
मेहनत की है
उसका फल
स्वरूप दिखाना
है। जैसे
अज्ञान काल
में भी
कोई-कोई
बच्चों में जैसे
कि बाप ही नजर
आता है। उनके
बोल-चाल से
अनुभव होता है
जैसे कि बाप
है। इसी रीति
से जो अनन्य
बच्चे हैं उन
एक एक बच्चे
द्वारा बाप के
गुण
प्रत्यक्ष
होने चाहिए और
होंगे। कैसे
होंगे? उसका
मुख्य
प्रयत्न क्या
है? मुख्य
बात यही है जो
साकार रूप से
भी सुनाया है
कि याद की
यात्रा, अव्यक्त
स्थिति में
स्थित होकर हर
कर्म करना है।
अब तो बच्चों
को बहुत सामना
करना है।
लेकिन समर्थ
साथ है इसलिए
कोई मुश्किल
नहीं है।
सिर्फ एक बात
सभी को ध्यान
में रखनी है
कि सामना करने
के लिए बीच
में रूकावट भी
आयेगी। सामना
करने में
रूकावट कौन सी
आयेगी? मालूम
है? (देह
अभिमान) देह
अभिमान तो एक मूल
बात है लेकिन
सामना करने के
लिए बीच में कामना
विघ्न डालेगी।
कौन सी कामना?
मेरा नाम हो,
मैं ऐसा हूँ,
मेरे से राय
क्यों नहीं ली,
मेरा मूल्य
क्यों नहीं
रखा? यह
अनेक प्रकार
की कामनायें
सामना करने
में विघ्न रूप
में आयेगी। यह
याद रखना है
हमको कोई
कामना नहीं करनी
है। सामना
करना है। अगर
कोई कामना की
तो सामना नहीं
कर सकेंगे, और अव्यक्त
स्थिति में
महान बनने के
लिए एक बात जो
कहते रहते हैं
- वह धारण कर ली
तो बहुत जल्दी
और सहज
अव्यक्त
स्थिति में
स्थित हो
जायेंगे। वह
कौन-सी बात?
हम अभी
मेहमान है।
क्योंकि आप
सभी को भी वाया
सूक्ष्मवतन
होकर घर चलना
है। हम मेहमान
हैं ऐसा समझने
से महान्
स्थिति में
स्थित हो
जायेंगे।
मेहमान के
बजाए जरा भी
एक शब्द में
अन्तर कर लिया
तो गिरावट भी
आ जायेगी। वह
कौन सा शब्द?
मेहमान
समझना है
लेकिन महिमा
में नहीं आना
है। अगर महिमा
में आ गये तो
मेहमान नहीं
बनेंगे।
मेहमान
समझेंगे तो
महान् बनेंगे।
है जरा सा
अन्तर।
मेहमान और
महिमा। लेकिन
जरा सा अन्तर
भी अवस्था को
बहुत नीचे ऊपर
कर देता है।
तुम
सभी को ज्ञान
कौनसा देते हो? त्रिमूर्ति
का। जैसे
त्रिमूर्ति
का ज्ञान औरों
को देते हो वैसे
अपने पास भी
तीन बातों का ज्ञान
रखना है। तीन
बातें छोड़ो और
तीन बातें
धारण करो। अब
यह तीन बातें
छोड़ेंगे तब ही
स्वरूप में स्थित
होंगे।
सर्विस में
सफलता भी होगी।
बताओ कौन सी
तीन बातें
छोड़नी है? जो
सर्विस में
विघ्न डालती
है, वह
छोड़नी है। एक
तो-कभी भी कोई
बहाना नहीं
देना। दूसरा
कभी भी किससे
सर्विस के लिए
कहलाना नहीं।
तीसरा -
सर्विस करते
कभी मुरझाना
नहीं। बहाना,
कहलाना और
मुरझाना यह
तीन बातें
छोड़नी है। और
फिर कौनसी तीन
बातें धारण
करनी हैं? त्याग,
तपस्वा और
सेवा। यह तीन
बातें धारणा
में चाहिए।
तपस्वा
अर्थात् याद
की यात्रा और
सर्विस के बिना
भी जीवन नहीं
बन सकती। इन
दोनों बातों
की सफलता
त्याग के बिना
नहीं हो सकती।
इसलिए तीन
बातें छोड़नी
है और तीन
बातें धारण करनी
है। अगर इन
तीनों बातों
की धारणा हुई
तो क्या बन जायेंगे?
जो आपका
गायन है ना
वही स्वरूप बन
जायेंगे।
यहाँ आबू में
भी आपका गायन
है किस रूप
में और कौन सा
रूप यादगार का
है? तपस्या
के साथ-साथ और
भी कोई मुख्य
रूप का यादगार
है? जिन्होंने
देलवाड़ा
मन्दिर ध्यान
से देखा होगा
उन्हें याद
होगा। जैसे
तपस्वी हैं,
तो
त्रिनेत्री
भी हैं।
तपस्वा के
साथ-साथ याद
त्रिमूर्ति
की है। तो
जैसा यादगार
है
त्रिनेत्री
का, ऐसा
बनना है।
तीसरा नेत्र
कौन सा है? ज्ञान
का। ज्ञान का
तीसरा नेत्र
ही यादगार के
रूप में दिखाया
है। तपस्वी और
त्रिनेत्री।
तीसरा नेत्र
कायम होगा तब
ही तपस्वी बन
सकेंगे। अगर
ज्ञान का
नेत्र गायब हो
जाता है तो
तपस्या भी
नहीं रह सकती।
इसलिए अब
त्रिमूर्ति
शब्द को भी
याद करके
धारणा में
चलेंगे तो वह
बन जायेंगे।
जो शक्तियों
का गायन है,
जो प्रभाव
है वह देखने
में आयेगा।
अभी गुप्त है।
अभी तक
शक्तियाँ
गुप्त क्यों
हैं? क्योंकि
अभी तक अपने
स्वमान, अपनी
सर्विस और
अपनी
श्रेष्ठतायें
अपने से ही
गुप्त हैं।
अपने से ही
गुप्त होने
कारण सृष्टि
से भी गुप्त
हैं। जब अपने
में
प्रत्यक्षता
आयेगी तब
सृष्टि में भी
प्रत्यक्षता
होगी।
अभी
शिवरात्रि का
जो पर्व आ रहा
है उनको और भी धूमधाम
से मनाना है।
बड़े उमंग और
हुल्लास से
परिचय देना है।
क्योंकि बाप
के परिचय में
बच्चों का
परिचय भी आ
जाता हे। बच्चे
बाप का परिचय
देंगे तो बाप
फिर अव्यक्त में
बच्चों का
परिचय, बच्चों
का
साक्षात्कार
आत्माओं को
कराते रहेंगे।
तो इस
शिवरात्रि पर
कुछ नवीनता
करके दिखाना है।
क्या नवीनता
करेंगे? अब
तक जो भाषण
किये हैं वह
यथा योग
यथाशक्ति तो
करते रहते हो
लेकिन अब खास
शक्ति रूप से
भाषण करने हैं।
शक्ति रूप का
भाषण क्या
होता है? ललकार
करना। क्या
ललकार करेंगे?
और ही
जोर-शोर से
समय की पहचान
दो। और उन्हों
को बार-बार
सुनाओ कि यह
बाप का कर्तव्य
अब जास्ती समय
नहीं है। कुछ
तो हाथ से
गंवा दिया
लेकिन जो कुछ
थोड़ा समय रहा
है, उनको
भी गंवा न दो।
ऐसे फोर्स से
समय की पहचान
दो। जैसे आजकल
साइंस वाले
ऐसे-ऐसे
बाम्बस बना
रहे हैं जो
अपने स्थान पर
बैठे हुए भी
जहाँ बम लगाना
होगा वहाँ का
निशाना दूर
बैठे भी कर
सकते हैं। तो
साइंस की
शक्ति से तो
श्रेष्ठ
साइलेन्स है।
जैसे वह साइंस
के गोले बनाते
हैं - वैसे अब
शक्तियों को
साइलेन्स की
शक्ति से गोले
फेंकने हैं।
शुरू-शुरू में
शक्तियों की
ललकार ही चलती
थी। अभी शुरू
जैसे ललकार
नहीं है। अभी
विस्तार में
पड़ गये हैं।
विस्तार में
पड़ने से ललकार
का रूप गुप्त
हो गया है।
अभी फिर से
बीजरूप
अवस्था में
स्थित होकर
ललकार करो। उस
ललकार से
कईयों में बीज
पड़ सकता है।
लेकिन बीजरूप
स्थिति में
स्थिति
रहेंगे तो अनेक
आत्माओं में
समय की पहचान
और बाप की
पहचान का बीज
पड़ेगा। अगर
बीजरूप
स्थिति में
स्थित न रहे
सिर्फ विस्तार
में चले गये
तो क्या होगा?
ज्यादा
विस्तार से भी
वैल्यु नहीं
रहेगी। व्यर्थ
हो जायेगा।
इसलिए बीजरूप
स्थिति में
स्थित हो
बीजरूप की याद
में स्थित हो
फिर बीज डालो।
फिर देखना यह
बीज का फल
कितना अच्छा
और सहज निकलता
है। अभी तक
मेहनत जास्ती
की है
प्रत्यक्षफल
कम है। अभी
मेहनत कम करो
प्रत्यक्षफल
ज्यादा दिखाओ।
स्नेह तो सभी
का है ही
लेकिन स्नेह
का स्वरूप भी
कुछ दिखाना है।
यूँ तो सदैव
इस स्थिति में
रहना चाहिए
लेकिन खास
शिवरात्रि तक
हरेक बच्चे को
ऐसा समझना चाहिए
जैसे शुरू में
आप बच्चों की
भट्टी के प्रोग्राम
चलते थे, इसी
रीति से हरेक
को समझना
चाहिए
शिवरात्रि तक
हमको याद की
यात्रा की
भट्टी में ही
रहना है।
बिल्कुल
अव्यक्त
स्थिति में
स्थित रहने का,
अपनी
चेकिंग करने
का ध्यान रखो।
फिर इस
अव्यक्त
स्थिति का
कितना प्रभाव
निकलता है।
मुश्किल नहीं
है। बहुत सहज
है। कारोबार
में आते हुए
भी भट्टी चल
सकती है। यह
तो आन्तरिक
स्थिति है।
आन्तरिक
स्थिति का
प्रभाव जास्ती
पड़ता है।
सभी
अमृतवेले
मुलाकात करते
हो? अभी तक
ऐसा
वायुमण्डल
नहीं पहुँचा
है। अब तक
मधुबन वालों
ने भी स्नेह
का सबूत नहीं
दिया है।
चारों ओर से
बहुत कम बच्चे
हैं
जिन्होंने
स्नेह का सबूत
दिया है। बाप
का बच्चों से
कितना स्नेह
था। स्नेह का
सबूत
प्रैक्टिकल में
कितना समय
दिया। क्या
दिया था? याद
है? खास
अपनी तबियत को
भी न देखकर
क्या सबूत
दिया था? अपनी
शारीरिक
स्थिति को न
देखते भी
कितना समय खास
सर्च लाईट
देते थे।
कितना समय
स्नेह का सबूत
दिया। आप कहते
थे शरीर पर
इफेक्ट आता है
लेकिन बाबा ने
अपने शरीर को
देखा? यह स्नेह
का सबूत था।
अब बच्चों को
भी रिटर्न में
स्नेह का सबूत
देना है। जो
कर्म करके
दिखाया वही
करना है।
अमृतवेले
जैसे साकार
रूप में करके
दिखाया वैसे
ही बच्चों को
करना चाहिए।
नहीं तो अब तक
यही रिजल्ट
देखी है, इस
बात में अपने
दिल को खुश कर
लेते हैं। उठे
और बैठे।
लेकिन वह
रूहाब, शक्ति
स्वरूप की
स्मृति नहीं
रहती। शक्ति
रूप के बदले
क्या मिक्स हो
गया है? सुस्ती।
तो सुस्ती
मिक्स होने से
मुलाकात करते
हैं लेकिन
लाइन क्लीयर
नहीं होती है
इसलिए
मुलाकात से जो
अनुभव होना
चाहिए वह नहीं
कर पाते हैं।
मिक्स-चर है।
यहाँ शुरू करेंगे
तो
मधुबन-वासियों
को देख सब
करेंगे।
मधुबन निवासी
जो खास स्नेही
हैं उनको खास
सैक्रीफाइज
(बलिदान) करना
है। स्नेह में
हमेशा सेक्रीफाइज
किया जाता है।
अच्छा -
ओम् शान्ति।