02-02-69
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
"अव्यक्त
मिलन के अनुभव
की विधि"
प्रेम
स्वरूप बच्चे, ज्ञान
सहित प्रेम जो
होता है वही
यथार्थ प्रेम
होता है। आप
सभी का
प्रेमरस
बापदादा को भी
खींच लाता है।
सभी बच्चों के
दिल के अन्दर
एक आशा दिखाई
दे रही है। वह
कौन सी? कई बच्चों
ने सन्देश
भेजा कि आप
हमें भी अपने
अव्यक्त वतन
का अनुभव कराओ।
यह सभी बच्चों
की आशायें अब
पूर्ण होने का
समय पहुँच ही
गया है। आप
कहेंगे कि सभी
सन्देशी बन
जायेंगे।
लेकिन नहीं।
अव्यक्त वतन
का अनुभव भी
बच्चे करेंगे।
लेकिन दिव्य-
बुद्धि के
आधार पर जो अब
अलौकिक अनुभव
कर सकते हो वह
दिव्य दृष्टि
द्वारा करने
से भी बहुत
लाभदायक, अलौकिक
और अनोखा है।
इसलिए जो भी
बच्चे चाहते
हैं कि
अव्यक्त बाप से
मुलाकात करें,
वह कर सकते
हैं। कैसे कर
सकते हैं, इसका
तरीका सिर्फ
यही है कि
अमृत- वेले
याद में बैठो
और यही संकल्प
रखो कि अब हम
अव्यक्त
बापदादा से
मुलाकात करें।
जैसे साकार
में मिलने का
समय मालूम
होता था तो
नींद नहीं आती
थी और समय से
पहले ही
बुद्धि द्वारा
इसी अनुभव में
रहते थे। वैसे
अब भी अव्यक्त
मिलन का अनुभव
प्राप्त करना
चाहते हो तो
उसका बहुत सहज
तरीका यह है।
अव्यक्त
स्थिति में
स्थित होकर
रूह-रूहान करो।
तो अनु- भव
करेंगे कि
सचमुच बाप के
साथ बातचीत कर
रहे हैं। और
इसी रूह-रूहान
में जैसे
सन्दे- शियों
को कई दृश्य
दिखाते हैं
वैसे ही बहुत
गुह्य, गोपनीय
रहस्य
बुद्धियोग से
अनुभव करेंगे।
लेकिन एक बात
यह अनुभव करने
के लिए आवश्यक
है। वह कौनसी?
मालूम है?
अमृतवेले भी
अव्वक्त
स्थिति में
वही स्थित हो
सकेंगे जो
सारा दिन
अव्यक्त
स्थिति में और
अन्तर्मुख
स्थिति में
स्थित होंगे।
वही अमृतवेले
यह अनुभव कर
सकेंगे।
इसलिए अगर
स्नेह है और
मिलने की आशा
है तो यह तरीका
बहुत सहज है।
करने वाले कर
सकते हैं और
मुलाकात का
अनोखा अनुभव
प्राप्त कर
सकते हैं।
वतन
में बैठे-बैठे
कई बच्चों के
दिलों की आवाज
पहुँचती रहती
है। आप सोचते
होंगे - शिव-
बाबा बहुत
कठोर है लेकिन
जो होता है
उसमें रहस्य
और कल्याण है।
इसलिए जो आवाज
पहुँ- चती है
वह सुनकर के
हर्षाता रहता
हूँ। क्या बापदादा
निर्मोही है? आप
सभी बच्चे
निर्मोही हो?
निर्मोही
बने हो? तो
बापदादा
निर्मोही और
बच्चों में
शुद्ध मोह तो
मिलन कैसे
होगा।
बापदादा में
शुद्ध मोह है?
(साकार बाबा
का बच्चों में
शुद्ध प्यार
था) शिवबाबा
का नहीं है?
बापदादा का
है? (जैसा
हमारा है वैसा
नहीं) शुद्ध
मोह बच्चों से
भी जास्ती है।
लेकिन
बापदादा और
बच्चों में एक
अन्तर है। वह
शुद्ध मोह में
आते हुए भी
निर्मोही हैं
और बच्चे
शुद्ध मोह में
आते हैं तो
कुछ स्वरूप बन
जाते हैं। या
तो प्यारे
बनते या तो
न्यारे बनते।
लेकिन
बापदादा
न्यारे और
प्यारे
साथ-साथ बनते
हैं। यह अन्तर
जो रहा हुआ है
इसको जब
मिटायेंगे तो क्या
बनेंगे? अन्तर्मुख,
अव्यक्त,
अलौकिक। अभी
कुछ कुछ
लौकिकपन भी
मिल जाता है।
लेकिन जब यह
अन्तर खत्म कर
देंगे तो
बिल्कुल अलौकिक
और
अन्तर्मुखी,
अव्यक्त
फरिश्ते नजर
आयेंगे। इस
साकार वतन में
रहते हुए भी
फरिश्ते बन सकते
हो। आप फिर
कहेंगे आप वतन
में जाकर
फरिश्ता
क्यों बनें?
यहाँ ही
बनते। लेकिन
नहीं। जो
बच्चों का काम
वह बच्चों को
साजे। जो बाप
का कार्य है
वह बाप ही
करते हैं।
बच्चों को अब
पढ़ाई का शो
दिखाना है।
टीचर को पढ़ाई
का शो नहीं
दिखना है? टीचर
को पढ़ाई पढ़ानी
होती है। स्टूडेन्ट
को पढ़ाई का शो
दिखाना होता
है। शो केस
में शक्तियों
को पाण्डवों
को आना है।
बापदादा तो है
ही गुप्त।
अभी
सभी के दिल
में यही
संकल्प है कि
अब जल्दी-जल्दी
ड्रामा की सीन
चलकर खत्म हो
लेकिन जल्दी
होगी? हो सकती
है? होगी
या हो सकती है?
भावी जो बनी
हुई है, वह
तो बनी हुई
बनी ही रहेगी।
लेकिन बनी हुई
भावी में यह
इतना नजर आता
है कि अगर
कल्प पहले
माफिक संकल्प
आता है तो
संकल्प के
साथ-साथ अवश्य
पहले भी
पुरूषार्थ
तीव्र किया
होगा। तो यह
भी संकल्प आता
है कि ड्रामा
का सीन जल्दी
पूरा कर सभी
अव्यक्तवतन
वासी बन जायें।
बनना तो है।
लेकिन आप
बच्चों में
इतनी शक्ति है
जो अव्यक्त
वतन को भी
व्यक्त में
खींचकर ला
सकते हो।
अव्यक्त वतन
का नक्शा
व्यक्त वतन
में बना सकते
हो। आशायें तो
हरेक की बहुत
हैं। ऐसे ही
पहुँचती हैं
जैसे इस साकार
दुनिया में
बहुत बड़ी आफिस
होती है
टेलीफोन और
टेलीग्राफ की,
वैसे ही
बहुत शुद्ध
संकल्पों की
तारे वतन में पहुँचती
रहती हैं। अभी
क्या करना है?
कई बच्चों
के कुछ लोक
संग्रह प्रति
प्रश्न भी हैं
वह भी पहुँचते
हैं। कई बच्चे
मूंझते हैं कि
साकार द्वारा
तो यह कहा कि
सूक्ष्मवतन
है ही नहीं,
तो बाबा
कहाँ गये? कहाँ
से मिलने आते
हैं? कहाँ
यह सन्देश
भेजते हैं? क्यों भोग
लगाते हो? इसका
भी राज है।
क्यों कहा गया
था? इसका
मूल कारण यही
है कि जैसे आप
लोगों ने देखा
होगा कि
कभी-कभी छोटे
बच्चे जब कोई
चीज के पीछे
लग जाते हैं
तो वह चीज भल
अच्छी भी होती
है लेकिन हद
से ज्यादा उस
अच्छी चीज के
पीछे पड़ जाते
हैं तो बच्चों
से क्या किया
जाता है? वह
चीज उनकी
आँखों से
छिपाकर यह कहा
जाता है कि है
ही नहीं।
इसलिए ही कहा
जाता है कि
इसकी जो
एकस्ट्रा लगन
लग गई है, वह
कुछ ठीक हो
जाए। इसी रीति
से वर्तमान
समय कई बच्चे
इन्ही बातों
में कुछ चटक
गये थे। तो
उनको छुड़ाने
के लिए साकार
में कहते थे
कि यह सूक्ष्मवतन
है ही नहीं।
तो यह भी
बच्चों की इस
बात से बुद्धि
हटाने के लिए
कहा गया था।
लेकिन इसका
भाव यह नहीं
है कि अगर
बच्चों से चीज
छिपाई जाती है
तो वह चीज
खत्म हो जाती
है। नहीं। यह
एक युक्ति है,
चटकी हुई
चीज से छुड़ाने
की। तो यह भी
युक्ति की।
अगर
सूक्ष्मवतन
नहीं तो भोग
कहाँ लगाते हो?
इस रसम
रिवाज को कायम
क्यों रखा? कोई भी ऐसा
कार्य होता है
तो खुद भी
सन्देश क्यों
पुछवाते थे?
तो ऐसे भी
नहीं कि
सूक्ष्मवतन
नहीं है।
सूक्ष्मवतन
है। लेकिन अब
सूक्ष्मवतन
में आने जाने
के बजाए स्वयं
ही
सूक्ष्मवतन
वासी बनना है।
यही बापदादा
की बच्चों में
आशा है।
आना-जाना
ज्यादा नहीं
होना चाहिए।
यह यथार्थ है।
कमाई किसमें
है? तो बाप
बच्चों की
कमाई को देखते
हैं और कमाई के
लायक बनाते
हैं। इसलिए यह
सभी रहस्य
बोलते रहे।
अभी समझा कि
क्यों कहा था
और अब क्या है?
सूक्ष्मवतन
के अव्यक्त
अनुभव को
अनुभव करो।
सूक्ष्म
स्थिति को
अनुभव करो।
आने जाने की
आशा अल्पकाल
की है।
अल्पकाल के
बजाए सदा अपने
को
सूक्ष्मवतनवासी
क्यों नहीं
बनाते? और
सूक्ष्मवतनवासी
बनने से ही
बहुत वण्डरफुल
अनुभव करेंगे।
खुद आप लोग
वर्णन करेंगे
कि यह अनुभव
और
सन्देशियों
के अनु- भव में
कितना फर्क है,
वह कमाई
नहीं। यह कमाई
भी है और
अनुभव भी। तो
एक ही समय दो
प्राप्ति हो
वह अच्छा या
एक ही चाहते
हो? और कई
बच्चों के मन
में यह भी
प्रश्न है कि
ना मालूम जो
बापदादा कहते
थे कि सभी को
साथ में ले जायेंगे,
अब वह तो
चले गये।
लेकिन वह चले
गये हैं? मुक्तिधाम
में जा नहीं
सकते - सिवाए
बारात वा बच्चों
के। बारात के
बिगर अकेले जा
सकते हैं? बारात
तैयार है? यही
सुना है अब तक
कि बारात के
साथ ही
जायेंगे। जब
बारात ही सज
रही है तो
अकेले कैसे
जायेंगे। अभी
तो
सूक्ष्मवतन
में ही
अव्यक्त रूप
से स्थापना का
कार्य चलता
रहेगा। जब तक
स्थापना का
कार्य समाप्त
नहीं हुआ है तब
तक बिना कार्य
सफल किये हुए
घर नहीं
लौटेंगे, साथ
ही चलेंगे और
फिर चलने के
बाद क्या
करेंगे? मालूम
है - क्या
करेंगे? साथ
चलेंगे और साथ
रहेंगे। और
फिर साथ-साथ
ही सृष्टि पर
आयेंगे। आप
बच्चों का जो
गीत है कभी भी
हाथ और साथ न
छूटे, तो
बच्चों का भी
वायदा है तो
बाप का भी
वायदा है। बाप
अपने वायदे से
बदल नहीं सकते।
और भी कोई
प्रश्न है? यूँ तो समय
प्रति समय सब
स्पष्ट होता
ही जायेगा।
कईयों के मन
में यह भी है
ना कि ना
मालूम जन्म होगा
वा क्या होगा?
जन्म होगा?
जैसे आप की
मम्मा का जन्म
हुआ वैसे होगा?
आप बच्चों
का विवेक क्या
कहता है? ड्रामा
की भावी को
देख सकते हो?
थोड़ा-थोड़ा
देख सकते हो?
जब आप लोग
सबको कहते हो
कि हम
त्रिकालदर्शी
बाप के बच्चे
हैं तो आने
वाले काल को
नहीं जानते हो?
आपके मन के
विवेक अनुसार
क्या होना
चाहिए? अव्यक्त
स्थिति में
स्थित होकर
हाँ वा नाँ कहो?
तो जवाब
निकल आयेगा।
(इस रीति से
बापदादा ने दो
चार से पूछा)
बहुत करके सभी
का यही विचार
था कि नहीं
होगा। आज ही
उत्तर चाहते
हो या बाद में!
हलचल तो नहीं चम
रही है। यह भी
एक खेल रचा
जाता है। छोटे-छोटे
बच्चे तालाब
में पत्थर
मारकर उनकी लहरों
से खेलते हैं।
तो यह भी एक
खेल है। बाप
तुम सभी के
विचार सागर
में प्रश्रों
के पत्थर फेंक
कर तुम्हारे
बुद्धि रूपी
सागर में लहर
उत्पन्न कर
रहे हैं।
उन्ही लहरों
का खेल
बापदादा देख
रहे हैं। अभी
आप सबके साथ
ही अव्यक्त
रूप से
स्थापना के
कार्य में लगे
रहेंगे। जब तक
स्थापना का
पार्ट है तब
तक अव्यक्त
रूप से आप सभी
के साथ ही हैं।
समझ गये? वतन
में मम्मा को
भी इमर्ज किया
था। पता है
क्या बात चली?
जैसे साकार
रूप में साकर
वतन में मम्मा
बोलती थी कि
बाबा आप बैठे
रहिये हम सभी
काम कर लेंगे।
इसी ही रीति
से वतन में भी
यही कहा कि हम
सभी कार्य
स्थापना के जो
करने हैं वह
करेंगे। आप
बच्चों के साथ
ही बच्चों को
बहलाते रहिये।
ऐसे ही साकार
में कहती थी।
वही वतन में
रूह-रूहान चली।
आप सभी के मन
में तो होगा
ही-कि हमारी
मम्मा कहाँ गई।
अभी यह राज इस
समय स्पष्ट
करने का नहीं
है। कुछ समय
के बाद
सुनायेंगे कि
वह कहाँ और
क्या कर रही
है। स्थापना
के कार्य में
भी मददगार है
लेकिन भिन्न
नाम रूप से।
अच्छा - अब तो
टाइम हो गया
है।
आज वतन
में दूर से ही
सवेरे से
खुशबू आ रही
थी। देख रहे
थे कैसे स्नेह
से चीजे बना
रहे हैं। आपने
देखा, भण्डारे
में चक्र
लगाया? चीजों
की खुशबू नहीं
स्नेह की
खुशबू आ रही
थी। यह स्नेह
ही अविनाशी
बनता है।
अविनाशी
स्नेह है ना?
याद हरेक की
पहुँचती है,
उसका
रेसपोंड लेने
के लिए अवस्था
चाहिए।
रेसपान्ड
फौरन मिलता है।
जैसे साकार
में बच्चे
बाबा कहते थे
तो बच्चों को
रेसपांड
मिलता था। तो
रेसपान्ड अब
भी फौरन मिलता
है लेकिन बीच
में व्यक्त
भाव को छोड़ना
पड़ेगा तब ही
उस रेसपान्ड
को सुन सकेंगे।
अब तो और ही
ज्यादा चारों
ओर सर्विस
करने का अनुभव
कर रहे हैं।
अब अव्यक्त
होने के कारण
एक और
क्वालिटी बढ़ गई
है। कौन सी?
मालूम है?
वह यह है -
पहले तो
बाहरयामी था,
अभी
अन्तर्यामी
हो गया हूँ।
अव्यक्त
स्थिति में
जानने की
आवश्यकता
नहीं रहती।
स्वत: ही एक
सेकेण्ड में
सभी का नक्शा
देखने में आ
रहा है। इसलिए
कहते हैं कि
पहले से एक और
गुण बढ़ गया है।
अव्यक्त
स्थिति में तो
खुशबू से ही
पेट भर जाता
है। आप लोगों
को मालूम है?
एक
मुख्य शिक्षा
बच्चों के
प्रति दे रहे
हैं। अब
सर्विस तो
करनी ही है, यह
तो सभी बच्चों
की बुद्धि में
लक्ष्य है और लक्ष्य
को पूर्ण भी
करेंगे लेकिन
इस लक्ष्य को
पूर्ण करने के
लिए बीच में
एक मुख्य
विघ्न आयेगा।
वह कौन सा, पता
है? मुख्य
विघ्न सर्विस
में बाधा
डालने के लिए
कौन सा आयेगा?
सभी के आगे
नहीं मैजारटी
के आगे आयेगा!
वह कौन सा
विघ्न है? पहले
से ही बता
देते हैं।
सर्विस
करते-करते यह
ध्यान रखना कि
मैंने यह किया,
मैं ही यह
कर सकता हूँ
यह मैं पन आना
इसको ही कहा
जाता है ज्ञान
का अभिमान, बुद्धि का
अभिमान, सर्विस
का अभिमान। इन
रूपों में आगे
चलकर विघ्न
आयेंगे।
लेकिन पहले से
ही इस मुख्य
विघ्न को आने
नहीं देना।
इसके लिए सदा
एक शब्द याद
रखना कि मैं
निमित्त हूँ।
निमित्त बनने
से ही निरा-
कारी, निरहंकारी
और नम्रचित,
निःसंकल्प
अवस्था में रह
सकते हैं।
अगर
मैंने किया, मैं-मैं
आया तो मालूम
है क्या होगा?
जैसे
निमित्त बनने
से निराकारी,
निरहंकारी,
निरसंकल्प
स्थिति होती
है वैसे ही
मैं मैं आने
से मगरूरी, मुरझाइस, मायूसी आ
जायेगी। उसकी
फिर रिजल्ट
क्या होगी? आखरीन अन्त
में उसकी
रिजल्ट यही
होती है कि चलते-चलते
जीते हुए भी
मर जाते हैं।
इसलिए इस
मुख्य शिक्षा
को हमेशा साथ
रखना कि मैं
निमित्त हूँ।
निमित्त बनने
से कोई भी
अहंकार
उत्पन्न नहीं होगा।
नहीं तो अगर
मैं पन आ गया
तो मतभेद के
चक्र में आ
जायेंगे।
इसलिए इन अनेक
व्यर्थ के
चक्करों से
बचने के लिए
स्वदर्शनचक्र
को याद रखना।
क्योंकि
जैसे-जैसे
महारथी
बनेंगे वैसे
ही माया भी
महारथी रूप
में आयेगी।
साकार रूप में
अन्त तक कर्म
करके दिखाया।
क्या कर्म
करके दिखाया?
याद है?
क्या
शिक्षा दी यही
कि निरहंकारी
और निर्माणचित
होकर एक दो
में प्रेम
प्यार से चलना
है। एक माताओं
का संगठन
बनाना। जैसे
कुमारियों का
ट्रेनिंग
क्लास किया है
वैसे ही
मातायें जो
मददगार बन
सकती हैं और
हैं, उन्हों
का मधुबन में
संगठन रखना।
कुमारियों के
साथ माताओं का
संगठन हो।
संगठन के समय
फिर आना होगा।
स्नेह को
देखते हैं तो
ड्रामा याद आ
जाता है।
ड्रामा जब बीच
में आता है तो
साइलेन्स हो
जाते हैं।
स्नेह में आये
तो क्या हाल
हो जायेगा।
नदी बन
जायेंगे।
लेकिन नहीं,
ड्रामा। जो
कर्म हम
करेंगे वह फिर
सभी करेंगे,
इसलिए
साइलेन्स।
अगर सभी साथ
होते तो जो
अन्तिम
कर्मातीत
अवस्था का
अनुभव था वह
ड्रामा
प्रमाण और
होता। लेकिन
था ही ऐसे
इसलिए थोड़े ही
सामने थे।
सामने होते भी
जैसे सामने
नहीं थे।
स्नेह तो वतन
में भी है और
रहेगा।
अविनाशी है ना।
लेकिन जो
सुनाया कि
स्नेह को
ड्रामा
साइलेन्स में
ले आता है। और
यही साइलेन्स,
शक्ति को
लायेगी। फिर
वहाँ साकार
में मिलन होगा।
अभी अव्यक्त
रूप में मिलते
हैं। फिर
साकार रूप में
सतयुग में
मिलेंगे। वह
सीन तो याद
आती है ना।
खेलेंगे, पाठ-
शाला में
आयेंगे, मिलेंगे।
आप नूरे रत्न
सतयुग की
सीनरी वतन में
देखते रहते हो।
जो बाप देखते
हैं वह बच्चे
भी देखते रहते
हैं और देखते
जायेंगे।
अब तो
ज्वाला रूप
होना है। आपका
ही ज्वाला रूप
का यादगार है।
पता है ज्वाला
देवी भी है वह
कौन है? यह
सभी शक्तियों
को ज्वालारूप
देवी बनना है।
ऐसी ज्वाला
प्रज्जवलित
करनी है। जिस
ज्वाला में यह
कलियुगी
संसार जलकर
भस्म हो
जायेगा।
अच्छा -
विदाई
के समय :-
सभी
सेन्टर्स के
अव्यक्त
स्थिति में
स्थत हुए नूरे
रत्नों को बाप
व दादा का
अव्यक्त यादप्यार
स्वीकार हो।
साथ-साथ जो
ईशारा दिया है
उसको जल्दी से
जल्दी जीवन
में लाने का
तीव्र
पुरूषार्थ
करना है।
अच्छा
गुडनाईट। सभी
शिव शक्तियों
और पाण्डवों
प्रति बाप का
नमस्ते।