18-01-69
ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
"18 जनवरी 1969 –
पिताश्री जी
के अव्यक्त
होने के बाद –
अव्यक्त वतन
से प्राप्त दिव्य
सन्देश"
(गुलज़ार
बहिन द्वारा)
1. आज जब
हम वतन में गई
तो शिवबाबा
बोले - साकार
ब्रह्मा की
आत्मा में आदि
से अन्त तक 84 जन्मों के
चक्र लगाने के
संस्कार हैं
तो आज भी वतन
से चक्र लगाने
गये थे। जैसे
साइंस वाले
राकेट द्वारा
चन्द्रमा तक पहुँचे
- और जितना
चन्द्रमा के
नजदीक
पहुँचते गये
उतना इस धरती
की आकर्षण से
दूर होते गये।
पृथ्वी की
आकर्षण खत्म
हो गई। वहाँ
पहुँचने पर
बहुत हल्कापन
महसूस होता है।
जैसे तुम
बच्चे जब
सूक्ष्मवतन
में आते हो तो स्थूल
आकर्षण खत्म
हो जाती है तो
वहाँ भी धरती
की आकर्षण
नहीं रहती है।
यह है ध्यान
द्वारा और वह
है साइंस
द्वारा। और भी
एक अन्तर
बापदादा सुना
रहे थे - कि वह
लोग जब राकेट
में चलते हैं
तो लौटने का
कनेक्शन नीचे
वालों से होता
है लेकिन यहाँ
तो जब चाहें,
जैसे चाहें
अपने हाथ में
है। इसके बाद
बाबा ने एक
दृश्य दिखाया
- एक लाइट की बहुत
ऊँची पहाड़ी थी।
उस पहाड़ी के
नीचे शक्ति
सेना और
पाण्डव दल था।
ऊपर में
बापदादा खड़े
थे। इसके बाद
बहुत भीड़ हो
गई। हम सभी
वहाँ खड़े ऐसे
लग रहे थे जैसे
साकारी नहीं
लेकिन मन्दिर
के
साक्षात्कार मूर्त
खड़े हैं। सभी
ऊपर देखने की
कोशिश कर रहे
थे लेकिन ऊपर
देख नहीं सके।
जैसे सभी बहुत
तरस रहे थे।
फिर थोड़ी देर
में एक
आकाशवाणी की
तरह आवाज आई कि
शक्तियों और
पाण्डवों
द्वारा ही
कल्याण होना
है। उस समय हम
सबके चहरे पर
बहुत ही
रहमदिल का भाव
था। उसके बाद
फिर कई लोगों
को शक्तियों
और पाण्डवों
से अव्यक्त
ब्रह्मा का
साक्षात्कार,
शिवबाबा का
साक्षात्कार
होने लगा। फिर
तो वह सीन
देखने की थी
कोई हसँ रहा
था, कोई
पकड़ने की
कोशिश कर रहा
था, कोई
प्रेम में
आंसू बहा रहा
था। लेकिन
सारी शक्तियाँ
आग के गोले
समान तेजस्वी
रूप में स्थित
थी। इस पर
बाबा ने
सुनाया कि
अन्त समय में
तुम्हारा यह
व्यक्त शरीर
भी बिल्कुल
स्थिर हो
जायेगा। अभी
तो पुराना
हिसाब-किताब
होने के कारण
शरीर अपनी तरफ
खींचता है
लेकिन अन्त
में बिल्कुल स्थिर,
शान्त हो
जायेगा। कोई
भी हल- चल न मन
में, न तन
में रहेगी।
जिसको ही बाबा
कहते हैं देही
अभिमानी
स्थिति।
दृश्य समाप्त
होने के बाद
बाबा ने कहा -
सभी बच्चों को
कहना कि अभी
देही अभिमानी
बनने का पुरुषार्थ
करो। जितना
सर्विस पर
ध्यान है उतना
ही इस मुख्य बात
पर भी ध्यान
रहे कि देही
अभिमानी बनना
है।
2. आज जब
मैं वतन में
गई तो बापदादा
हम सभी बच्चों
का स्वागत
करने के लिए
सामने
उपस्थित थे।
और जैसे ही
मैं पहुँची तो
जैसे साकार
रूप में दृष्टि
से याद लेते
थे वैसे ही
अनुभव हुआ
लेकिन आज की
दृष्टि में
विशेष प्रेम
के सागर का रूप
इमर्ज था।
एक-एक बच्चे की
याद नयनों में
समाई हुई थी।
बाबा ने कहा
याद तो सभी
बच्चों ने
भेजी है, लेकिन
इसमें दो
प्रकार की याद
है। कई बच्चों
की याद
अव्यक्त है और
कईयों की याद में
अव्यक्त भाव
के साथ व्यक्त
भाव मिक्स है।
75 बच्चों की
याद अव्यक्त
थी लेकिन 25 की
याद मिक्स थी।
फिर बाबा ने
सभी को स्नेह
और शक्ति भरी
दृष्टि देते
गिट्टी खिलाई।
फिर एक दृश्य
इमर्ज हुआ -
क्या देखा सभी
बच्चों का
संगठन खड़ा है
और ऊपर से
बहुत फूलों की
वर्षा हो रही
है। बिल्कुल
चारों और फूल
के सिवाए और
कुछ देखने में
नहीं आ रहा था।
बाबा ने
सुनाया -
बच्ची, बाप-
दादा ने स्नेह
और शक्ति तो
बच्चों को दी
ही है लेकिन साथ-साथ
दिव्य गुण
रुपी फूलों की
वर्षा शिक्षा के
रूप में भी
बहुत की है।
परन्तु दिव्य
गुणों की
शिक्षा को
हरेक बच्चे ने
यथाशक्ति ही
धारण किया है।
इसके बाद फिर
दूसरा दृश्य
दिखाया - तीन
प्रकार के
गुलाब के फूल
थे एक लोहे का,
दूसरा
हल्का पीतल का
और तीसरा रीयल
गुलाब था। तो
बाबा ने कहा
बच्चों की
रिजल्ट भी इस
प्रकार है। जो
लोहे का फूल
हैं - यह
बच्चों के कड़े
संस्कार की
निशानी थे।
जैसे लोहे को
बहुत ठोकना
पड़ता है, जब
तक गर्म न करो,
हथोड़ी न
लगाओ तो मुड़
नहीं सकता। इस
तरह कई बच्चों
के संस्कार
लोहे की तरह
है जो कितना
भी भट्टी में
पड़े रहें
लेकिन बदलते
ही नहीं।
दूसरे है जो
मोड़ने से वा
मेहनत से कुछ
बदलते हैं।
तीसरे वह जो
नैचुरल ही
गुलाब हैं। यह
वही बच्चे हैं
जिन्होंने
गुलाब समान
बनने में कुछ
मेहनत नहीं ली।
ऐसे सुनाते-
सुनाते बाबा
ने रीयल गुलाब
के फूल को
अपने हाथ में
उठाकर थोड़ा घुमाया।
घुमाते ही
उनके सारे
पत्ते गिर गये।
और सिर्फ बीच
का बीज रह गया।
तो बाबा बोले,
देखो बच्ची
जैसे इनके
पत्ते कितना
जल्दी और सहज
अलग हो गये -
ऐसे ही बच्चों
को ऐसा
पुरुषार्थ
करना है जो
एकदम फट से
पुराने
संस्कार, पुराने
देह के
सम्बन्धियों
रूपी पत्ते छट
जायें। और फिर
बीजरूप
अवस्था में
स्थित हो
जायें। तो सभी
बच्चों को यही
सन्देश देना
कि अपने को चेक
करो कि अगर
समय आ जाए तो
कोई भी
संस्कार रूपी
पत्ते अटक तो
नहीं जायेंगे,
जो मेहनत
करनी पड़े? कर्मातीत
अवस्था सहज ही
बन जायेगी या
कोई
कर्मबन्धन उस
समय अटक
डालेगा? अगर
कोई कमी है तो
चेक करो और
भरने की कोशिश
करो।
3. आज
बाबा को मधुबन
में आने के
लिए
निमन्त्रण देने
के लिए गई - तो
बापदादा के
ईशारों से
अनुभव हुआ कि
आज बाबा का
विचार नहीं है।
इतने में ही
बाबा बोले
अच्छा बच्ची
सभी बच्चों ने
बुलाया है तो
बापदादा
बच्चों का
सेवाधारी है।
यह सुनकर
संकल्प चला कि
बाबा ने
अभी-अभी ना की और
अभी-अभी हाँ
की क्यों? दिल
के संकल्प को
जानकर बाबा
बोले - यह
जानबूझ कर
कर्म करके
बाबा सिखला
रहे हैं कि
तुम बच्चों को
भी एक दो की
राय, एक दो
के विचारों को
रिगार्ड देना
चाहिए। भल
समझो कोई
विचार देता है
और तुमको नहीं
जचता है तो भी
उनके विचार को
फौरन ठुकरा
नहीं देना
चाहिए। पहले
तो उनको
रिगार्ड दो कि
हाँ, क्यों
नहीं। बहुत
अच्छा। जिससे
उनके विचार का
फोर्स कम हो
जाऐं। तो फिर
आप जो उन्हें
समझायेंगे वह
समझ सकेंगे।
अगर सीधा ही
उनको कट
करेंगे तो
दोनों फोर्स
टक्कर खायेंगी
और रिजल्ट में
सफलता नहीं
निकलेगी।
इसलिए एक दो
के विचार
अर्थात् राय
को पहले रिगार्ड
देना आवश्यक
है। इससे ही
आपस में स्नेह
और संगठन चलता
रहेगा।
4. आज जब
वतन में गई तो
जैसे ही हम
पहुँची तो
बापदादा
सामने थे ही लेकिन
क्या देखा कि
ब्रह्मा बाबा
के गले में ढेर
की ढेर
मालायें पड़ी
हुई थी। फिर
बाबा ने कहा
यह माला उतार
कर देखो। माला
उतारी तो कोई
बड़ी माला थी
कोई छोटी।
हमने कहा बाबा
इसका रहस्य
क्या है? बाबा
बोले बच्ची,
यह सभी के
उल्हनों की
माला है।
क्योंकि हरेक
बच्चे जब एकान्त
में बैठते हैं
तो बाबा को
स्नेह में उल्हना
ही देते हैं।
हरेक बच्चे ने
बाप को
उल्हनों की
माला जरूर पहनाई
है। बाबा ने
कहा बच्चों को
ड्रामा भल याद
है लेकिन
प्यारे ते
प्यारी चीज तो
जरूर है। तो
अचानक ड्रामा
को वंडरफुल
देख हरेक
बच्चा दिल ही
दिल में
उल्हना देते
रहते हैं। यूँ
तो ज्ञान
बच्चों को है
लेकिन ज्ञान
के साथ प्रेम
का स्नेह भी
है इसलिए इन
उल्हनों को गलत
नहीं कहेंगे।
फिर हमने पूछा
बाबा, आपने
इसका
रेसपान्ड
क्या दिया? तो बाबा
बोले जैसा
बच्चा वैसा
रेसपान्ड।
बाबा ने कहा
मैं भी
रेसपान्ड में
बच्चों को उल्हनों
की माला ही
पहनाता हूँ।
वह कौन सी? फिर
बाबा ने
सुनाया - जो
बाप की आश
बच्चों में थी
वह साकार रूप
में बाप को
नहीं दिखलाई,
जो अब
अव्यक्त रूप
में दिखलानी
है। बाबा ने
कहा यह उल्हना
भी मीठी
रूहरूहान है।
यह भी एक
खेलपाल
बच्चों का है।
साकार रूप में
जो बापदादा ने
श्रृंगार
कराया वह अब
अव्यक्त वतन
में बापदादा देखेंगे।
यह सीन पूरी
हो गई। फिर
भोग स्वीकार
कराया फिर
मैंने बाबा से
पूछा - बाबा आप
सारा दिन वतन
में क्या करते
हो? बाबा
ने कहा चलो
मैं तुमको वतन
का म्युजियम
दिखलाऊँ तुम
तो म्युजियम
बनाने के पहले
प्लैन बनाते
हो बाबा का
म्युजियम तो
एक सेकेण्ड
में तैयार हो
जाता है। फिर
क्या देखा? एक बहुत बड़ा
हाल था। एक ही
हाल में हम
बच्चे ढेर की
ढेर माडल के
रूप में खड़े
थे। हमने कहा
बाबा यह तो हम
ही म्यूजियम
में खड़े हैं।
बाबा ने कहा -
बच्ची बाबा का
म्युजियम यही
है। अभी तुम
जाओ जाकर एक माडल
को देखो कि
बापदादा ने
क्या-क्या
सजाया है? जैसे
आर्टिस्ट
मूर्ति को
सजाते हैं तो
बाबा ने कहा
देखो, बापदादा
ने क्या-क्या
सजाया है? हम
जब माडल के
पास गई तो
हमको कुछ खास
दिखाई नहीं
पड़ा। पूरी सजी
हुई मूर्ति
दिखाई पड़ रही
थी। बाबा ने
कहा जो मोटा
श्रृंगार है
वह तो साकार
में ही बच्चों
का करके आये
हैं। परन्तु
अब अव्यक्त
रूप में क्या
सजा रहे हैं?
सभी
श्रृंगार तो
है, जेवर
भी है परन्तु
जेवर में बीच
में नग लगा रहे
हैं। बाबा के
कहने के बाद
कोई-कोई में
जैसे एकस्ट्रा
नग दिखाई पड़े।
बाबा ने कहा
बच्चों के
प्रति मुख्य
शिक्षा यही है
कि अव्यक्त
स्थिति में
स्थित रहकर
व्यक्त भाव
में आओ। जब
एकान्त में
बैठते हैं तो
अव्यक्त
स्थिति रहती
है लेकिन
व्यक्त में
रहकर अव्यक्त
भाव में स्थित
रहें वह मिस
कर लेते हैं
इस- लिए एकरस कर्मातीत
स्थिति का जो
नग है, वह
कम है। तो
जिसके जीवन
में जो कमी देखता
हूँ वह सजा
रहा हूँ। जैसे
साकार रूप में
यह कार्य करता
था वही फिर अव्यक्त
रूप में करता
हूँ। तो
बच्चों से
जाकर पूछना कि
सारे दिन में
जैसे बाप
बच्चों को
सजाते हैं, ऐसे बच्चों
को भासना आती
है? उस
टाइम जो
योंगयुक्त
बच्चे होंगे
उनको भासना
आयेगी कि बाबा
अब मेरे से
बात कर रहे
हैं, सजा
रहे हैं। जैसे
मैं अव्यक्त
वतन में
बच्चों से
मिलता, बहलता
रहता हूँ।
अव्यक्त रूप
वाले बच्चे यह
अनुभव कर सकते
हैं। मैं भी
खास समय पर
खास बच्चों को
याद करता हूँ।
ऐसी टचिंग
बच्चों को
होती ही होगी।
मैंने कहा
बाबा आप सभी
को अव्यक्त
वतन में क्यों
नहीं बुला
लेते? - यहाँ
ही बड़ा सेन्टर
खोल दो। अभी
तो सभी बच्चे
उपराम हो गये
हैं। बाबा ने
कहा यह उपराम
अवस्था होनी
ही चाहिए।
हमेशा तैयार
रहना चाहिए।
यह भी याद की
यात्रा को बल
मिलता है। यह
उपराम अवस्था
सहज याद का
तरीका है। अब
बच्चों को
कहना ज्यादा
समय नहीं है।
बाबा कभी भी
किसको बुला
लेंगे।
5. आज जब
वतन में गई तो
जाते ही अनुभव
हो रहा था जैसे
कि लाइट के
बादलों से
क्रास करके
वतन में जा
रही हूँ।
बादलों की
लाइट ऐसे लग
रही थी जैसे
सूर्यास्त
होते समय लाली
देखने में आती
है। जैसे ही
वतन में
पहुँची तो
वहाँ भी ऐसे
ही देखा कि
लाइट के
बादलों के बीच
बापदादा का
मुखड़ा
सूर्य-चन्द्रमा
समान चमकता
हुआ देखने में
आ रहा था। सीन
तो बड़ी सुन्दर
दिखाई दे रही
थी लेकिन आज का
वायुमण्डल
बिल्कुल
शान्त था।
बापदादा के
मुलाकात में
भी शान्ति और
शक्ति की
भासना आ रही
थी। फिर तो
मुस्कराते हुए
बाबा बोले - भल
तुम बच्चे
साकार शरीर
में साकारी
सृष्टि में हो
फिर भी साकार
में रहते ऐसे
ही लाइट माइट
रूप होकर रहना
है जो कोई भी
देखे तो महसूस
करे कि यह कोई
फरिश्ते घूम
रहे हैं।
लेकिन वह
अवस्था तब
होगी जब
एकान्त में
बैठे अन्तर्मुख
अवस्था में रह
अपनी चेकिंग
करेंगे। ऐसी
अवस्था से ही
आत्माओं को आप
बच्चों से साक्षात्कार
होगा। आज वतन
में एक तरफ तो
बिल्कुल
शान्ति थी, दूसरे तरफ
फिर प्यार का
रूप बहुत था।
क्या देखा? बाबा की
बाँहों में
सभी बच्चे
समाये हुए थे।
साथ-साथ प्रेम
का सागर तो था
ही। बाबा ने
कहा - तुम
शक्तियों को
भी सर्व
आत्माओं को
ऐसे ही अब
अपने समीप लाना
है। आपकी
दृष्टि में
बाप समान जब
प्रेम और
शक्ति दोनों
ही पावर होगी
तब आत्मायें
नजदीक आयेंगी।
इसके बाद बाबा
ने तीसरा
दृश्य
दिखाया-क्या
देखा बाबा के
सामने ढेर
कार्डस पड़े थे।
बाबा ने कहा
इन कार्डस को
ऐसे सजाओं जिससे
कोई सीनरी बन
जाए क्योंकि
हर कार्ड पर सीनरी
की डिजाइन थी -
किसमें चित्र
किसमें शरीर।
हम मिलाने लगी
तो कभी उल्टा
कभी सुल्टा हो
जाता था। और
बापदादा बहुत
हँस रहे थे।
उसमें बहुत ही
सुन्दर सतयुग
की सीनरियॉ थी।
एक कृष्ण बाल
रूप में झूले
में झूल रहा
था, साथ में
कान्ता (दासी)
झुला रही थी।
दूसरे में
सखे-सखियों का
खेल था। मतलब
तो सतयुग की
दिनचर्या थी।
फिर बाबा ने
विदाई देते
समय कहा, बच्ची
सबको सन्देश
देना - कि
शक्ति स्वरूप
भव और प्रेम
स्वरूप भव।
6. आज जब
इस देह और देह
के देश से परे
अपने को सूक्ष्मवतन
जिसको ब्रह्मापुरी
कहते हैं वहाँ
गई तो
परमात्मा बाप
ने एक दृश्य
दिखाया - बहुत
बड़ी एक भीड़
देखी - फिर देखा
जैसे कोई
टिकेट बाँट
रहा है और
हरेक कोशिश कर
रहा है कि
हमें भी टिकेट
मिले। लेकिन
थोड़े समय में
देखा कि
कोई-कोई को
टिकेट मिली और
कोई-कोई टिकेट
से वंचित रह
गये। जिनको
टिकेट मिली वह
दिल ही दिल
में हर्षाते
रहे और जिन्हें
नहीं मिली वह
एक दो को
देखते रहे। वह
टिकेट कहाँ की
थी उस पर एक
दूसरा दृश्य
देखा - एक बड़ा
सुन्दर
दरवाजा था जो
अचानक खुला -
जिन्हों के
पास टिकेट थी
वह तो दरवाजे
के अन्दर चले
गये और जिनके
पास टिकेट
नहीं थी वह
बड़े ही
पश्चाताप से
देख रहे थे।
उस गेट पर
लिखा हुआ था - ' 'स्वर्ग का
द्वार ''।
बाबा ने रहस्य
सुनाया - कि
परमात्मा बाप
सभी बच्चों
द्वारा
सतयुगी नई
सृष्टि
स्वर्ग में चलने
की टिकेट दिला
रहे हैं।
परन्तु कई
बच्चे सोच रहे
हैं कि अब
नहीं बाद में
ले लेंगे।
लेकिन ऐसे न
हो कि यह
टिकेट मिलना
बन्द हो जाए
और स्वर्ग में
जाने से वंचित
हो जायें।
बाबा ने कहा -
कई आत्मायें
सुनती हैं, सोचती हैं
कि यह कार्य
क्या चल रहा
है? तो
बापदादा
बच्चों प्रति
यही शिक्षा दे
रहे हैं कि यह
जो समय आने
वाला है, आप
जो अब सोच रहे
हो, सोचते-साचते
अपने भाग्य को
गंवा न दो। यह
दृश्य दिखाया।
फिर दूसरी सीन
देखी कि नदी
बह रही थी - उस
नदी में
दूर-दूर से कई
लोग आकर स्नान
कर रहे थे। कई
फिर वहाँ ही
नजदीक थे
लेकिन नहा
नहीं रहे थे।
बल्कि उनसे कई
पूछ रहे थे कि
नदी कहाँ हैं
हम जाकर स्नान
करें लेकिन जो
नजदीक रहने
वाले थे उनको
नदी में स्नान
करने का महत्व
नहीं था और जो
प्यासे थे, उनको भी उस
प्यास का
मूल्य कम
कराते थे। फिर
बाबा ने कहा
कि बच्ची यह
जो ज्ञान गंगा
है। गंगा के
नजदीक वाले
आबू निवासी
हैं। दूर दूर
से आकर तो
इसमें स्नान
करते हैं लेकिन
यहाँ वाले इस
महत्व को न
जान उनको
टालते हैं। तो
कहाँ ऐसे न हो
इस भूल में रह
जायें इसलिए
बापदादा के सब
बच्चे हैं, भल
आज्ञाकारी
बच्चे नहीं
हैं फिर भी
बच्चे तो बाबा
के प्रिय हैं।
तो बच्चों को
बाबा शिक्षा
देते हैं कि
यह अमूल्य समय
जो ज्ञान गंगा
में नहाने का
मिल रहा है,
वह कभी गंवा
न देना। फिर
थोड़े समय में
देखा कि कईयों
ने तो स्नान किया,
कईयों ने जल
को भरकर रखा
लेकिन कुछ समय
के बाद नदी ने
रास्ता पलट
लिया और
जिन्होंने
नहीं नहाया,
न भरकर रखा
वह औरों से
एक-एक बूंद
मांग रहे थे,
तड़फ रहे थे।
तो बाबा ने
कहा यह समय
अभी आने वाला
है। फिर बाबा
ने सभी बच्चों
के प्रति एक
महामन्त्र की
सौगात दी -
बाबा बोले, एक तो मुझ
परमपिता की
याद में रहो
और अपने जीवन
को पवित्र और
योगी बनाओ।
यही बापदादा
ने स्नेह के
रिटर्न में
महामन्त्र की
सौगात सभी
प्रति दी।
7. आज जब
वतन में गई तो
जाते ही क्या
देखा कि शिवबाबा
और अपना
ब्रह्मा बाबा
दोनों आपस में
बैठे थे और
सामने जैसे एक
छोटी पहाड़ी
बनी हुई थी।
वह किसकी थी?
क्या देखा
कि ढेर के ढेर
पत्र थे। इतने
पत्र थे, इतने
पत्र थे जैसे
कि पहाड़ियां
बन गई थी जैसे ही
हम पहुँची तो
ब्रह्मा बाबा
ने हमको देखा
और कहा कि ईशू
कहाँ है। इतने
पत्र हो गये
हैं। मैंने
कहा बाबा मैं
आई हूँ। कहा
ईशू बच्ची को
भी साथ लाई हो
ना! देखना ईशू
बच्ची, मैं
दो मिनट में
इतने सारे
पत्र पूरा कर
देता हूँ। शिव
बाबा तो
साक्षी होकर
मुस्करा रहे
थे। इतने में
देखा कि ईशू
बहन भी वहाँ
इमर्ज हो गई।
ईशू का चेहरा
बिल्कुल ही
शान्त था।
बाबा ने कहा
बच्ची क्या
सोच रही हो?
आज तो पत्र
का जवाब देना
है। उसी समय
जैसे साकार
वतन का
संस्कार
पूर्ण रीति
इमर्ज था।
मम्मा खड़ी
होकर देख रही
थी। इतने में
ही शिव बाबा
ने ब्रह्मा
बाबा को कहा आप
कहाँ हो? वतन
में बैठे हो?
फिर एक
सेकेण्ड में
ही रूप बदल
गया। बाबा ने
कुछ कहा नहीं,
एकदम डेड
साइलेन्स हो
गये। इतने में
बाबा ने मुझे
कहा कि बच्ची
यह पत्र खोलकर
देखो। मैंने
कहा बाबा पत्र
तो ढेर हैं।
बाबा ने कहा
बच्ची इसमें
तो एक सेकेण्ड
लगेगा।
क्योंकि सभी
में एक ही बात
है। इसके बाद
बाबा ने
सुनाया कि सभी
पत्रों में बच्चों
के उल्हने ही
हैं। पत्रों
में सभी
उल्हने ही थे।
अब देखना बाबा
बच्चों को
रेस्पाण्ड
करते हैं।
देखना एक
सेकेण्ड में
मैं सभी को
जवाब दे देता
हूँ। फिर बाबा
ने सभी पत्रों
का लाल
अक्षरों में यहाँ
माफिक ही पत्र
लिखा। पत्र
में क्या था - "ब्राह्मण
कुल भूषण, स्वदर्शनचक्रधारी,
ये रत्नों
बच्चों प्रति,
समाचार यह
है कि सभी
बच्चों के
उल्हनों के
पत्र
सूक्ष्मवतन
में पाये।
रेस्पान्ड
में बापदादा
बच्चों को कह
रहे हैं कि
ड्रामा की
भावी के बन्धन
में सर्व
आत्मायें
बंधी हुई हैं।
सभी पार्ट बजा
रही हैं। उसी
ड्रामा के
मीठे-मीठे बन्धन
अनुसार आज
अव्यक्त वतन
में पार्ट बजा
रहा हूँ। सभी
बच्चों को दिल
व जान सिक व
प्रेम से
अव्यक्त रूप
से याद प्यार
बहुत-बहुत-बहुत
स्वीकार हो।
जैसे बाप की
स्थिति है
वैसे बच्चों
को स्थिति
रखनी है"।
यह है बापदादा
का पत्र। फिर
बाबा को हमने
भोग स्वीकार
कराया। बाबा
बोले बच्ची आज
कुछ नये बच्चे
भी आये हैं।
पहले मैं
उन्हों को
खिलाता हूँ।
फिर वतन में
बाबा ने सभी
बच्चों को
इमर्ज कर अपने
हस्तों से
जल्दी-जल्दी
एक एक दृष्टि
भी दे रहे थे,
हाथों से
गिट्टी भी
खिला रहे थे।
लेकिन एक एक
को एक सेकेण्ड
भी जो दृष्टि
दे रहे थे, उस
दृष्टि में
बहुत कुछ भरा
हुआ था। उसके
बाद फिर तीसरा
दृश्य हमने
देखा। बाबा को
कहा कि सभी ने
एक प्रश्न
पूछने के लिए कहा
है। बाबा ने
कहा जो भी
प्रश्न हैं वह
पूछ सकते हो।
बाबा तो एक
अक्षर में
जवाब दे देगा।
प्रश्न:-
सभी
पूछते हैं कि
पिछाड़ी के समय
आप ने कुछ बोला
नहीं। बाहर की
सीन तो हम सभी
ने सुनी है
लेकिन अन्दर क्या
था वह अनुभव
भी सुनना
चाहते हैं।
बाबा बोले, हाँ
बच्ची, क्यों
नहीं। अपना
अनुभव
सुनायेंगे।
अच्छा लो सुनो
-
बच्ची
खेल तो सिर्फ 10-15
मिनट का ही था।
उस थोड़े से
समय में ही
अनेक खेल चले।
उसमें
भिन्न-भिन्न
अनुभव हुए।
पहला अनुभव तो
यह था कि पहले
जोर से युद्ध
चल रही थी।
किसकी? योगबल
और कर्मभोग की।
कर्मभोग भी
फुल फोर्स में
अपने तरफ खींच
रहा था और
योगबल भी फुल
फोर्स में ही
था। ऐसे अनुभव
हो रहा था कि
जो भी शरीर के
हिसाब-किताब
रहे हुऐ थे वह
फट से योग
अग्नि में
भस्म हो रहे
थे। और मैं
साक्षी हो देख
रहा हूँ, जैसे
अखाड़े में बैठ
मल्लयुद्ध
देखते हैं।
मतलब तो दोनों
का फोर्स पूरा
ही था। उसके
बाद बाबा बोले
कि कुछ समय
बाद कर्मभोग
(दर्द) तो
बिल्कुल
निर्बल हो गया।
बिल्कुल दर्द
गुम हो गया।
ऐसे ही अनुभव
हो रहा था कि
आखरीन में
योगबल ने
कर्मभोग पर
जीत पा ली। उस
समय तीन बातें
साथ-साथ चल
रही थी वह कौन
सी? एक तरफ
तो बाबा से
बातें कर रहा
था कि बाबा आप
हमें अपने पास
बुला रहे हो।
दूसरे तरफ यूँ
तो कोई खास
बच्चों की
स्मृति नहीं,
लेकिन सभी
बच्चों के
स्नेह की याद
शुद्ध मोह के
रूप में थी
बाकी शुद्ध
मोह की रग वा
यह संकल्प कि
छुट्टी नहीं
ली वा और कोई
भी संकल्प
नहीं था।
तीसरी तरफ यह
भी अनुभव हो
रहा था कि
कैसे शरीर से
आत्मा निकल
रही है।
कर्मातीत
न्यारी
अवस्था जो
बाबा ने पहले
मुरली भी चलाई
कि कैसे भाँ
भाँ होकर
सन्नाटा हो जाता
है। वैसे ही
बिल्कुल डेड साइलेन्स
का अनुभव हो
रहा था और देख
रहा था कि कैसे
एक-एक अंग से
आत्मा अपनी
शक्ति छोड़ती
जा रही है। तो
कर्मातीत
अवस्था की
मृत्यु क्या
चीज है वह
अनुभव हो रहा
था। यह है
मेरा अनुभव।
फिर हमने बाबा
को कहा कि
बाबा सभी
बच्चे कहते हैं
अगर हम सभी
सामने होते तो
बाबा को रोक
लेते। तो बाबा
ने कहाँ बच्ची
रोक लेते तो
यह ड्रामा कैसे
होता। फिर
हमने कहा बाबा
यह सीन जैसे
अब तो आर्टीफिशियल
लग रही है।
रीयल ड्रामा
नहीं लगता।
बाबा ने कहा
कि बच्ची यह
स्नेह की मीठी
तार जुटी होने
के कारण तुमको
अन्त तक यह
वण्डर ही देखने
में आयेगा और
अब तक भी तो
सम्बन्ध है।
भल साकार रथ
गया है लेकिन
ब्रह्मा के
रूप में अव्यक्त
पार्ट बजा रहे
हैं। बाबा ने
कहा मैं भी
कभी साकार वतन
में चला जाता
हूँ फिर शिव
बाबा पूछते
हैं कहाँ बैठे
हो? यहाँ
बैठे जैसे
साकार वतन में।
यह मकान बन
रहा है वहाँ
तक जाता हूँ।
मैंने कहा बाबा,
कभी कभी
लगता है कि
जैसे बाबा
चक्र लगा रहे
हैं। बाबा ने
कहा मैं चक्कर
लगाता हूँ तो
वह भासना तो
बच्चों को
आयेगी ही।
मतलब तो रूह
रूहान हो रही
थी। फिर बाबा
ने एक दृश्य
दिखाया जैसे
एक चक्र के अन्दर
बहुत चक्र
दिखाई पड़े।
चक्र का ढंग
ऐसे बनाया था
कि उस चक्र से
निकलने के 4-5
रास्ते दिखाई
पड़े परन्तु
निकल न पाये।
सिर्फ
ब्रह्मा बाबा
का यह दिखाया
कि चक्र में
चलते-चलते
प्याइन्ट
(जीरो) पर खड़े
हो गये, निकले
नहीं। बाबा ने
सम- झाया कि यह
है ड्रामा का
बन्धन।
ब्रह्मा भी
ड्रामा के
सर्कल से निकल
नहीं सकते।
ड्रामा के
बन्धन से कोई
भी निकल नहीं
सकते। उस जीरो
प्याइन्ट तक
पहुँच गये
लेकिन फिर भी ड्रामा
का मीठा बन्धन
है। जिस मीठे
बन्धन को खेल
के रूप में
दिखाया। फिर
मिश्री
बादामी खिलाई।
छुट्टी दी, बोला, जाओ
बच्ची टाइम हो
गया है।
8. आज जब
वतन में गई तो
कोई भी नजर
नहीं आ रहा था।
दूर से कोई
जैसे आवाज आ
रही थी - ऐसे लग
रहा था जैसे
कोई खास कार्य
हो रहा हो।
मैं पहले तो
कुछ रूकी
लेकिन फिर आगे
चलकर क्या
देखा -
शिवबाबा
ब्रह्मा बाबा,
मम्मा और
विश्वकिशोर
चारों ही आपस
में बातचीत कर
रहे थे और
बहुत प्लैन
उनके आगे रखे
थे। जिसमें
कुछ निशान आदि
दिखाई दे रहे
थे। लेकिन समझ
में नहीं आया।
मम्मा सभी
बच्चों का
हालचाल पूछ
रही थी। मैंने
कहा मम्मा
आपने बाबा को
भी बुला लिया।
मम्मा बोली -
मम्मा भी नहीं
चाहती कि
बच्चों से
मात-पिता का
साकारी साथ
छूटे लेकिन
ड्रामा। फिर
मैंने बाबा से
पूछा - बाबा यह
प्लैन्स आदि क्या
हैं? बाबा
बोले - बच्ची,
जैसे मार्शल
के पास सारे
नक्शे रहते
हैं कि कहाँ-कहाँ
क्या-क्या हो
रहा है। आगे
क्या होना है -
वैसे यह भी
स्थापना के
कार्य की ही
बातचीत चल रही
थी। जो फिर
सुनायेंगे।
इसके बाद एक
दृश्य दिखाया
- जिसमें तीन
संगठन थे। एक
तो देखा
लाल-लाल चीटियाँ
जो आपस में
गेंद के माफिक
इक्ट्ठी हो जा
रही थी। दृश्य
ऐसा था जो
ब्रह्मा बाबा
ने शुरू-शुरू
में देखा था
-दूसरा संगठन
था मूलवतन में
आत्मायें शमा
रूप में थी
तीसरा संगठन -
हम ब्राह्मणों
का था। जो सभी
सर्किल रूप
में बैठे थे
और बीच में
बापदादा थे।
वह ऐसे लग रहा
था जैसे फूल
के बीच में
बूर होता है
और चारों ओर
पत्ते होते
हैं। इसका
रहस्य बाबा ने
बताया - कि
बच्ची जब
प्रत्यक्षता
शुरू हुई तो
भी संगठन में
देखा। अन्त
में भी
आत्माओं को
संगठन रूप में
ही रहना है और
अब मध्य में
भी संगठन है।
संगठन की
शक्ति है तो
कोई भी हिला
नहीं सकता।
देखो, बापदादा
ने कहाँ-कहाँ
से चुन-चुनकर
संगठन बनाया
है। तो बच्चे
भी जब संगठन
में चलेंगे तो
माया का वार
नहीं होगा।
जैसे गुलाब का
फूल वा कोई भी
फूल होता है
तो उनको योग्य
स्थान पर
रखेंगे और
अकेला पत्ता
होगा तो हाथ
से जल्दी मसल
देंगे। तो
बच्चों का भी
संगठन रूपी
गुलदस्ता
होगा तो विजय
प्राप्त करते
रहेंगे। कोई
वार नहीं कर
सकेगा। ऐसे
कहते बाबा ने
कहा कि सभी
बच्चों को
कहना कि संगठन
ही सेफ्टी का
साधन है।
9. आज जब
वतन में गई तो
बापदादा
दोनों बहुत
बिजी थे। क्या
देखा - दोनों
के आगे बहुत
से फूल भी थे
और पत्ते भी
थे। जैसे
गुलदस्ते में
फूल भी डाले
जाते और पत्ते
भी डाले जाते।
फूल दो तीन
प्रकार के
अलग-अलग थे,
उनको देख
रहे थे और
छांट रहे थे।
तो बाप-दादा
दोनों उसी ही
कार्य में
बिजी थे। मुझे
देखा भी नहीं।
जब मैं नजदीक
गई तो मुझे
देख
मुस्कराया -
और कहा कि मैं
सारा दिन बिजी
रहता हूँ।
देखो बच्ची
कितनी बड़ी
कारोबार चल
रही है। यह
फूल पत्ते तीन
क्वालिटी के
अलग-अलग करके
रखे हैं। पहले
बाबा ने मुझे
फूल दिखाये
जिनकी संख्या
बहुत कम थी
फिर बीच की
क्वालिटी
दिखाई जिसमें
फूल बहुत थे
लेकिन साथ में
थोड़े पत्ते भी
लगे थे। फूल
अच्छे थे लेकिन
जो पत्ते लगे
हुए थे वह कुछ
डिफेक्टेड थे।
तीसरी
क्वालिटी में
फिर पत्ते
जास्ती थे और
फूल बहुत ही
कम थे। इस पर
बाबा ने मुझे
समझाया कि यह
पहली क्वालिटी
जिसमें थोड़े
फूल हैं - यह वह
बच्चे हैं जो
बिल्कुल दिल
पर चढ़े हुए
हैं और ऐसे
दिल वाले अनन्य
बच्चे बहुत ही
थोड़े हैं।
दूसरे नम्बर
वाले बच्चे
हैं बहुत
अच्छे, परन्तु
थोड़ा कुछ कमी
है। फूल बने
हैं लेकिन
थोड़ी कमी है।
बाकी तीसरी
क्वालिटी के
हैं प्रजा।
उनमें कोई फूल
निकलता है जो
पीछे जाने
वाला है। बाकी
सब हैं प्रजा।
तो दो ऊपर की
क्वालिटी
बच्चों की है।
बापदादा अब
गुलदस्ता
सजाते हैं। जब
गुलदस्ता
सजाया जाता है
तो सिर्फ फूल
डालने से
गुलदस्ता
नहीं शोभता।
उसमें कुछ
पत्ते भी
चाहिए। तुम
फूल हो लेकिन
तुम्हारे साथ
पत्ते भी चाहिए।
तुम राजा
बनेंगे तो
प्रजा भी
चाहिए ना। तो
प्रजा रूपी
पत्तों के बीच
में फूल शोभता
है। तो यहाँ
बैठे तुम
बच्चों का
गुलदस्ता
बनाता हूँ। और
देखता हूँ कि
एक फूल ने
कितनी प्रजा
बनाई है।
जिसने जास्ती
प्रजा बनाई है
उनका
गुलदस्ता भी
शोभता है। फिर
बाबा ने एक
प्रश्न पूछा-
कि जब कोई
देवता पर फूल
चढ़ाते हैं तो
सिर्फ फूल
चढ़ाते पत्ते
निकाल देते
हैं क्यों? पत्ते तो
फूल का शो
होते हैं फिर
पत्ते क्यों
निकाल देते?
फिर बाबा ने
सुनाया कि तुम
बच्चों से ही
यह सारी
रसम-रिवाज
होती है। जब
तुम पहले
अर्पण हुए तो
अकेले थे
लेकिन फूल को
अगर कुछ समय
रखना हो तो
पत्ते साथ में
होंगे तो रख
सकेंगे वैसे
ही जब तुम
पहले अर्पण
हुए तो तुम
अकेले फूल अर्पण
हुए हो। फिर
तुमको 21
जन्मों के लिए
अविनाशी चलना
है - तो प्रजा
रूपी पत्ते भी
लगाये जाते
हैं। पहले तुम
आये तो प्रजा
नहीं थी लेकिन
अब तो तुम
फूलों की शोभा
ही प्रजा रूपी
पत्तों से है
इसलिए
बापदादा कहते
हैं, प्रजा
बनाओ।
10.
आज जब मैं वतन
में गई तो ऐसे
लगा जैसे कोई
सूर्य के
नजदीक जाए तो
सूर्य की गर्मा-
इस या सकाश
तेज आती है,
ऐसे ही आज
वतन में जैसे
ही आगे बढ़ते
गये तो ऐसे अनुभव
हुआ जैसे कोई
भट्टी के आगे
जाते हैं। आज
बाबा लाल-लाल
लाईट में जैसे
अव्यक्त फीचर में
दिखाई दे रहे
थे और सूर्य
के समान
किरणें निकल
रही थी। क्या
देखा कि नीचे
बहुत बड़ी सभा
है। ऐसी सभा
साकार रीति
में
ब्राह्मणों
की कभी नहीं
थी - सभी
ब्राह्मणों
पर वह किरणें
जा रही थी। और
मैं भी वतन
में गई तो
देखा मेरे पर
भी वह किरणों
की लाइट माइट
आ रही है। कुछ
समय बाद - मैं
बाबा से उसी
रूप में मिली
और कहा कि बाबा
मैं भोग लेकर
आई हूँ। बाबा
भोग स्वीकार
करते हुए
सिखला रहे थे
कि खाते समय
कैसे लाइट
माइट की
स्थिति में
रहना है। फिर
मैंने बाबा से
पूछा कि
बच्चों को
याद-प्यार तो
देंगे ना। इस
पर बाबा ने
कहा कि स्नेह
का रूप तो
बहुत देखा
लेकिन स्नेह
के साथ शक्ति
रूप की स्थिति
जो बाबा
बच्चों की
बनाने चाहते
हैं, वह
अभी तक कम है।
तो आज बाबा
स्नेह के साथ
शक्ति भर रहे
थे। और कहा
इसी से ही
सर्विस में
सफलता होगी।
बाबा ने
सन्देश भी यह
दिया कि सिर्फ
स्नेह नहीं
लेकिन साथ में
शक्ति भी भरनी
है। जो बाबा
ने खुद दृश्य
में दिखाया कि
बच्चों को इस
सृष्टि को
लाइट-माइट की
किरणें देनी
है। इतने दिन
बाबा का स्नेह
के रूप से
मिलन था लेकिन
आज स्नेह के
साथ लाइट-माइट
का रूप था तो
मैं उसे लेने
में ही तत्पर
हो गई और वापस
साकार वतन में
आ गई।
11. आज जब
मैं वतन में
गई तो जैसे एक
सभा लगी हुई
थी - क्लास हो
रहा था। पहले
तो मैं
धीरे-धीरे आगे
बढ़ने लगी।
बापदादा ने
नयनों से
स्वागत किया।
फिर बोले
बच्ची इन सबसे
मुलाकात करो
और यह भोग सभी
को खिलाओ। तो
क्या देखा - जो
आत्मायें
एडवांस में
शरीर छोड़कर गई
हैं उन सभी को
इमर्ज कर बाबा
क्लास करा रहे
थे। फिर सभी
को मधुबन का
ब्रह्मा भोजन
स्वीकार
कराया। उस
संगठन में सभी
गई हुई
आत्मायें थी।
फिर मैंने एक
दृश्य देखा -
बहुत मकान बन
रहे थे। और
जैसे मकान में
जब छत पड़ती है
तो उसको बहुत
आधार देते हैं
फिर जब
सीमेन्ट
पक्का हो जाता
है तो वह आधार
लकड़ी पट्टी
आदि निकाल
देते हैं। तो
इस तरह मकान
बनने की छत
भरने की
कारोबार बहुत
जोर शोर से चल
रही थी। तो
मैं इस मकान
को देखती रही
और बाबा गायब
हो गया। बाबा
ने यह दिखाया
कि मकान बनाने
के लिए पहले आधार
दिया जाता है
फिर आधार
निकाला जाता
है। ऐसे ही
दृश्य देखते
यहाँ पहुँच गई।
12. आज जब
मैं वतन में
गई तो बाबा नहीं
दिखाई दिये।
थोड़ी देर के
बाद बाबा को
देखा तो मैंने
पूछा आप कहाँ
गये थे? बाबा
बोले - आज
गुरूवार का
दिन है तो सभी
बच्चों के पास
चक्र लगाने
गये थे। वैसे
तो साकार रूप
में इतने थोड़े
समय में सब जगह
नहीं पहुँच
सकता था। अब
तो अव्यक्त
वतन में
अव्यक्त
विमान द्वारा
राकेट से भी
जल्द पहुँच
सकते हैं।
हमने कहा बाबा
आपने चक्र
लगाया तो
उसमें आपने
क्या देखा!
बाबा ने कहा -
मैजारटी
बच्चे अभी तक स्नेह
में अच्छे चल
रहे हैं और
बहुत ऐसे भी
हैं जिन्हों
के अन्दर कुछ
संकल्प भी है
कि ना मालूम
अब क्या होगा।
परन्तु संगठन
के सहारे अब
तक ठीक हैं।
बाबा ने कहा
कि स्नेह के
आधार पर जो
बच्चे अभी तक
ठहरे हुए हैं
तो अब स्नेह
के साथ ज्ञान
का फाउन्डेशन
जरा भी ढीला
हुआ तो बच्चों
पर वायुमण्डल
का असर बहुत
सहज हो सकता
है। इसलिए हर
एक बच्चे को
अपनी चेकिंग
करनी है। फिर
भी व्यक्त देह
में हो तो
स्नेह में
पहले फोर्स
अच्छा रहता है
लेकिन इस
स्नेह पर फिर
जैसे-जैसे दिन
पड़ते जायेंगे
तो वायुमण्डल
का असर जल्दी
पड़ सकता है।
स्नेह में भल
कहते हैं कि
शिवबाबा
कल्याणकारी
है या बाबा ने
जो किया है वह
ठीक है। स्नेह
के वश संकल्प
बन्द किया है।
स्नेह की
रिजल्ट
मैजारटी की अधिक
है।
वायुमण्डल का
असर हमारे पर
न हो और हमारा
असर वायुमण्डल
पर हो तब
कायदेमुजीब
चल सकते हैं।
हमने कहा कि
बाबा हमारे
पास तो ज्ञान
की ही बातें
चलती हैं। तब
बाबा ने कहा
बच्ची, ज्ञान
के फाउन्डेशन
से अपने को
सन्तुष्ट रखें,
ऐसे बच्चे
थोड़े हैं। तो
आज बाबा ने यह
रिजल्ट बताई
और कहा कि सभी
को जाकर
सुनाना कि वायुमण्डल
को हमें चेंज
करना है न कि
वायुमण्डल
हमें चेंज करे।
फिर भोग
स्वीकार
कराने के बाद
बाबा ने एक
सीन दिखाई - एक
बहुत बड़ा हाल
था, उस हाल
में चारों ओर
से बहुत बदबू
आ रही थी। उस
कमरे में दो
तीन बहुत
अच्छी खुशबूदार
अगरबत्ती जल
रही थी।
धीरे-धीरे
अगरबत्ती की
खुशबू ने बदबू
को दबा दिया।
बाबा ने
सुनाया देखो
बच्ची, चारों
तरफ बदबू का
वायुमण्डल था
लेकिन इतनी सी
अगरबत्ती ने
वायु- मण्डल
को बदल दिया।
तो तुम बच्चों
पर जब देखो कि
वायुमण्डल का
असर होता है
तो अग-रबत्ती
का मिसाल
सामने रखो कि
हम
सर्वशक्तिवान
बाप के बच्चे
हैं। अगर
वायुमण्डल का
असर हमारे पर
आये तो इससे तो
अगरबत्ती
अच्छी है। जब
तुम बच्चे
पावरफुल
खुशबूदार
बनेंगे तब यह वायुमण्डल
दब जायेगा।
बाबा ने कहा
अब हरेक बच्चे
को शिक्षा तो
मिली है।
शिक्षा भी सभी
बड़े मीठे रूप
से सुनते हैं।
लेकिन जैसे
मीठे रूप से
सुनते हो उसी
मीठे रूप से
धारण भी करना
है। मीठापन
चिपकता बहुत
जल्दी है। जो
ऐसे मीठा
बनेंगे तो बाप
से चिपक
जायेंगे। याद
और मीठापन
नहीं होगा तो
अलग-अलग
रहेंगे। जैसे
नमकीन चीज आपस
में कभी नहीं
मिलती है। तो
जो ऐसे होंगे
उनकी अवस्था
योगयुक्त
नहीं रहेगी।
अब जैसे
बच्चों ने
सुना वैसे ही
धारण करेंगे तो
बहुत बल
मिलेगा।
13. आज जब
मैं वतन में
गई तो बाप और
दादा दोनों
सामने खड़े थे।
और जाते ही
नयनों की
मुलाकात से
सभी की जो यादप्यार
ले गई थी वह दी।
जैसे ही मैं
याद दे रही थी
तो साकार बाबा
ने मेरा हाथ
पकड़ा। उस हाथ
पकड़ने में ना
मालूम क्या
जादू था - ऐसे अनुभव
हुआ जैसे सागर
में कोई स्नान
करता है, ऐसे
थोड़े समय के
लिए मैं प्रेम
के सागर में
लीन हो गई।
उसके बाद हमने
आलमाइटी बाबा
की तरफ देखा।
तो बाबा ने
कहा बच्ची-बाप
में मुख्य दो
गुण जो हैं वह
बच्चों ने
साकार रूप में
अनुभव किया है।
वह दो गुण कौन
से हैं? जितना
ही ज्ञान
स्वरूप उतना
ही प्रेम
स्वरूप। तो
बच्चों को भी
यह दो गुण
अपने हर चलन
में धारण करने
हैं। फिर
मैंने बाबा से
पूछा कि पहले
वतन में जो गये
हुए बच्चों का
इतना संगठन था
इसका रहस्य
क्या था! बाबा
ने कहा पूरा
राज तो बाद
में चलकर
सुनायेंगे
लेकिन साकार
रूप से जो कोई
सर्विस अर्थ
या कुछ हिसाब
किताब चुक्तू
करने अर्थ चले
गये हैं उन
बच्चों से
मुलाकात करने
के लिए बुलाया
था। बाबा उनसे
हालचाल पूछ
रहे थे कि
कौन-कौन, किस
रीति से किस
रूप से
क्या-क्या कर
रहे हैं। हमने
कहा बाबा, यह
किस रूप से
स्थापना के
कार्य में
बिजी हैं? तो
बाबा बोले
बच्ची यह आगे
चलकर स्पष्ट
करेंगे, फिर
भी शार्ट में
सुनाते हैं।
बाबा ने कहा -
बच्ची जब लड़ाई
होती है तो
किसी भी लश्कर
को जब जीतना
होता है तो
सिर्फ एक तरफ
से नहीं चारों
तरफ से लश्कर
भेजकर पूरा
घेराव डाल
देते हैं। इस
संगठन से यह
मालूम हुआ कि
जो भी बच्चे
गये हैं वह
चारों और फैल
गये हैं। अभी
चारों तरफ
स्थापना की
नीव पड़ गई है।
बाकी अब आर्डर
देने की जरूरत
है।
फिर
बाबा ने चार
स्टेजेस की एक
सीढ़ी दिखाई।
पहली स्टेज
दिखाई - ज्ञान
सुनना, सोचना-
समझना और
निश्चय करना।
कोई सोच करता
है, कोई
मंथन करता है।
दूसरी स्टेज
बताई - कि अन्त
समय कैसे
विनाश हो रहा
है। कहाँ बाढ़
से डूब रहे
हैं, कहाँ
क्या हो रहा
है लेकिन
शक्ति दल और
पाण्डव
बिल्कुल अडोल
खड़े थे। तीसरी
स्टेज दिखाई
कि आत्मायें
जैसे निकल कर परमधाम
में गुब्बारे
माफिक जा रही
हैं। फिर
परमधाम की सीन
भी बाबा ने
दिखाई। चौथी
सीन - स्वर्ग
की दिखाई।
स्वर्ग में
आत्मायें
कैसे
छोटे-छोटे
बच्चों में
प्रवेश हो रही
हैं। तो यह
सभी स्टेजेस
सीढ़ी के चित्र
के रूप में दिखाई।
यह सीढ़ी
दिखाने का
रहस्य बताते
हुए बाबा ने कहा,
बच्चों की बुद्धि
में यह घूमता
रहे कि अब
हमारी क्या
स्टेज है। जो
अन्तिम स्टेज
धारण करनी है
वह लक्ष्य
पहले से ही
बुद्धि में
रखेंगे तो
पुरूषार्थ
तेज चलेगा।
विनाश के समय
की जो सीन
दिखाई उसमें
आप बच्चों की
अडोल अवस्था
रहे। फिर बाबा
ने हमें ढेर
हीरे हाथ में
दिये और कहा
इन हीरों का
टीका सभी
बच्चों को
लगाना। यह
हीरे क्यों दे
रहा हूँ? क्योंकि
हीरे मिसल
आत्मा मस्तक
में रहती हैं।
तो हरेक आत्मा
सच्चा हीरा बन
चमकती रहे।
अच्छा !